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प्रसंग:
भारत वर्ष 2026–27 से कक्षा 3 से ही विद्यालयी पाठ्यक्रम में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence – AI) को सम्मिलित करने की योजना बना रहा है, जो राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के अनुरूप है। इसका उद्देश्य विद्यार्थियों को प्रौद्योगिकी-प्रधान अर्थव्यवस्था के लिए तैयार करना तथा शिक्षा में सुगमता, समावेशन और अधिगम परिणामों को सुदृढ़ बनाना है।

शिक्षक प्रशिक्षण एवं कार्यान्वयन :

वास्तविक चुनौती AI उपकरणों को प्रारंभ करने में नहीं, बल्कि एक करोड़ से अधिक शिक्षकों को कौशलयुक्त (upskill) बनाने में निहित है।
इंटेल (Intel), आईबीएम (IBM) तथा राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिकी एवं सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान जैसे सरकारी संगठनों द्वारा संचालित पायलट परियोजनाओं के माध्यम से शिक्षकों को AI-सक्षम पाठ योजना तैयार करने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है।
सन् 2019 से अब तक 10,000 से अधिक शिक्षक प्रशिक्षित किए जा चुके हैं।
इस पहल की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि शिक्षक कितने आत्मविश्वास से AI का उपयोग पाठ योजना, फीडबैक और अनुकूली अधिगम (adaptive learning) के लिए करते हैं।

कक्षा में AI: मानकीकरण से वैयक्तिकरण की ओर:

AI शिक्षा को “एक ही ढाँचा सभी के लिए” वाले मॉडल से निकालकर वैयक्तिक (personalised) अधिगम की दिशा में ले जाता है।
AI उपकरण विद्यार्थियों के प्रदर्शन का विश्लेषण करके व्यक्तिगत अध्ययन मॉड्यूल सुझाते हैं।
बीजगणित से लेकर जीवविज्ञान तक, AI विद्यार्थियों को व्यक्तिगत फीडबैक और वैकल्पिक व्याख्याएँ प्रदान कर सकता है।
यह अंकेक्षण (grading) और उपस्थिति (attendance) जैसी गतिविधियों को स्वचालित कर देता है, जिससे शिक्षक रचनात्मकता और संवेदनशीलता पर अधिक ध्यान दे सकते हैं।
अतः AI शिक्षक की भूमिका को प्रतिस्थापित (replace) नहीं करता, बल्कि उन्हें मार्गदर्शक (mentor) के रूप में सशक्त बनाता है।

अवसर और व्यवधान :

नीति आयोग (NITI Aayog) की एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2030 तक AI भारत में लगभग 20 लाख प्रौद्योगिकी नौकरियों को विस्थापित कर सकता है, किंतु साथ ही यह 40 लाख नई नौकरियाँ भी सृजित करेगा, जिनमें डिजिटल कौशल और अनुकूलन क्षमता (adaptability) की आवश्यकता होगी।
अतः AI शिक्षा को केवल कोडिंग (coding) तक सीमित न रहकर, विद्यार्थियों में लचीलापन (resilience) और निरंतर अधिगम (lifelong learning) की भावना विकसित करनी चाहिए।

समावेशन और पहुँच :

AI का सबसे महत्वपूर्ण योगदान समावेशी शिक्षा (inclusive education) में हो सकता है।
अनुकूली उपकरण विकलांग विद्यार्थियों और ग़ैर-अंग्रेज़ी या क्षेत्रीय भाषाई पृष्ठभूमि वाले विद्यार्थियों की सहायता कर सकते हैं।
भाषा अनुवाद (translation) और वाक् पहचान (speech recognition) तकनीकें कक्षा में भाषाई अंतर को पाटने में सहायक हैं।
जनरेटिव AI (जैसे चैटबॉट्स और वर्चुअल ट्यूटर) दूरदराज़ क्षेत्रों में भी विद्यार्थियों को 24×7 वैयक्तिक अधिगम सहायता प्रदान कर सकते हैं।
हालाँकि, समावेशन के साथ-साथ डेटा नैतिकता (data ethics), गोपनीयता (privacy) और समान पहुँच (equitable access) पर भी ध्यान देना अनिवार्य है।

निष्कर्ष

भारत की AI-आधारित शिक्षा पहल ज्ञान के सृजन, प्रसार और मूल्यांकन के तरीकों में एक नए प्रतिमान परिवर्तन (paradigm shift) का संकेत देती है।
यद्यपि यह शिक्षा के लोकतंत्रीकरण (democratization) की दिशा में एक आशाजनक कदम है, इसकी सफलता निर्भर करती है—

  • सशक्त शिक्षक प्रशिक्षण,
  • समुचित डिजिटल अवसंरचना, तथा
  • नैतिकता और समानता पर आधारित नीति-निर्माण पर।

“कृत्रिम बुद्धिमत्ता शिक्षा के नियमों को पुनर्लेखित कर सकती है,
परंतु शिक्षा का हृदय अब भी शिक्षक ही लिखेंगे।”


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