Achieve your IAS dreams with The Core IAS – Your Gateway to Success in Civil Services

संदर्भ

यह संपादकीय भारत की संभावित विकास दर (Potential Growth Rate) की पड़ताल करता है — अर्थात् वह अधिकतम दर जिस पर अर्थव्यवस्था बिना मुद्रास्फीति के दबाव उत्पन्न किए बढ़ सकती है। हाल के जीडीपी आँकड़े 2025–26 की पहली तिमाही (Q1) में 7.8% वृद्धि दर्शाते हैं, जिससे यह बहस शुरू हुई है कि क्या भारत की संभावित विकास दर पहले के 6.5% के अनुमान से आगे बढ़ी है।

लेखक इनक्रिमेंटल कैपिटल आउटपुट रेश्यो (ICOR) और ग्रॉस फिक्स्ड कैपिटल फॉर्मेशन (GFCF) की प्रवृत्तियों के आधार पर इस विकास की स्थिरता का मूल्यांकन करते हैं। उनका तर्क है कि जहाँ भारत की अल्पकालिक वृद्धि सशक्त है, वहीं दीर्घकालिक संभावित वृद्धि निवेश पुनरुद्धार, तकनीकी प्रगति और संरचनात्मक सुधारों पर निर्भर करेगी।

1. संभावित विकास और ICOR की समझ

(a) परिभाषा

  • संभावित विकास दर: वह स्थायी दर जिस पर जीडीपी में वृद्धि स्थिर मुद्रास्फीति के साथ संगत रहती है।
  • ICOR (इनक्रिमेंटल कैपिटल आउटपुट रेश्यो): पूँजी की उत्पादकता को मापता है; ICOR जितना कम होगा, निवेश की उत्पादकता उतनी अधिक होगी।

(b) वर्तमान आँकड़े और निष्कर्ष

  • Q1 (2022–23 से 2024–25) के दौरान औसत जीडीपी वृद्धि: 9.9%
  • Q1 2025–26 में वृद्धि: 7.8%, जो महामारी के बाद के औसत से कम है — यह गति के ठहराव को इंगित करता है।
  • वार्षिक औसत जीडीपी वृद्धि (2022–23 से 2024–25): 7.6%, 9.2%, और 6.5% क्रमशः।

लेखक बताते हैं कि 2025–26 की पहली तिमाही में वास्तविक सकल मूल्य वर्धन (GVA) 7.6% रहा, जो पहले के 9.5% औसत से कम है। उनका निष्कर्ष है कि पहले की उच्च वृद्धि मुख्यतः कोविड-19 व्यवधानों के बाद की पुनर्प्राप्ति थी, न कि संरचनात्मक सुधारों का परिणाम।

2. विकास के प्रेरक तत्व और क्षेत्रीय योगदान

(a) विनिर्माण क्षेत्र के रूप में प्रमुख इंजन

  • Q1 2025–26 में विनिर्माण वृद्धि: 7.7%, जो पिछले तीन वर्षों के Q1 औसत (5.8%) से अधिक है।
  • अन्य प्रदर्शनकारी क्षेत्र: परिवहन, व्यापार, और वित्तीय सेवाएँ
  • जबकि लोक प्रशासन और रियल एस्टेट क्षेत्रों की वृद्धि पूर्व-कोविड प्रवृत्ति से कम रही, जिससे असमान पुनर्प्राप्ति का संकेत मिलता है।

(b) निवेश की भूमिका

  • ग्रॉस फिक्स्ड कैपिटल फॉर्मेशन (GFCF):
    • 2022–23: 34.5%
    • 2023–24: 34.6%
    • 2024–25: 34.5%
      GFCF लगभग स्थिर है — यह दर्शाता है कि सार्वजनिक निवेश बढ़ने के बावजूद निजी पूँजी निर्माण अभी भी सुस्त है।
      संभावित वृद्धि को 6.5% से 7.5% तक ले जाने के लिए ICOR (वर्तमान में लगभग 5.2) को घटाना आवश्यक है, जिससे निवेश दक्षता बढ़ सके।

3. GFCFR और ICOR के बीच संबंध

GFCFR (Gross Fixed Capital Formation Ratio) और ICOR मिलकर संभावित उत्पादन निर्धारित करते हैं।
यदि GFCFR = 33.6% और ICOR = 5.2 हो, तो संभावित वृद्धि लगभग 6.5% होती है।
इसे 7.5–8% तक बढ़ाने के लिए या तो GFCFR को 34–35% तक बढ़ाना होगा या ICOR को तकनीकी सुधारों और उत्पादकता वृद्धि के माध्यम से घटाना होगा।

व्याख्या: भारत की हाल की जीडीपी वृद्धि चक्रीय (cyclical) है, न कि संरचनात्मक (structural)। दीर्घकालिक स्थायित्व के लिए पूँजी गहनता (capital deepening) और संपूर्ण कारक उत्पादकता (TFP) में सुधार आवश्यक है।

