The Hindu Editorial Analysis in Hindi
18 December 2025
भारत के छात्र प्रवासन के बदलते पैटर्न
(Source – The Hindu, International Edition – Page No. – 8)
Topic : GS 2: शिक्षा से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से जुड़े मुद्दे
प्रसंग
यह प्रवृत्ति आकांक्षा और वास्तविक परिणामों, तथा अवसर और शोषण के बीच मौजूद गहरे अंतर को उजागर करती है।

परिचय
भारत से छात्रों के प्रवासन की हालिया लहर एक निर्णायक परिवर्तन को दर्शाती है। यह अब केवल प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों या पूर्ण रूप से वित्तपोषित कार्यक्रमों तक सीमित नहीं रह गई है। इसके विपरीत, समकालीन छात्र प्रवासन मुख्यतः स्व-वित्तपोषित शिक्षा पर आधारित है, जिसमें मध्यम वर्गीय परिवार वैश्विक डिग्री, बेहतर रोजगार क्षमता और सामाजिक उन्नति के वादे के लिए भारी निवेश कर रहे हैं।
- विदेश मंत्रालय (MEA) के आंकड़ों के अनुसार, 2023 में 70 से अधिक देशों में 13.2 लाख से अधिक भारतीय छात्र अध्ययनरत थे।
- यह संख्या 2024 में बढ़कर 13.35 लाख हो गई और 2025 तक 13.8 लाख तक पहुँचने का अनुमान है।
- भारत विश्व स्तर पर अंतरराष्ट्रीय छात्रों को भेजने वाले सबसे बड़े देशों में शामिल है।
- संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा मिलकर लगभग 40% भारतीय छात्रों के प्रमुख गंतव्य हैं।
- अन्य प्रमुख गंतव्यों में यूनाइटेड किंगडम, ऑस्ट्रेलिया और जर्मनी शामिल हैं।
- इस प्रवृत्ति को भारतीय प्रवासी कल्याण पर संसदीय समिति (2022) ने औपचारिक रूप से स्वीकार किया है।
- समिति ने छात्रों को भारत के विस्तारित प्रवासी समुदाय की एक प्रमुख श्रेणी के रूप में चिन्हित किया है।
विदेशी शिक्षा के ‘लोकतंत्रीकरण’ की सीमाएँ
- दिखावटी समावेशन, गहरी असमानता: विदेशी शिक्षा का विस्तार लोकतंत्रीकरण के रूप में प्रस्तुत किया जाता है, किंतु वास्तविकता में यह अक्सर समान अवसरों के बजाय असमान परिणाम उत्पन्न करता है।
- निम्न-मूल्य शैक्षणिक मार्गों की ओर धकेलना: छात्रों को प्रायः निम्न-स्तरीय विश्वविद्यालयों और व्यावसायिक कॉलेजों में भेजा जाता है, जहाँ पाठ्यक्रम कौशल आवश्यकताओं से असंगत और रोजगार संभावनाएँ कमजोर होती हैं।
- ग्रे-ज़ोन भर्ती उद्योग: अनियंत्रित भर्ती एजेंसियाँ कानूनी अस्पष्टता में काम करती हैं और छात्रों के हितों के बजाय कमीशन व लाभ को प्राथमिकता देती हैं।
- लाभ-आधारित संस्थागत साझेदारियाँ: एजेंटों और कम विश्वसनीय निजी कॉलेजों के बीच गठजोड़ वैश्विक शिक्षा के व्यावसायीकरण को दर्शाता है।
- कौशल-ह्रास और अल्प-रोजगार: परिणामस्वरूप व्यापक कौशल-ह्रास होता है और स्नातक कुशल रोजगार प्राप्त करने में असफल रहते हैं।
- यूके का उदाहरण: 1992 के बाद के विश्वविद्यालय (पूर्व पॉलिटेक्निक) अंतरराष्ट्रीय छात्रों पर अत्यधिक निर्भर होते जा रहे हैं, कभी-कभी प्रवेश मानकों में ढील दी जाती है, जिससे शैक्षणिक गुणवत्ता पर प्रश्न उठते हैं।
- सीमित अध्ययन-उपरांत गतिशीलता: यूके में केवल चार में से एक भारतीय स्नातकोत्तर छात्र को ही प्रायोजित कुशल वीज़ा मिल पाता है।
- जोखिमपूर्ण मध्यम वर्गीय आकांक्षा: भारत से छात्र प्रवासन मध्यम वर्ग की महत्वाकांक्षा को दर्शाता है, किंतु इसमें अत्यधिक वित्तीय और करियर जोखिम निहित हैं।
- केरल का बदलता प्रवासन स्वरूप: केरल माइग्रेशन सर्वे (KMS) 2023 के अनुसार, केरल से छात्र प्रवासन पाँच वर्षों में दोगुना हो गया (2018 में 1.29 लाख से 2023 में 2.5 लाख), जो कुल प्रवासियों का 11.3% है।
