The Hindu Editorial Analysis in Hindi
5 December 2025
नई दिल्ली का सापेक्ष अलगाव, भारत का आतंकवाद से सामना
(Source – The Hindu, International Edition – Page No. – 8)
विषय: जीएस पेपर II और III – अंतर्राष्ट्रीय संबंध | आंतरिक सुरक्षा | आतंकवाद और पड़ोसी नीति
संदर्भ
यह संपादकीय भारत की बढ़ती कूटनीतिक एकाकीकरण (diplomatic isolation) और दक्षिण एशिया में बदलते क्षेत्रीय गतिशीलता के बीच पुनः उभरते आतंकवाद-संबंधी चुनौतियों पर चिंता व्यक्त करता है।
कभी क्षेत्रीय स्थिरता के सक्रिय हस्तक्षेपकर्ता के रूप में देखे जाने वाला भारत आज पश्चिम एशिया के संकटों से लेकर हिंद-प्रशांत (Indo-Pacific) की शक्ति प्रतिस्पर्धा तक—कई महत्वपूर्ण घटनाक्रमों में “हाशिये पर खड़ा” दिखाई देता है।
इसी पृष्ठभूमि में, आंतरिक तथा सीमा-पार आतंकवाद दोबारा राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए गंभीर चिंता का विषय बन रहे हैं।

1. भारत का रणनीतिक एकाकीकरण
भारत का कूटनीतिक प्रभाव आज भी सम्मानित है, परन्तु वर्तमान संकटों में उसका सक्रिय, निर्णायक हस्तक्षेप अपेक्षाकृत कम दिखाई देता है—जैसे:
- पश्चिम एशिया के संघर्ष (गाज़ा संकट, ईरान संकट),
- यूरोप की सुरक्षा अस्थिरता (यूक्रेन युद्ध),
- हिंद-प्रशांत क्षेत्र की नई सामरिक समीकरण।
लेखक का मानना है कि यह एक दुर्लभ क्षण है जब भारत क्षेत्रीय परिणामों को आकार देने वाले “सक्रिय खिलाड़ी” की बजाय एक “निष्क्रिय दर्शक” जैसा प्रतीत होता है।
दक्षिण एशिया में भी भारत कई उथल-पुथलपूर्ण स्थितियों का सामना कर रहा है—अफ़ग़ानिस्तान की अस्थिरता, नेपाल की राजनीतिक अनिश्चितता, म्यांमार का गृहयुद्ध—जिनके कारण भारत के विश्वसनीय क्षेत्रीय साझेदार सीमित होते जा रहे हैं।
2. शत्रुतापूर्ण पड़ोस: पाकिस्तान और बांग्लादेश
पश्चिमी सीमा — पाकिस्तान
- पाकिस्तान ने कश्मीर और परमाणु प्रतिरोध (nuclear deterrence) को लेकर आक्रामक बयानबाज़ी बढ़ाई है।
- 2024 के “सातवें संवैधानिक संशोधन विधेयक” ने पाकिस्तान के सेना प्रमुख को असाधारण अधिकार प्रदान किए हैं, जिससे नागरिक नियंत्रण कमजोर हुआ है।
- नारायणन इसे भारत की सुरक्षा संतुलन के लिए “गंभीर रूप से चिंताजनक” बताते हैं।
पूर्वी सीमा — बांग्लादेश
- बांग्लादेश धीरे-धीरे पाकिस्तान और चीन के निकट झुकता प्रतीत हो रहा है।
- आधी सदी बाद किसी पाकिस्तानी नौसैनिक जहाज का बांग्लादेश की यात्रा पर जाना इस बदलते सामरिक समीकरण का प्रतीक है।
- यह भारत के लिए संभावित दो-मोर्चीय (two-front) चुनौती पैदा करता है।
निष्कर्ष: भारत का पड़ोस, जो कभी उसकी लोकतांत्रिक शक्ति और आर्थिक आकर्षण से प्रभावित था, अब भू-राजनीतिक तौर पर उससे दूर होता दिख रहा है।
