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  1. फ्रेमवर्क का अवलोकन
  • बाइडेन के पहले कार्यकाल के अंतिम दिनों में प्रस्तुत।
  • चीन, रूस जैसे देशों को AI चिप्स की पहुंच सीमित करने का लक्ष्य।
  • AI क्षमता को कम्प्यूट पावर से जोड़कर हार्डवेयर को नियंत्रण की मुख्य कुंजी माना।
  1. सैन्य दृष्टिकोण की कमजोरियाँ
  • AI को एक सैन्य तकनीक मानना अनुचित था, क्योंकि AI का मूल नागरिक और वैश्विक उपयोग है।
  • इसने अमेरिकी सहयोगियों के लिए भी असुविधा पैदा की।
  • क्षेत्रीय AI विकास पर प्रतिबंध नकारात्मक साबित हुए।
  1. वैश्विक प्रतिक्रिया
  • अन्य देशों (जैसे चीन के DeepSeek RI) ने स्वतंत्रता और नवाचार को बढ़ावा दिया।
  • सहयोगी देशों ने अमेरिकी प्रणालियों पर निर्भरता कम करना शुरू किया।
  1. ट्रंप प्रशासन के दौरान वापसी
  • कड़े नियंत्रणों को कम करने का संकेत।
  • वैश्विक वैज्ञानिक सहयोग और खुली शोध प्रणालियों को बढ़ावा देने का उद्देश्य।
  1. पूर्ण वापसी नहीं
  • मार्च 2025 में AI चिप्स के निर्यात पर नए प्रतिबंध लागू।
  • “एंटिटी ब्लैकलिस्ट” का विस्तार।
  • चिप्स की अमेरिका में ट्रैकिंग अनिवार्यता प्रस्तावित।
  1. तकनीकी आधारित प्रतिबंध
  • निर्यात प्रतिबंधों के बजाय हार्डवेयर स्तर पर तकनीकी नियंत्रण।
  • विरोधी वातावरण में उपयोग पर पाबंदी।
  1. स्वामित्व, गोपनीयता और निगरानी
  • कड़े नियंत्रण से राज्य निगरानी और AI के दुरुपयोग का खतरा।
  • गोपनीयता और नैतिक सुरक्षा कम।
  • विश्वास में कमी।
  1. द्वि-उपयोग अस्पष्टता
  • स्वास्थ्य, जलवायु पूर्वानुमान, आपदा प्रबंधन जैसे जरूरी क्षेत्र भी प्रभावित।
  1. वैश्विक सहयोग में कमी
  • वैज्ञानिक सहयोग पर प्रतिकूल प्रभाव।
  • विकासशील देशों को पहुंच में असमानता।
  1. भारत की चुनौतीपूर्ण स्थिति
  • AI डिफ्यूजन फ्रेमवर्क के तहत भारत को सीमित पहुंच मिली थी।
  • वापसी से लाभ हुआ लेकिन अगर अमेरिकी रणनीति जारी रही तो यह अस्थाई होगा।
  1. रणनीतिक सतर्कता आवश्यक
  • भारत को चिप स्रोत विविधीकरण करना चाहिए।
  • देश में कम्प्यूट इंफ्रास्ट्रक्चर और क्वांटम स्वायत्तता को प्रोत्साहित करना चाहिए।

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