The Hindu Editorial Analysis in Hindi
18 October 2025
नई दिल्ली यात्रा के बाद अफ़ग़ानिस्तान के लिए अगले कदम
(Source – The Hindu, International Edition – Page No. – 8)
Topic : सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र II: अंतर्राष्ट्रीय संबंध | सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र III: आंतरिक सुरक्षा – सीमा पार आतंकवाद, नार्को-आतंकवाद
प्रसंग
अफ़ग़ानिस्तान के कार्यवाहक विदेश मंत्री अमीर ख़ान मुत्ताक़ी का हाल ही में नई दिल्ली दौरा भारत की तालिबान-शासित शासन से व्यावहारिक पुनःसंवाद नीति में एक महत्त्वपूर्ण चरण को दर्शाता है।
यह दौरा इस बात का संकेत है कि भारत चरणबद्ध रूप से राजनयिक और विकासात्मक जुड़ाव की नीति अपना रहा है, जिसका उद्देश्य मानवीय सहायता और आर्थिक पहलों के माध्यम से अफ़ग़ानिस्तान को स्थिर करना है, साथ ही भारत की सुरक्षा और क्षेत्रीय हितों की रक्षा करना भी।

संपादकीय के अनुसार भारत की यह नीति आदर्शवाद या प्रतिक्रियात्मक दृष्टिकोण के बजाय यथार्थवाद (Realism) पर आधारित होनी चाहिए — जो ज़मीनी वास्तविकताओं, नशीले पदार्थों के नियंत्रण, शिक्षा, और नदी जल प्रबंधन जैसे व्यावहारिक क्षेत्रों पर केंद्रित हो।
1. पृष्ठभूमि: अलगाव से सतर्क जुड़ाव तक
(a) 2021 के बाद भारत की नीति में परिवर्तन
अगस्त 2021 में तालिबान के सत्ता में आने के बाद भारत ने प्रारंभ में अपनी दूतावास गतिविधियाँ और सहायता परियोजनाएँ निलंबित कर दी थीं।
परंतु शीघ्र ही भारत ने यह महसूस किया कि पूर्ण अलगाव रणनीतिक रूप से हानिकारक है।
इसके बाद भारत ने काबुल में एक तकनीकी मिशन पुनः स्थापित किया, जो मानवीय सहायता, बुनियादी ढाँचे के रखरखाव, और क्षेत्रीय सुरक्षा सहयोग पर केंद्रित है।
(b) नई दिल्ली यात्रा का महत्व
अमीर ख़ान मुत्ताक़ी की यह यात्रा तालिबान सरकार और भारत के बीच पहला उच्च-स्तरीय संपर्क थी।
संयुक्त वक्तव्य में दो मुख्य बिंदु उभरकर आए —
- अफ़ग़ानिस्तान का वचन कि उसकी भूमि का उपयोग भारत-विरोधी आतंकवाद के लिए नहीं होने दिया जाएगा।
- भारत की पुनःप्रतिबद्धता कि वह अफ़ग़ान जनता को मानवीय व विकासात्मक सहायता प्रदान करता रहेगा।
हालाँकि इस दौरे को पाकिस्तान ने संदेह की दृष्टि से देखा, परंतु यह भारत की स्वतंत्र राजनयिक नीति का उदाहरण है।
2. आतंकवाद और जमीनी वास्तविकताएँ
(a) भारत की सुरक्षा चिंताएँ
भारत की प्रमुख चिंता अफ़ग़ानिस्तान में सक्रिय भारत-विरोधी आतंकी नेटवर्क हैं — विशेष रूप से तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) और इस्लामिक स्टेट-खुरासान प्रांत (IS-K)।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) की 2025 रिपोर्ट के अनुसार, तालिबान IS-K से संघर्षरत है, परंतु TTP के प्रति नरमी बरतकर पाकिस्तान से संबंध बनाए रख रहा है।
तालिबान की यह दोहरी नीति भारत की विरोधी-आतंक कूटनीति को जटिल बना देती है।
(b) पाकिस्तान की दुविधा
पाकिस्तान चाहता है कि काबुल TTP पर कार्रवाई करे, पर उसे अपने भीतर प्रतिशोधी हिंसा का भय है।
भारत इसे सीधे काबुल से संवाद करने के अवसर के रूप में देखता है, जिससे पाकिस्तान का अफ़ग़ान नीति पर एकाधिकार कमजोर हो सके।
3. नशीली अर्थव्यवस्था और भारत की भूमिका
(a) अफ़ीम की समस्या
अफ़ग़ानिस्तान की अर्थव्यवस्था आज भी अफ़ीम की खेती और मादक पदार्थों की तस्करी पर निर्भर है, जो GDP का लगभग 15% भाग बनाती है।
हालाँकि तालिबान ने अफ़ीम की खेती पर प्रतिबंध की घोषणा की है, पर मेथ (Meth) और अफ़ीम उत्पादन में वृद्धि की रिपोर्टें आ रही हैं।
(b) भारत की संभावित भूमिका
भारत निम्नलिखित तरीकों से योगदान दे सकता है —
- फसल प्रतिस्थापन कार्यक्रमों के माध्यम से अफ़ीम उन्मूलन और वैकल्पिक आजीविका को जोड़ना।