3. ‘अर्बन टेरर’ का पुनरुत्थान
लेख में शहरी आतंकवाद (urban terror) के खतरनाक पुनरुत्थान पर प्रकाश डाला गया है—जो लगभग एक दशक की शांति के बाद फिर उभर रहा है।
- हाल के महीनों में फरीदाबाद, दिल्ली और जम्मू-कश्मीर में पकड़े गए मॉड्यूलों में शिक्षित पेशेवर, मेडिकल छात्र, और तकनीकी विशेषज्ञ शामिल हैं।
- इनके तार जैश-ए-मोहम्मद, लश्कर-ए-तैयबा और पाकिस्तान की सुरक्षा एजेंसियों से जुड़े पाए गए हैं।
लेखक चेतावनी देते हैं कि भारत का बहुधार्मिक, बहु-क्षेत्रीय सामाजिक ढांचा आतंकवाद को केवल “कानून-व्यवस्था” की समस्या नहीं रहने देता, बल्कि यह सामाजिक एकता और राष्ट्रीय अखंडता के लिए भी गंभीर खतरा बन जाता है।
4. तुलनात्मक परिप्रेक्ष्य — 1990 के दशक की पुनरावृत्ति
आज दिखाई दे रहा वैचारिक उग्रवाद (ideological radicalisation) 1990 के दशक के उस दौर की याद दिलाता है जब:
- बाबरी मस्जिद विध्वंस
- तथा उसके बाद की साम्प्रदायिक हिंसा
के बाद कश्मीर से लेकर महानगरों तक आतंकवादी गतिविधियाँ फैल गई थीं।
लेकिन इस बार नेटवर्क:
- अधिक विकेन्द्रित (diffuse),
- डिजिटल रूप से सक्षम,
- और वैश्विक स्तर पर जुड़ा हुआ है—
जहाँ भर्ती और धनराशि पाकिस्तान, यूएई और तुर्की तक से आ रही हैं।
5. नीति-सुझाव: भारत को क्या करना चाहिए
(1) कूटनीतिक पुनः-सक्रियता
- पश्चिम एशिया और हिंद-प्रशांत मंचों में भारत की सक्रिय भागीदारी बढ़ाना।
- बांग्लादेश, नेपाल और श्रीलंका के साथ गहरे द्विपक्षीय संबंधों को सुदृढ़ कर चीन-पाकिस्तान के प्रभाव को संतुलित करना।
(2) आतंक-रोधी संरचना का सुदृढ़ीकरण
- IB, RAW और राज्य एजेंसियों के बीच खुफिया समन्वय का आधुनिकीकरण।
- शहरी क्षेत्रों में डि-रैडिकलाइजेशन कार्यक्रम, तथा डिजिटल प्रचार तंत्र की निगरानी।
(3) सामाजिक-राजनीतिक एकता
- अल्पसंख्यक तथा क्षेत्रीय समुदायों में疏न्यूनता-बोध रोकने हेतु संवाद-आधारित, समावेशी शासन को प्राथमिकता देना।
(4) रणनीतिक तैयारियाँ
- पाकिस्तान के साथ सीमित संघर्ष की संभावना और दो-मोर्चीय दबाव को ध्यान में रखते हुए सैन्य सतर्कता बनाए रखना।
निष्कर्ष
“भारत न तो एकाकीपन का जोखिम उठा सकता है और न ही निष्क्रियता का।”
एम. के. नारायणन का तर्क है कि भारत की कूटनीतिक अनिच्छा और उभरते सुरक्षा जोखिमों के प्रति धीमी प्रतिक्रियाएँ शत्रुतापूर्ण शक्तियों और आतंकी नेटवर्कों को प्रोत्साहित कर सकती हैं।
वे एक संतुलित दृष्टिकोण की वकालत करते हैं—विदेशों में सक्रिय रणनीतिक पुनः-सक्रियता और देश के भीतर सामाजिक-राजनीतिक एकता।
भारत की क्षेत्रीय शक्ति के रूप में विश्वसनीयता केवल उसकी आर्थिक प्रगति पर नहीं, बल्कि सुरक्षा स्थिरता और पड़ोसी देशों के साथ विश्वास-निर्माण की क्षमता पर निर्भर करती है।