4. सार्वजनिक निवेश की प्रवृत्तियाँ और चिंताएँ

(a) राजकोषीय प्रोत्साहन (Fiscal Push)
सार्वजनिक पूँजीगत व्यय (% जीडीपी में):

  • 2021–22: 24.4%
  • 2022–23: 28.9%
  • 2023–24: 29.2%
  • 2024–25: 39.4% (हाल के वर्षों में सर्वाधिक)

यह वृद्धि निजी निवेश की कमजोरी की आंशिक भरपाई कर रही है, परंतु निजी क्षेत्र की भागीदारी के बिना इसे लंबे समय तक बनाए रखना संभव नहीं है।

(b) निजी क्षेत्र की झिझक
संपादकीय बताता है कि वित्तीय प्रोत्साहनों के बावजूद निजी पूँजीगत व्यय में कमजोरी बनी हुई है।
मुख्य कारण — नीति अस्थिरता, उच्च उधारी लागत, और वैश्विक मांग में मंदी — जिससे निजी क्षेत्र की जोखिम लेने की प्रवृत्ति सीमित हो रही है।

निष्कर्ष: भारत की दीर्घकालिक विकास गति निजी क्षेत्र के विश्वास पुनरुद्धार और व्यापार सुगमता (Ease of Doing Business) में सुधार पर निर्भर है।

5. संभावनाएँ और चुनौतियाँ

(a) सकारात्मक संकेतक

  • बढ़ता विनिर्माण उत्पादन और सुदृढ़ सार्वजनिक निवेश यह दर्शाता है कि भारत की 6.5% संभावित वृद्धि स्थायी और यथार्थवादी है।
  • AI, जेनरेटिव AI तथा नई तकनीकों का अपनाव उत्पादकता बढ़ा सकता है, जिससे ICOR घट सकता है।

(b) नकारात्मक कारक

  • उपभोग-प्रधान माँग यदि पूँजी निर्माण से मेल नहीं खाती तो मुद्रास्फीति दबाव उत्पन्न हो सकता है।
  • पूँजीगत परिसंपत्तियों का वृद्ध होना और निजी निवेश चक्र की धीमी गति उत्पादकता को प्रभावित कर सकते हैं।
  • वैश्विक अनिश्चितता — जैसे व्यापार संरक्षणवाद, ऊर्जा संक्रमण, और मुद्रास्फीति — निर्यात आधारित वृद्धि को सीमित करती है।

(c) बाह्य वातावरण
धीमी वैश्विक व्यापार वृद्धि और भू-राजनीतिक विखंडन (आपूर्ति श्रृंखला बदलाव, टैरिफ, संघर्ष आदि) भारत के निर्यात विस्तार की संभावनाओं को सीमित कर रहे हैं।
इसलिए, भारत की भविष्य की वृद्धि घरेलू निवेश पुनरुद्धार पर अधिक निर्भर करेगी, न कि निर्यात उछाल पर।

6. नीतिगत सुझाव और आगे की राह

(a) निजी निवेश वातावरण को सुदृढ़ करना

  • नियामक बाधाओं और नीति अस्थिरता को घटाना।
  • PPP आधारित अवसंरचना परियोजनाएँ और विनिर्माण, लॉजिस्टिक्स, हरित ऊर्जा क्षेत्रों के लिए लक्षित प्रोत्साहन।

(b) पूँजी की दक्षता में सुधार

  • तकनीकी अपनाव, डिजिटल अवसंरचना, और कौशल विकास पर ध्यान देना ताकि ICOR कम हो सके।
  • सार्वजनिक निवेश को उच्च गुणक प्रभाव वाले क्षेत्रों में केंद्रित करना, न कि उपभोग सब्सिडी में।

(c) संस्थागत सुधार

  • केंद्र और राज्यों के बीच बेहतर समन्वय से राजकोषीय व्यय की दक्षता बढ़ाना।
  • राजकोषीय अनुशासन बनाए रखते हुए उत्पादक पूँजी निर्माण को प्रोत्साहित करना।

निष्कर्ष

भारत की अर्थव्यवस्था तेज़ी से बढ़ रही है, परंतु अभी भी अपने संभावित स्तर से नीचे है।
जहाँ अल्पकालिक 7.8% जीडीपी वृद्धि लचीलापन दर्शाती है, वहीं स्थायी गति बनाए रखने के लिए संरचनात्मक सुधारों की आवश्यकता है।

8% की टिकाऊ विकास दर प्राप्त करने के लिए भारत को चाहिए कि वह —

  • निवेश दक्षता में सुधार करे,
  • निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ाए, तथा
  • तकनीकी परिवर्तन का लाभ उठाए।

सारतः, चुनौती केवल वृद्धि दर प्राप्त करने की नहीं, बल्कि उसे स्थायी और समावेशी बनाने की है।


Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *