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प्रस्तावना

भारत आज विश्व की उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं में अग्रणी है और लगभग $4.19 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था बन चुका है। यह न केवल वैश्विक विकास कथा में अपनी मजबूत जगह बना रहा है बल्कि विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की राह पर है। किंतु यह प्रगति केवल आँकड़ों तक सीमित नहीं रह सकती, क्योंकि बढ़ते अमेरिकी टैरिफ तथा घरेलू संरचनात्मक समस्याएँ इस गति को चुनौती दे रही हैं। विशेष रूप से, श्रम-प्रधान क्षेत्रों में कार्यरत महिलाओं की सीमित आर्थिक भागीदारी भारत की आर्थिक संवेदनशीलताओं का एक महत्वपूर्ण लेकिन अक्सर उपेक्षित आयाम है।
यह प्रश्न केवल आर्थिक विकास बनाम आर्थिक संकट का नहीं, बल्कि समानता बनाम असमानता का भी है।

भारत की आर्थिक संवेदनशीलताएँ और लैंगिक पहलू

1. श्रम-प्रधान क्षेत्रों पर असर

  • अमेरिका द्वारा प्रस्तावित 50% टैरिफ से वस्त्र, रत्न, चमड़ा व जूता उद्योग प्रभावित होंगे।
  • ये क्षेत्र लगभग 5 करोड़ महिलाओं को रोजगार देते हैं; निर्यात में 50% तक गिरावट का खतरा है।

2. महिला श्रम शक्ति भागीदारी (FLFPR) का संकट

  • भारत की FLFPR केवल 37%–41.7% है, जबकि चीन में 60% और वैश्विक औसत भी अधिक है।
  • यह असमान भागीदारी भारत की आर्थिक मजबूती को कमज़ोर करती है।
  • IMF का अनुमान: यदि लैंगिक अंतर समाप्त हो जाए तो भारत की जीडीपी में 27% तक की वृद्धि संभव है।

3. जनसांख्यिकीय लाभांश का अवसर

  • 2045 तक भारत के पास डेमोग्राफिक डिविडेंड का अवसर है।
  • यदि महिलाएँ कार्यबल में शामिल नहीं हुईं तो यह विकास का अवसर छूट जाएगा
  • यूरोप के इटली व ग्रीस का अनुभव दिखाता है कि कम महिला भागीदारी दीर्घकालिक आर्थिक ठहराव लाती है।

4. चुनौतियाँ और सीमाएँ

  • सुरक्षा व परिवहन समस्याएँ महिलाओं की आवाजाही सीमित करती हैं।
  • अवैतनिक देखभाल कार्य का बोझ महिलाओं की उत्पादकता घटाता है।
  • नीतिगत उदासीनता और सांस्कृतिक प्रतिबंध अवसरों को सीमित करते हैं।
  • नियमों की कमजोरी: Noise Pollution Rules, 2000 या श्रम कानूनों की तरह, स्वास्थ्य और शिक्षा क्षेत्र में भी नियम तो हैं पर प्रभावी क्रियान्वयन का अभाव है।

वैश्विक अनुभव और भारतीय समाधान

अंतर्राष्ट्रीय उदाहरण

  • अमेरिका: द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान महिलाओं की श्रम-शक्ति को समान वेतन और childcare से जोड़ा।
  • चीन: 1978 के बाद सुधारों से FLFPR 60% तक बढ़ाया।
  • जापान: महिलाओं की भागीदारी 63% से 70% तक बढ़ी, जिससे GDP प्रति व्यक्ति 4% बढ़ा।
  • नीदरलैंड्स: weighted lottery प्रणाली ने मेडिकल प्रवेश में विविधता और समानता को बढ़ाया।

भारत के लिए आगे का रास्ता

  • बीमा सुदृढ़ीकरण : आयुष्मान भारत जैसी योजनाओं को OPD व डायग्नोस्टिक्स तक विस्तारित करना।
  • समानता आधारित प्रवेश नीति : 12वीं कक्षा के अंकों पर weighted lottery system अपनाना; ग्रामीण व महिला छात्रों को विशेष प्राथमिकता।
  • कोचिंग उद्योग का सुधार : व्यावसायिक कोचिंग को नियंत्रित/राष्ट्रीयकृत करना और निःशुल्क ऑनलाइन संसाधन उपलब्ध कराना।
  • डिजिटल व कौशल निवेश : ABDM, टेलीमेडिसिन, AI आधारित स्वास्थ्य समाधान, और महिला उद्यमियों हेतु कर प्रोत्साहन।
  • सामाजिक पुनरुत्थान : “सोनिक एम्पैथी” और नागरिक संवेदनशीलता बढ़ाकर स्वास्थ्य और शिक्षा के लिए अनुकूल वातावरण तैयार करना।

निष्कर्ष

भारत की आर्थिक चुनौतियाँ केवल बाहरी झटकों (जैसे अमेरिकी टैरिफ) से उत्पन्न नहीं होतीं, बल्कि महिलाओं की कम भागीदारी और सामाजिक असमानताओं से भी गहराई से जुड़ी हैं। यदि महिलाओं को शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा और रोजगार में समान अवसर मिलें तो यह न केवल सामाजिक न्याय होगा, बल्कि भारत के लिए दीर्घकालिक आर्थिक स्थिरता और वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता की गारंटी भी बनेगा।
भारत के सामने विकल्प स्पष्ट है—या तो वह तनावपूर्ण प्रतिस्पर्धा और असमानता की पुरानी राह पर अटका रहे, या फिर समानता, न्याय और सशक्तिकरण पर आधारित समावेशी विकास की नई राह पर चलकर विकसित भारत 2047 के सपने को साकार करे।


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