The Hindu Editorial Analysis in Hindi
7 June 2025
खाद्य सुरक्षा मानकों में भारत की प्रगति को बनाए रखना
(स्रोत – द हिंदू, राष्ट्रीय संस्करण – पृष्ठ संख्या – 08)
विषय: जीएस 2: स्वास्थ्य – खाद्य सुरक्षा और विनियमन | जीएस 3: विज्ञान और प्रौद्योगिकी – खाद्य विनियमन में अनुप्रयोग | शासन – नियामक निकाय (FSSAI)
संदर्भ
विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस (7 जून, 2025) भारत के खाद्य सुरक्षा क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण बदलाव का प्रतीक है, जहाँ अब केवल खाद्य मिलावट की पहचान करने से आगे बढ़कर वैज्ञानिक, उपभोक्ता-केंद्रित खाद्य सुरक्षा तंत्र को अपनाया जा रहा है।
यह संपादकीय, पूर्व FSSAI CEO पवन अग्रवाल द्वारा, भारत की खाद्य सुरक्षा यात्रा, FSSAI के अधीन हुए प्रगति, और उन चुनौतियों का विश्लेषण करता है जिन्हें वैश्विक मानकों को कायम रखने के लिए सुलझाना आवश्यक है।

परिचय
स्ट्रीट फूड से लेकर सुपरफूड तक, सुरक्षा से समझौता असंभव है।
मिलावट को प्रतिबंधित करने से लेकर विषाक्तता सीमा और सुरक्षा मानकों को लागू करने तक भारत की खाद्य सुरक्षा में उल्लेखनीय प्रगति हुई है। फिर भी, अब समय आ गया है कि वैज्ञानिक कठोरता, पारदर्शिता और उपभोक्ता विश्वास को अपनाकर वैश्विक स्तर पर खुद को प्रतिस्पर्धी बनाए रखा जाए।
भारत की खाद्य सुरक्षा यात्रा: मुख्य पड़ाव
- मिलावट से जोखिम मूल्यांकन तक
प्रारंभिक ढांचा: खाद्य मिलावट निवारण अधिनियम (1954) – मिलावट की द्विआधारी पहचान पर केंद्रित।
मोड़: खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम (2006) – FSSAI की स्थापना की और Codex Alimentarius Commission के अनुरूप जोखिम-आधारित ढांचे लागू किए। - 2020 तक वैश्विक समानता प्राप्त
भारत ने कीटनाशकों के लिए अधिकतम अवशेष सीमा (MRLs), खाद्य योजकों के लिए सुरक्षित स्तर, और पशु चिकित्सा दवा अवशेष नियंत्रण विकसित किया।
आज भारतीय मानक विकसित देशों के करीब हैं, लेकिन वैज्ञानिक और संचार संबंधी चुनौतियाँ बनी हुई हैं।
मुख्य चुनौतियाँ
- भारत-विशिष्ट विषाक्तता डेटा का अभाव
अधिकांश सुरक्षा सीमाएँ (MRLs, ADIs) विदेशी डेटा पर आधारित हैं, जो भारतीय आहार, कृषि विधियों और पर्यावरणीय संपर्कों को प्रतिबिंबित नहीं करतीं।
भारत के पास कुल आहार अध्ययन (Total Diet Study, TDS) नहीं है, जिससे समग्र जोखिम आकलन की विश्वसनीयता कमजोर पड़ती है। - जोखिम संचार की कमी
तकनीकी शब्दावली (जैसे “0.01 mg/kg MRL”) जनता को भ्रमित करती है और विश्वास खो जाता है।
उदाहरण: कीटनाशकों के लिए MRL में छूट पर जनता में घबराहट हुई, जबकि वास्तव में सुरक्षा मानक बढ़े थे। - पुरानी गलतफहमी: MSG विवाद
वैज्ञानिक सहमति (JECFA के अनुसार) के बावजूद भारत में MSG के लिए पुरानी चेतावनी लेबलिंग अनिवार्य है।
यह वैज्ञानिक प्रमाण-आधारित नियमन के विपरीत है और भ्रम फैलाता है।
भविष्य की दिशा: एक वैज्ञानिक, पारदर्शी तंत्र
- भारत-विशिष्ट कुल आहार अध्ययन (TDS) करवाएं
यह विभिन्न आयु, आहार और क्षेत्रीय आधार पर असली जोखिमों का आकलन करेगा। - वैज्ञानिक जोखिम संचार सुधारे
सरल और पारदर्शी भाषा का उपयोग करें ताकि उपभोक्ता बेहतर समझ सकें।
पुराने चेतावनी लेबल हटाएं जो वैश्विक वैज्ञानिक सहमति से समर्थित नहीं हैं (जैसे MSG)। - संस्थागत विश्वास बनाएँ
हितधारकों – उपभोक्ता, वैज्ञानिक, उद्योग – के साथ संवाद मजबूत करें।
निर्णय को भय की बजाय प्रमाणों पर आधारित रखें, खुली जानकारी और सुलभ दिशा-निर्देश प्रदान करें।
निष्कर्ष
- भारत की खाद्य सुरक्षा का रूपांतरण वैश्विक सफलता की कहानी है।
- पर अगला चरण केवल मानकों तक सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि इसमें वैज्ञानिक ईमानदारी, पारदर्शिता और विश्वास भी होना चाहिए। विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस की पूर्व संध्या पर ध्यान केवल नियामक प्रवर्तन पर नहीं, बल्कि सार्वजनिक विश्वास, संचार और अनुसंधान-आधारित नीति निर्माण पर होना चाहिए।
- भविष्य का खाद्य सुरक्षित, वैज्ञानिक और नागरिकों द्वारा विश्वसनीय होना चाहिए।