The Hindu Editorial Analysis in Hindi
19 May 2025
ऑपरेशन सिंदूर – एक संदिग्ध निवारक
(स्रोत – द हिंदू, राष्ट्रीय संस्करण – पृष्ठ संख्या – 08)
विषय: GS 2 और GS 3: आंतरिक सुरक्षा | भारत की आतंकवाद विरोधी रणनीति | विदेश नीति | खुफिया एजेंसियों की भूमिका
संदर्भ
- 22 अप्रैल 2024 को पहलगाम आतंकवादी हमले के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऑपरेशन सिंदूर लॉन्च किया, जो एक सैन्य प्रतिक्रिया थी ताकि सीमा पार आतंकवाद को रोकने का संदेश दिया जा सके।
- यह संपादकीय इस सैन्य प्रतिक्रिया की देरी से प्रभावित प्रभावशीलता, परिणामों में पारदर्शिता की कमी और संसदीय निगरानी व रणनीतिक यथार्थवादी दृष्टिकोण की जरूरत पर सवाल उठाता है।

परिचय
- आतंकवाद के खिलाफ युद्ध में केवल बदले की कार्रवाई समाधान का गारंटर नहीं हो सकती।
- ऑपरेशन सिंदूर को आतंकवाद के प्रति कड़ा जवाब बताया गया है, लेकिन यह एक परिचित पैटर्न दर्शाता है जहाँ सैन्य कार्रवाई के बावजूद प्रणालीगत सुधार या जवाबदेही नहीं होती।
- यह अभियान प्रतीकात्मक जरूर है, लेकिन इसकी रणनीतिक उपयोगिता, नागरिक लागत और नीति की संगति पर गंभीर प्रश्न उठता है।
मुख्य तर्क: बदला लेना = रोकथाम नहीं
- भविष्य के हमलों को रोकने में विफलता
- 2016 के सर्जिकल स्ट्राइक और 2019 के बालाकोट हमला होने के बावजूद पहलगाम हमला हुआ, जो बताता है कि सीमा पार सैन्य कार्रवाई दीर्घकालिक रोकथाम नहीं है।
- जांच में यह पता चलता है कि प्रमुख आतंकवादी अभी भी सक्रिय हैं और आतंकी नेतृत्व या प्रशिक्षण शिविरों के खिलाफ ठोस कार्रवाई नहीं हुई।
- लक्षित नाकामी और सहायक नुकसान
- पिछले सैन्य अभियान में सैकड़ों आतंकवादी मारे गए, लेकिन उच्च कद्दावर आतंकवादी जैसे सलाहुद्दीन और मसूद अज़हर सक्रिय बने रहे।
- मुंबई 26/11 के हमलावरों में से अजमल कसाब को न्यायिक प्रक्रिया के माध्यम से दंडित किया गया; इन्हें ऐसे सैन्य ऑपरेशन से खत्म नहीं किया गया।
रणनीतिक मूल्य पर सवाल
- तत्काल सफलता का भ्रम
- पैदल सैनिकों को मारना या कैंप नष्ट करना आतंकवाद के पीछे के विचारधारा, वित्त पोषण, और नेटवर्क को समाप्त नहीं करता।
- सैन्य प्रतिक्रिया स्थिति बदतर कर सकती है, जिससे LOC या IB पर झड़पों का खतरा रहता है, जिससे नागरिकों की मौतें और विस्थापन बढ़ता है।
- अंतरराष्ट्रीय छवि और अलगाव की सीमाएं
- भारत द्वारा पाकिस्तान को कूटनीतिक रूप से अलग करने के प्रयास (जैसे 26/11 और पुलवामा के बाद) का वैश्विक प्रभाव सीमित रहा, क्योंकि चीन और उसके सहयोगी पाकिस्तान का समर्थन करते रहे।
- उरी और पुलवामा हमलों के बाद की गई कार्रवाइयों ने भी भविष्य के हमलों को रोक नहीं पाया, जो विश्व सार्वजनिक राय की सीमाओं को दिखाता है।
सुरक्षा समीकरण: कौन लाभान्वित होता है, और कौन चुकाता है?
- भारत के सैन्य खर्च और परिणाम
- ऑपरेशन सिंदूर घरेलू राजनीतिक लाभ तो ला सकता है, लेकिन पाकिस्तान की रणनीति में कोई बड़ा बदलाव नहीं करता।
- नागरिक हताहतों, बुनियादी ढांचे के नुकसान और आर्थिक अस्थिरता से भारत की सुरक्षा व विकास प्राथमिकताएं प्रभावित होती हैं।
- पाकिस्तान का आतंकवादी तंत्र बना हुआ है
- जब तक पाकिस्तान के गहरे नेटवर्क और आतंकवादी आधार का वैश्विक स्तर पर संयुक्त दवाब से सफाया नहीं होता, भारत की सैन्य कार्रवाइयां पर्याप्त नहीं हैं।
आवश्यक बदलाव: यथार्थवादी रूपरेखा
- बदले से रुकावट की ओर रणनीतिक बदलाव
- ध्यान सूचना-आधारित पुलिसिंग, कानूनी कार्रवाई और आतंकवादी वित्तीय तंत्र को खत्म करने पर होना चाहिए।
- राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) को मजबूत किया जाए, तेज ट्रायल सुनिश्चित किए जाएं, और विरोधी आतंकवाद के लिए राजनीतिक एकता बनाई जाए।
- व्यापक कूटनीतिक गठबंधन
- भारत को अमेरिका, फ्रांस, खाड़ी देश और रूस जैसे वैश्विक शक्तियों के साथ मिलकर राज्य-आधारित आतंकवाद के दंड को बढ़ाना चाहिए, कूटनीतिक और आर्थिक स्तर पर।
- नागरिक-सैन्य संतुलन और संसदीय निगरानी
- आतंकवाद