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संदर्भ

भारत ने राष्ट्रीय रोगाणुरोधी प्रतिरोध कार्ययोजना (NAP-AMR 2.0), अवधि 2025–29 के लिए प्रारम्भ की है, ऐसे समय में जब एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस (AMR) वैश्विक तथा राष्ट्रीय स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक बन चुका है।
एंटीबायोटिक प्रतिरोध अस्पतालों तक सीमित नहीं है—यह मृदा, जल, पशुधन और खाद्य प्रणालियों के माध्यम से फैलता है, जिससे वन हेल्थ (One Health) की चुनौती उत्पन्न होती है।
लेख इस बात पर बल देता है कि भारत ने प्रगति अवश्य की है, परन्तु सशक्त राष्ट्रव्यापी क्रियान्वयन और समन्वय अभी भी कमजोर है।

1. विकास की यात्रा: NAP-AMR 1.0 से 2.0 तक

पहली कार्ययोजना (2017–2021) इस संकट से निपटने का भारत का पहला संरचित राष्ट्रीय प्रयास थी।

  • इसने जनजागरूकता बढ़ाई।
  • बहु-क्षेत्रीय सहयोग (multi-sectoral collaboration) को बढ़ावा दिया।
  • मानव, पशु और पर्यावरण स्वास्थ्य को जोड़ते हुए वन हेल्थ दृष्टिकोण को प्रोत्साहित किया।

किन्तु क्रियान्वयन केवल कुछ राज्यों—केरल, तमिलनाडु, गुजरात, दिल्ली आदि—तक सीमित रहा।

अधिकांश राज्यों में समर्पित कार्ययोजना और संस्थागत ढाँचे का अभाव था, जिसके कारण प्रतिक्रियाएँ असंगठित और स्थानीय स्तर पर असमान रहीं।


2. AMR क्यों महत्वपूर्ण है: एक वन हेल्थ चुनौती

AMR का प्रभाव निम्न क्षेत्रों पर पड़ता है:

  • मानव स्वास्थ्य
  • कृषि
  • पशु चिकित्सा प्रणाली
  • जलीय कृषि (aquaculture)
  • पर्यावरण

मानवों और पशुओं में एंटीबायोटिक का अतिरिक्त एवं अनुचित उपयोग, खराब अपशिष्ट प्रबंधन तथा कमजोर विनियमन प्रतिरोध को तेजी से बढ़ा रहे हैं।

भारत दोहरी चुनौती का सामना कर रहा है:

  1. संक्रामक रोगों का उच्च बोझ (जहाँ एंटीबायोटिक का उपयोग अनिवार्य हो जाता है)
  2. नियमन और निगरानी की कमजोरी (ओवर-द-काउंटर दवाइयाँ, पोल्ट्री/डेयरी में दुरुपयोग)

3. NAP-AMR 2.0 (2025–2029) की प्रमुख विशेषताएँ

यह योजना अधिक परिपक्व, समन्वित और मिशन-उन्मुख ढाँचे का प्रतिनिधित्व करती है। इसमें शामिल है:

  • मंत्रालयों के बीच स्पष्ट भूमिकाएँ, दायित्व और संसाधन-संरेखण
  • निजी क्षेत्र की सक्रिय भागीदारी—विशेषकर स्वास्थ्य सेवा व फार्मा उद्योग
  • तीव्र निदान (rapid diagnostics), एंटीबायोटिक के विकल्प और पर्यावरणीय निगरानी पर जोर
  • यह मान्यता कि AMR केवल चिकित्सा नहीं, बल्कि खाद्य प्रणाली, पर्यावरण और अर्थव्यवस्था की चुनौती भी है

4. आवश्यक संस्थागत एवं शासन सुधार

योजना में NITI Aayog के तहत एक राष्ट्रीय निगरानी तंत्र तथा राज्यों में AMR सेल स्थापित करने की परिकल्पना है।

परन्तु लेख चेतावनी देता है कि मजबूत शासन के अभाव में NAP-AMR 2.0 केवल “दस्तावेज़” बनकर न रह जाए, यह सुनिश्चित करना होगा कि यह कार्यान्वित भी हो।

सुझावित सुधार:

  • केंद्र–राज्य संयुक्त समीक्षा हेतु एक AMR प्लेटफ़ॉर्म
  • अस्पताल, पशु-चिकित्सा और पर्यावरणीय डेटा को एकीकृत करने वाले डेटा डैशबोर्ड
  • राज्यों को वित्तीय स्वायत्तता तथा जवाबदेही तंत्र प्रदान करना

5. वित्तपोषण और बहु-विभागीय सहभागिता

वर्तमान वित्तपोषण—राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) और ICMR कार्यक्रमों के माध्यम से—पर्याप्त नहीं है।

भारत को AMR-लिंक्ड सशर्त वित्तपोषण की आवश्यकता है, जिससे बेहतर निगरानी व रिपोर्टिंग को प्रोत्साहन मिले।

वन हेल्थ ढाँचे को वास्तविक रूप देने के लिए स्वास्थ्य, कृषि, मत्स्य, पशुपालन तथा पर्यावरण मंत्रालयों के बीच सहयोग अनिवार्य है।


6. निजी क्षेत्र और नवाचार

नवाचार हेतु निजी क्षेत्र की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है:

  • नए एंटीबायोटिक, वैक्सीन और निदान तकनीकों हेतु R&D
  • फार्मा उद्योग में अपशिष्ट प्रबंधन और ग्रीन मैन्युफैक्चरिंग
  • निजी क्षेत्र के बिना योजना का विस्तार और दीर्घकालिक स्थिरता संभव नहीं

7. वैश्विक एवं राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य

भारत वैश्विक एंटीबायोटिक उपभोग का लगभग 30% हिस्सा रखता है और E. coli, Klebsiella तथा Acinetobacter में प्रतिरोध तेजी से बढ़ रहा है।

WHO के GLASS (Global AMR Surveillance System) ने भारत को उच्च-प्राथमिकता वाले देशों में शामिल किया है।

NAP-AMR 2.0 की सफलता भारत की वैश्विक AMR नियंत्रण प्रयासों में नेतृत्व भूमिका तय करेगी।


निष्कर्ष

“भारत के पास नीति का खाका (blueprint) तैयार है, अब आवश्यकता है प्रभावी क्रियान्वयन की।”

संपादकीय का तर्क है कि NAP-AMR 2.0 केवल नौकरशाही अभ्यास न बने, बल्कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य सुरक्षा मिशन के रूप में लागू हो।

सफलता के लिए आवश्यक है:

  • राज्यों को पर्याप्त धन और autonomy प्रदान करना
  • NITI Aayog के तहत संयुक्त निगरानी तंत्र स्थापित करना
  • मानव, पशु और पर्यावरण स्वास्थ्य की एकीकृत निगरानी प्रणाली विकसित करना

केवल एक बहु-क्षेत्रीय, पर्याप्त वित्तपोषित और जवाबदेह राष्ट्रीय तंत्र ही भारत की AMR योजना को “नीति दस्तावेज़” से उठाकर वैश्विक स्तर पर एक आदर्श मॉडल में रूपांतरित कर सकता है।


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