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प्रस्तावना

भारत में मुक्त और निष्पक्ष चुनाव लोकतंत्र की आधारशिला हैं। मतदाता सूची की सटीकता सार्वभौमिक मताधिकार को सुनिश्चित करने के लिए अनिवार्य है। किंतु, हाल ही में बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के दौरान कठोर नौकरशाही प्रक्रिया के कारण लाखों योग्य नागरिक सूची से बाहर हो गए। इस पृष्ठभूमि में सर्वोच्च न्यायालय का निर्देश कि आधार को 12 वैध दस्तावेज़ों में शामिल किया जाए, प्रक्रिया को न्यायसंगत और समावेशी बनाने की दिशा में महत्त्वपूर्ण हस्तक्षेप है।

मुख्य मुद्दे

त्रुटिपूर्ण ECI तर्क

  • चुनाव आयोग ने आधार को इसलिए खारिज किया कि यह निवास प्रमाण है, नागरिकता का नहीं।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने इसे अस्वीकार करते हुए कहा कि पासपोर्ट या जन्म प्रमाणपत्र भी नागरिकता का निर्णायक प्रमाण नहीं होते।

बहिष्करणात्मक परिणाम

  • बिहार में 65 लाख से अधिक मतदाता सूची से हटाए जा चुके थे।
  • The Hindu की रिपोर्ट में विसंगतियाँ सामने आईं –
    • महिलाओं का अनुपातहीन हटना।
    • मृत्यु दर की अवास्तविक गणना।
    • “स्थायी रूप से स्थानांतरण” जैसी संदेहास्पद श्रेणियाँ।

हाशिये के समूहों पर असर

  • पासपोर्ट केवल 2% नागरिकों के पास है।
  • आधार को न मानने से गरीब, प्रवासी मजदूर और विवाहित महिलाएँ विशेष रूप से प्रभावित होतीं।

नीतिगत और नैतिक आयाम

  • प्रक्रियात्मक न्याय (Procedural Justice): न्यायालय ने स्पष्ट किया कि प्रक्रिया की कठोरता substantive न्याय से ऊपर नहीं हो सकती।
  • समानता और समावेशन: आधार को शामिल करना लोकतंत्र में कमजोर वर्गों की आवाज़ को सुनिश्चित करता है।
  • संवैधानिक नैतिकता: यह निर्णय मतदान अधिकार को संवैधानिक गारंटी के रूप में सुदृढ़ करता है।

प्रभाव

  • बिहार में : तुरंत राहत, प्रतिनिधिक सूची सुनिश्चित।
  • ECI के लिए : भविष्य में राष्ट्रीय स्तर पर संशोधनों हेतु समावेशी दृष्टिकोण की मिसाल।
  • लोकतंत्र में : नागरिकों का विश्वास बढ़ेगा और मताधिकार से वंचित होने का जोखिम घटेगा।

आगे की राह

  • आयोग को मानवीय, सतर्क और सहभागी दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।
  • डिजिटल साधनों और फील्ड वेरिफिकेशन का संयोजन आवश्यक।
  • सिविल सोसायटी की भागीदारी और परामर्श अनिवार्य।
  • दस्तावेज़ प्रामाणिकता के लिए स्पष्ट मानक स्थापित हों।

निष्कर्ष

सर्वोच्च न्यायालय का यह फैसला समावेशी लोकतंत्र की जीत है। आधार को वैध दस्तावेज़ मानकर यह सुनिश्चित किया गया कि प्रक्रियात्मक कठोरता संवैधानिक मतदान अधिकार पर हावी न हो। आगे चलकर चुनाव आयोग को मतदाता सूची को मात्र तकनीकी दस्तावेज़ नहीं, बल्कि जन-संप्रभुता की आधारशिला मानते हुए यह सुनिश्चित करना होगा कि कोई भी नागरिक अन्यायपूर्वक इससे बाहर न किया जाए।


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