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प्रसंग

वर्ष की तीसरी तिमाही से अर्थव्यवस्था को अत्यधिक आशावाद मिलने की संभावना कम है।

परिचय

भारत के नवीनतम आर्थिक आँकड़े एक अस्थिर प्रवृत्ति को दर्शाते हैं—दूसरी तिमाही की मज़बूत आर्थिक वृद्धि से तीसरी तिमाही की उभरती हुई चुनौतियों तक। जहाँ 8.2 प्रतिशत की उल्लेखनीय आर्थिक वृद्धि ने प्रारम्भिक उत्साह पैदा किया, वहीं औद्योगिक उत्पादन में कमी, विनिर्माण क्षेत्र की सुस्ती तथा निर्यात की गति में गिरावट, अर्थव्यवस्था में गहरे दबावों की ओर संकेत करती है। समग्र रूप से ये संकेतक बताते हैं कि हाल की तेज़ वृद्धि निकट भविष्य में टिकाऊ नहीं रह सकेगी।


आर्थिक आँकड़ों में उतार–चढ़ाव: एक मिश्रित स्थिति

हाल के आँकड़े उत्साह से लेकर चिंता तक, दोनों स्थितियों को प्रदर्शित करते हैं।
• दूसरी तिमाही में 8.2 प्रतिशत की वृद्धि ने उम्मीदें बढ़ाईं, यद्यपि वास्तविक वृद्धि कम रही और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं ने अपने अनुमान नीचे किए।


औद्योगिक और विनिर्माण क्षेत्र में मंदी

• अक्टूबर 2025 में औद्योगिक उत्पादन की वृद्धि घटकर केवल 0.4 प्रतिशत रह गई, जो पिछले चौदह महीनों का न्यूनतम स्तर है।
• दूसरी तिमाही में विनिर्माण क्षेत्र की वृद्धि 9.1 प्रतिशत रही, जबकि अक्टूबर में यह घटकर 1.8 प्रतिशत पर आ गई।
• इसका एक कारण आधार प्रभाव भी है, क्योंकि पिछले वर्ष इसी अवधि में विनिर्माण क्षेत्र की वृद्धि केवल 2.2 प्रतिशत थी।
• अधिक गंभीर चिंता यह है कि विदेशों के ऊँचे आयात–शुल्क ने शुरुआत में पुराने आदेशों को पूरा होने दिया, पर आगे चलकर निर्यात में लगभग 12 प्रतिशत की गिरावट ला दी।


निर्यात की गति कमज़ोर पड़ना

• विनिर्माण गतिविधियों से जुड़े संकेतक नवंबर में नौ महीनों के न्यूनतम स्तर पर पहुँच गए।
• नये निर्यात आदेश पिछले एक वर्ष में सबसे धीमी गति से बढ़े, जो बढ़ती बाधाओं और अनिश्चितताओं को दर्शाता है।


क्षेत्रीय दबाव: खनन, विद्युत और प्राथमिक वस्तुएँ

• शीतकालीन मौसम के कारण विद्युत उत्पादन में कमी आई।
• लंबी अवधि तक जारी वर्षा ने खनन गतिविधियों को कमजोर किया।
• इन दोनों कारकों से अक्टूबर में प्राथमिक वस्तुओं के उत्पादन में गिरावट दर्ज हुई।


निवेश और पूँजीगत वस्तुओं में सुस्ती

• दूसरी तिमाही में निवेश में 7.3 प्रतिशत वृद्धि दर्ज हुई थी, पर उपलब्ध ताज़ा संकेत बताते हैं कि तीसरी तिमाही में इसकी गति धीमी पड़ सकती है।
• पूँजीगत वस्तुओं का उत्पादन मात्र 2.4 प्रतिशत बढ़ा, जो पिछले चौदह महीनों में सबसे कम है, और यह निवेश गतिविधि के नरम पड़ने की ओर इशारा करता है।


परोक्ष कर सुधारों के बाद उपभोग में कमजोरी

• दूसरी तिमाही में निजी उपभोग व्यय में लगभग 8 प्रतिशत वृद्धि दर्ज हुई, पर औद्योगिक उत्पादन से प्राप्त आँकड़ों के अनुसार टिकाऊ और अल्पकालिक दोनों प्रकार की उपभोक्ता वस्तुओं में गिरावट आई—जो पिछले दो वर्षों का सबसे खराब प्रदर्शन है।
• नवंबर में एकत्रित परोक्ष कर राजस्व यह बताता है कि मांग अपेक्षित गति से नहीं बढ़ी है।


समग्र दृष्टिकोण

प्रारम्भिक संकेतकों से स्पष्ट है कि तीसरी तिमाही में अर्थव्यवस्था पर दबाव बना रह सकता है—निर्यात की सुस्ती, विभिन्न क्षेत्रों की कमज़ोरी और उपभोग के नरम पड़ने के कारण।


निष्कर्ष

तीसरी तिमाही के शुरुआती रुझान बढ़ती आर्थिक चुनौतियों को उजागर करते हैं—जिनमें निर्यात में गिरावट, औद्योगिक उत्पादन की नाज़ुक स्थिति तथा उपभोग की मंदी प्रमुख हैं। निवेश की गति में कमी से समग्र परिदृश्य नीतिनिर्माताओं के लिए सजग रहने की आवश्यकता पर बल देता है। स्थायी आर्थिक सुधार तभी संभव होगा जब बाहरी मांग स्थिर हो, घरेलू परिस्थितियाँ बेहतर हों और विकास का आधार व्यापक तथा सुदृढ़ बने।

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