- एनसीबी (Narcotics Control Bureau) के प्रशिक्षण कार्यक्रमों का विस्तार कर अफ़ग़ान एजेंसियों को प्रशिक्षित करना।
- सतत कृषि और सिंचाई तकनीक में विशेषज्ञता प्रदान कर अवैध अर्थव्यवस्था पर निर्भरता घटाना।
यह नीति भारत की सॉफ्ट पावर (क्षमता निर्माण) को राष्ट्रीय सुरक्षा हितों से जोड़ती है।
4. आर्थिक और जल कूटनीति
(a) शहतूत बाँध और सिंधु जल विवाद
काबुल में शहतूत बाँध परियोजना को लेकर भारत की प्रतिबद्धता फिर से चर्चा में है। पाकिस्तान को आशंका है कि इससे सिंधु नदी के प्रवाह में 16% तक कमी आ सकती है।
संपादकीय के अनुसार —
- भारत और पाकिस्तान को अफ़ग़ानिस्तान को शामिल करते हुए एक नया नदी जल-साझेदारी ढाँचा विकसित करना चाहिए।
- काबुल नदी बेसिन को एक संयुक्त जल प्रणाली के रूप में देखा जाए ताकि यह क्षेत्रीय सहयोग का माध्यम बने, विवाद का नहीं।
(b) काबुल की आधारभूत संरचना का पुनर्निर्माण
वर्षों के युद्ध ने काबुल की शहरी सेवाओं को नष्ट कर दिया है; रिपोर्टों में चेतावनी दी गई है कि 2030 तक काबुल में जल संकट हो सकता है।
भारत निम्नलिखित क्षेत्रों में सहयोग कर सकता है —
- शहरी जल प्रबंधन,
- सौर ऊर्जा पुनर्स्थापन, और
- सिंचाई व्यवस्था के पुनर्जीवन में।
5. शिक्षा और महिला सशक्तिकरण
(a) तालिबान की शैक्षणिक नीति
शिक्षा, विशेषकर महिलाओं की शिक्षा, अफ़ग़ानिस्तान का सबसे विवादास्पद सामाजिक प्रश्न है।
मध्यमार्गी धर्मगुरु अब्दुल बाक़ी हक़्क़ानी, जिन्होंने महिला शिक्षा का समर्थन किया था, उन्हें कट्टरपंथी गुटों द्वारा दरकिनार कर दिया गया है।
(b) भारत की भूमिका
भारत निम्नलिखित कदम उठा सकता है —
- ICCR छात्रवृत्तियाँ पुनः प्रारंभ कर ऑनलाइन और दूरस्थ शिक्षा के अवसर बढ़ाना।
- महिलाओं और युवाओं के लिए विशेष विनिमय कार्यक्रम (exchange programs) शुरू करना।
- अफ़ग़ानिस्तान में भारत की भविष्य की निवेश परियोजनाओं (खनन, ऊर्जा, जल प्रबंधन) से व्यावसायिक प्रशिक्षण को जोड़ना।
शिक्षा भारत के लिए अफ़ग़ानिस्तान में दीर्घकालिक प्रभाव का सेतु बनी रहनी चाहिए, चाहे राजनीतिक परिस्थितियाँ अस्थिर क्यों न हों।
6. भारत का रणनीतिक उद्देश्य: समावेशन के माध्यम से स्थिरता
(a) लक्ष्य: एक स्थिर अफ़ग़ानिस्तान
भारत का मूल सिद्धांत यह होना चाहिए कि वह अफ़ग़ानिस्तान को मानवीय भागीदार के रूप में स्थिर करे, पाकिस्तान के प्रतिद्वंद्वी या संरक्षक के रूप में नहीं।
इसके लिए आवश्यक है एक समन्वित शासन दृष्टिकोण (Whole-of-Government Approach), जिसमें निम्न मंत्रालयों के बीच तालमेल हो —
- विदेश मंत्रालय,
- गृह व रक्षा मंत्रालय (आतंकवाद-रोधी नीति के लिए), और
- वाणिज्य व शिक्षा मंत्रालय (विकासात्मक पहुँच के लिए)।
(b) पाकिस्तान की प्रतिक्रिया
जहाँ पाकिस्तान भारत की पहल को रणनीतिक घेराबंदी मानता है, वहीं एक स्थिर अफ़ग़ानिस्तान दोनों देशों के लिए लाभकारी है —
यह कट्टरवाद को कम, शरणार्थी प्रवाह को नियंत्रित, और नशे की तस्करी को सीमित करेगा।
भारत की चुनौती यह है कि वह व्यावहारिक सहयोग करे लेकिन लोकतांत्रिक मूल्यों और मानवाधिकारों से समझौता न करे।
निष्कर्ष
भारत का तालिबान-शासित अफ़ग़ानिस्तान से पुनःसंवाद प्रतीकात्मकता से आगे बढ़कर एक बहुआयामी नीति में बदलना चाहिए, जो केंद्रित हो —
- सुरक्षा सहयोग पर,
- आर्थिक पुनर्निर्माण पर,
- जल एवं कृषि कूटनीति पर, और
- मानवीय साझेदारी पर।
अमीर ख़ान मुत्ताक़ी की यह यात्रा क्षेत्रीय स्थिरता की दिशा में एक कदम के रूप में देखी जानी चाहिए, न कि तालिबान शासन की मान्यता के रूप में।
रणनीतिक धैर्य और विकासात्मक यथार्थवाद को जोड़कर भारत फिर से अफ़ग़ानिस्तान का सबसे विश्वसनीय और निरंतर साझेदार बन सकता है।
“एक स्थिर अफ़ग़ानिस्तान कोई शून्य-योग खेल नहीं, बल्कि क्षेत्रीय आवश्यकता है — और भारत को करुणा के साथ, रणनीति के आधार पर नेतृत्व करना चाहिए।”