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संदर्भ

भारत का सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) क्षेत्र, जो कभी वैश्विक गतिशीलता और मध्यमवर्गीय आकांक्षाओं का प्रतीक था, आज एक निर्णायक मोड़ पर खड़ा है।
टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज़ (TCS) में लगभग 20,000 और अमेज़न में 14,000 नौकरियों की छंटनी, साथ ही स्वचालन (Automation), घटती विदेशी मांग और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) के प्रसार ने यह स्पष्ट किया है कि यह क्षेत्र पतन नहीं, बल्कि संरचनात्मक परिवर्तन (Structural Transformation) के दौर से गुजर रहा है।

भारत के आईटी उद्योग का कायांतरण

पतन नहीं, परिवर्तन

यह क्षेत्र श्रम-प्रधान आउटसोर्सिंग मॉडल से ज्ञान-प्रधान नवाचार प्रणाली में विकसित हो रहा है।
स्वचालन और कृत्रिम बुद्धिमत्ता ने नौकरी की भूमिकाओं को पूरी तरह पुनर्परिभाषित कर दिया है — पारंपरिक प्रोग्रामिंग और समन्वय कार्य अब मशीन लर्निंग, जनरेटिव एआई (Generative AI) और सिस्टम इंटीग्रेशन जैसी उन्नत तकनीकों द्वारा प्रतिस्थापित किए जा रहे हैं।


कौशल की मांग में परिवर्तन

मध्यम-स्तरीय पेशेवर, जो कभी ऑफशोर परियोजनाओं की रीढ़ थे, अब अप्रासंगिक होते जा रहे हैं, क्योंकि ग्राहक अब विशिष्ट विशेषज्ञता, लचीली टीमों और एआई तथा एनालिटिक्स की गहरी समझ को प्राथमिकता दे रहे हैं।
परंपरागत कौशल जैसे SAP ERP या जावा कोडिंग अब क्लाउड प्लेटफ़ॉर्म और डेटा-संचालित प्रणालियों के युग में अप्रचलित होते जा रहे हैं।


‘मौन छंटनी’ (Silent Layoffs)

प्रत्यक्ष नौकरी कटौती से परे, कंपनियाँ अब प्रदर्शन-आधारित निकासी, स्वैच्छिक त्यागपत्र और पदोन्नति में देरी जैसे उपायों के माध्यम से अपने कार्यबल को धीरे-धीरे कम कर रही हैं।

असेम्बली-लाइन मॉडल का अंत

भारत का आईटी उछाल कभी इस मॉडल पर आधारित था कि युवाओं को बुनियादी कोडिंग में प्रशिक्षित कर कम लागत पर विदेशी परियोजनाओं में लगाया जाए। यह मॉडल अब अप्रासंगिक हो चुका है।
अब ग्राहक सृजनात्मक समस्या-समाधान, डिज़ाइन थिंकिंग और जनरेटिव एआई के समावेशन की अपेक्षा करते हैं — केवल कोडिंग करने वाली विशाल टीमों की नहीं।
इसलिए भारत के कार्यबल का पुनःप्रशिक्षण (Retraining) और कौशल-वृद्धि (Upskilling) अनिवार्य है ताकि वह नई डिजिटल अर्थव्यवस्था के अनुरूप बन सके।

नीति और शिक्षा की अनिवार्यताएँ

व्यापक स्तर पर कौशल-विकास

भारत को लगभग 5.5 लाख कर्मचारियों को बुनियादी एआई कौशल और 1 लाख कर्मचारियों को उन्नत एआई कौशल में प्रशिक्षित करने की आवश्यकता है।
सरकार को शिक्षा पाठ्यक्रम में कृत्रिम बुद्धिमत्ता, मशीन लर्निंग और कम्प्यूटेशनल थिंकिंग को समाविष्ट करना चाहिए।
उद्योग और अकादमिक संस्थानों के बीच सहयोग प्रशिक्षण को बाज़ार की आवश्यकताओं के अनुरूप बनाए रखने के लिए आवश्यक है।

शिक्षा एवं श्रम नीति की पुनर्कल्पना

राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP 2020) की डिजिटल साक्षरता दृष्टि को अब स्वचालन-प्रधान श्रम बाज़ारों में रोज़गार-योग्यता (Employability) पर केंद्रित किया जाना चाहिए।
सार्वजनिक–निजी भागीदारी (Public-Private Partnership) के माध्यम से पुनःकौशल (Reskilling) को वैश्विक मांग के अनुरूप दिशा दी जानी चाहिए।

सामाजिक सुरक्षा और श्रम स्थिरता

स्वचालन के बढ़ते प्रभाव के साथ, भारत को नौकरी संक्रमण सहायता (Job Transition Support) और विस्थापित श्रमिकों के लिए नई सामाजिक सुरक्षा प्रणालियाँ सुनिश्चित करनी होंगी।

आगे की राह

आईटी क्षेत्र को आउटसोर्सिंग केंद्र से आगे बढ़कर एक वैश्विक नवाचार अग्रणी (Global Innovation Leader) बनना होगा — अनुसंधान एवं विकास (R&D), एआई समाधान और बौद्धिक संपदा सृजन पर केंद्रित रहते हुए।
भारत की डिजिटल कूटनीति और स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र को श्रम लागत के बजाय नवाचार-आधारित निर्यात को प्रोत्साहित करना चाहिए।
नीतिनिर्माताओं को समावेशी पुनःकौशल पारिस्थितिकी तंत्र में निवेश करना चाहिए ताकि एआई संक्रमण की प्रक्रिया में कोई पीछे न छूटे।

निष्कर्ष

भारत की आईटी कहानी समाप्त नहीं हो रही, बल्कि विकसित हो रही है — ‘मैनपावर’ से ‘माइंडपावर’ की ओर।
आने वाला दशक कौशल, कार्य-संस्कृति और नीतियों के पुनर्निर्माण की माँग करता है ताकि भारत वैश्विक डिजिटल अर्थव्यवस्था में प्रासंगिक बना रहे।

“यदि भारत की आईटी क्रांति कोड पर आधारित थी, तो उसका अगला उछाल रचनात्मकता पर आधारित होगा।”


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