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प्रसंग

27 नवम्बर 2025 से भारत सरकार चार श्रम संहिताओं को लागू करने जा रही है—

  1. वेतन संहिता, 2019
  2. औद्योगिक संबंध संहिता, 2020
  3. सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020
  4. व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कार्यस्थिति संहिता, 2020

इनका उद्देश्य भारत के 29 केंद्रीय श्रम कानूनों को सरल, एकीकृत और आधुनिक बनाना है, ताकि एक समान, लचीला और श्रमिक-हितैषी ढाँचा तैयार हो सके।

1. भारत के श्रम ढाँचे का विकास

कई वर्षों तक भारत के श्रम कानून बिखरे हुए, क्षेत्र-विशिष्ट और अनेक बार परस्पर विरोधी रहे।
द्वितीय राष्ट्रीय श्रम आयोग (2002) ने इन कानूनों के एकीकरण और सरलीकरण की अनुशंसा की थी।

विस्तृत विचार-विमर्श (2015–2019) के बाद इन संहिताओं का निर्माण किया गया, जिनका उद्देश्य—

  • अनुपालन प्रक्रियाओं को सरल बनाना
  • मुक़दमेबाज़ी कम करना
  • बदलते रोजगार परिवेश के अनुरूप श्रम ढांचे को सक्षम बनाना है

2. भारत का कार्यबल परिदृश्य

भारत विश्व के सबसे बड़े और युवा कार्यबलों में से एक है — लगभग 64.3 करोड़ श्रमिक।
2017 से 2023-24 के बीच बेरोज़गारी दर 6.0% से घटकर 3.2% हो गई।

फिर भी लगभग 90% श्रमिक अनौपचारिक क्षेत्र में कार्यरत हैं, जिनके पास सामाजिक सुरक्षा और लिखित अनुबंध नहीं होते।
नई संहिताएँ इस बड़े अनौपचारिक क्षेत्र को औपचारिक ढांचे में लाने तथा गिग एवं प्लेटफ़ॉर्म श्रमिकों तक सुरक्षा प्रदान करने का प्रयास करती हैं।

3. प्रमुख प्रावधान एवं लाभ

(क) वेतन संहिता, 2019

  • सार्वभौमिक न्यूनतम वेतन और राष्ट्रीय आधार-भूत वेतन का प्रावधान
  • समय पर वेतन भुगतान की अनिवार्यता
  • समान कार्य हेतु समान पारिश्रमिक का सिद्धांत
  • परिभाषाओं का विस्तार, जिससे संविदा एवं प्लेटफ़ॉर्म श्रमिक भी इसके दायरे में आते हैं

(ख) सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020

  • असंगठित श्रमिकों तक कर्मचारी राज्य बीमा और भविष्य निधि का विस्तार
  • राष्ट्रीय सामाजिक सुरक्षा कोष की स्थापना
  • सार्वभौमिक पंजीकरण हेतु डिजिटल पोर्टलों का प्रावधान
  • मातृत्व सहायता, विकलांगता बीमा तथा पेंशन लाभों का विस्तार

(ग) व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कार्यस्थिति संहिता, 2020

  • 48 घंटे साप्ताहिक कार्य समय सीमा
  • सुरक्षा समितियाँ और आवधिक स्वास्थ्य परीक्षण
  • महिला श्रमिकों के लिए सुरक्षित रात्रि-कार्य प्रावधान (उनकी सहमति के साथ)

(घ) औद्योगिक संबंध संहिता, 2020

  • हड़ताल, छंटनी और समाधान प्रक्रियाओं से संबंधित स्पष्ट नियम
  • सामूहिक सौदेबाज़ी को प्रोत्साहन
  • विवाद समाधान हेतु पूर्वानुमेय एवं सुव्यवस्थित तंत्र

4. महिलाओं की श्रम भागीदारी में वृद्धि

2024 में भारत की महिला श्रम भागीदारी दर केवल 32.8% रही, जो वैश्विक स्तर पर काफ़ी कम है।
संहिताएँ महिला श्रमिकों के लिये—

  • मातृत्व लाभ
  • सुरक्षित रात्रि कार्य
  • सामाजिक सुरक्षा कवरेज का विस्तार

जैसे प्रावधानों को सुदृढ़ करती हैं, जिससे लैंगिक समानता और राष्ट्रीय उत्पादकता में वृद्धि होगी।

5. कार्य के भविष्य हेतु तैयारी

कृत्रिम बुद्धिमत्ता, स्वचालन और डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म के बढ़ते प्रभाव के कारण श्रम नीतियों में लचीलापन आवश्यक है।
संहिताएँ—

  • गिग तथा प्लेटफ़ॉर्म श्रमिकों को औपचारिक पहचान
  • कौशल उन्नयन और अनुकूलन क्षमता
  • सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों के लिए सरल लाइसेंसिंग और स्व-प्रमाणीकरण

जैसे उपायों को बढ़ावा देती हैं, जिससे नवाचार और व्यापार सुगमता में वृद्धि होगी।

6. क्रियान्वयन में चुनौतियाँ

  • श्रम विषय समवर्ती सूची में होने के कारण राज्यों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है।
  • पारदर्शिता, एकरूप नियम और डिजिटल रजिस्ट्रियों की आवश्यकता है, ताकि लाभ वास्तव में श्रमिकों तक पहुँच सकें।
  • सरकार, उद्योग और श्रमिक संगठनों के बीच मज़बूत त्रिपक्षीय संवाद आवश्यक रहेगा।

उपसंहार

चारों श्रम संहिताएँ लचीलेपन तथा न्याय का संतुलन स्थापित करने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम हैं।
एक आधुनिक और भविष्य-उन्मुख श्रम ढाँचा न केवल रोजगार सुरक्षा बढ़ाएगा, बल्कि उद्यमों की प्रतिस्पर्धात्मक क्षमता को भी सुदृढ़ करेगा।

असंगठित श्रमिकों को सुरक्षा कवरेज प्रदान कर और श्रम प्रशासन को राष्ट्रीय आर्थिक लक्ष्यों से जोड़कर, ये सुधार विकसित भारत 2047 के लिए समावेशी एवं सतत विकास की आधारशिला रखते हैं।


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