- प्रेषण तर्क का उलटाव: केरल से बाहर जाने वाले छात्रों पर होने वाला व्यय (₹43,378 करोड़) श्रमिक प्रेषण के लगभग 20% के बराबर है, जो प्रवासन अर्थशास्त्र में संरचनात्मक बदलाव का संकेत देता है।
छात्र प्रवासन में वित्तीय बोझ और उल्टे प्रेषण (Reverse Remittances)
- ऋण-आधारित प्रवासन मार्ग: अधिकांश छात्र स्व-वित्तपोषण या शिक्षा ऋण पर निर्भर रहते हैं, कई बार पारिवारिक संपत्ति गिरवी रखी जाती है।
- टूटा हुआ उन्नति का वादा: अनेक मामलों में प्रवासन बेहतर जीवन के बजाय ऋण-जाल, अल्प-रोजगार या मजबूरन वापसी का कारण बनता है।
- उल्टे प्रेषण: अर्थशास्त्री इसे रिवर्स रेमिटेंस कहते हैं, जहाँ भारतीय परिवार विदेशी अर्थव्यवस्थाओं को सब्सिडी देते हैं।
- मेज़बान अर्थव्यवस्थाओं में योगदान: अंतरराष्ट्रीय छात्र गंतव्य देशों के लिए बड़े पैमाने पर आर्थिक मूल्य उत्पन्न करते हैं।
- कनाडा की निर्भरता: 2022 में विदेशी छात्रों ने $30.9 बिलियन का जीडीपी योगदान दिया और 3.61 लाख नौकरियों का समर्थन किया; 2023 में भारतीय छात्र (4.27 लाख) कुल नामांकन का लगभग 45% थे।
- अमेरिका का मामला: 2024 में लगभग 4 लाख भारतीय छात्रों ने ट्यूशन, आवास और जीवन-यापन पर $7–8 बिलियन वार्षिक खर्च किया।
- उच्च शिक्षा लागत: विदेश में पढ़ाई पर सामान्यतः ₹40–50 लाख तक खर्च आता है, जिससे दीर्घकालिक वित्तीय दबाव बढ़ता है।
- जीवन-यापन का बढ़ता बोझ: ऊँचा किराया, सीमित कार्य-घंटे और वीज़ा प्रतिबंध मानसिक व आर्थिक तनाव को बढ़ाते हैं।
- पेशा-स्तर में गिरावट: कुशल नौकरियों की कमी के कारण कई छात्र कम वेतन वाले, असुरक्षित और कभी-कभी अनियमित कार्य करने को मजबूर होते हैं।
- संरचनात्मक बाधाएँ: कठोर वीज़ा नियम, सीमित पोस्ट-स्टडी अवसर और कमजोर प्लेसमेंट सहायता छात्रों की असुरक्षा को बढ़ाती हैं।
- जीविका विकल्पों का बंद होना: यूके में छात्र वीज़ा से केयर वीज़ा में बदलाव का विकल्प (2024 से पहले) अब बंद हो चुका है, जिससे अनिश्चितता और बढ़ गई है।
छात्र प्रवासन के संरचनात्मक कारण
- घरेलू दबाव कारक: संस्थानों की गुणवत्ता को लेकर धारणा और सीमित उच्च-वेतन रोजगार अवसर छात्रों को बाहर जाने के लिए प्रेरित करते हैं।
- केवल शिक्षा का प्रश्न नहीं: यह निर्णय अकादमिक से अधिक दीर्घकालिक जीवन-परिणामों से जुड़ा है।
- सस्ते ऑफशोर विकल्पों की अस्वीकृति: दुबई, सिंगापुर आदि में पश्चिमी विश्वविद्यालयों के ऑफशोर कैंपस होने के बावजूद भारतीय छात्र उन्हें कम चुनते हैं।
- आकांक्षा का संरचनात्मक अंतर: OECD देशों को प्राथमिकता स्थायी निवास, सामाजिक गतिशीलता और ‘तीसरी दुनिया’ की पहचान से बाहर निकलने की चाह से जुड़ी है।
- श्रम बाज़ार विरोधाभास: छात्र प्रवासन ने OECD देशों के लिए सस्ता और लचीला श्रम पूल तैयार किया है।
- खाड़ी प्रवासन से समानता: यह प्रवृत्ति खाड़ी श्रम प्रवासन जैसी है, पर अंतर यह है कि यहाँ खर्च परिवारों की बचत और ऋण से होता है।
- उल्टे प्रेषण की संरचना: आय के घर लौटने के बजाय संसाधन गरीब देशों से अमीर अर्थव्यवस्थाओं की ओर प्रवाहित होते हैं, जिससे वैश्विक असमानताएँ गहराती हैं।
निष्कर्ष
भारतीय छात्र प्रवासन की यह तीव्र वृद्धि आकांक्षा और वास्तविक परिणामों, तथा वादा किए गए अवसर और अनुभव किए गए शोषण के बीच गहरे अंतर्विरोधों को उजागर करती है। यह ब्रेन गेन के बजाय ब्रेन वेस्ट की स्थिति उत्पन्न कर रही है। अतः शिक्षा एजेंटों के सख्त नियमन, मजबूत प्री-डिपार्चर परामर्श और द्विपक्षीय नियामक ढाँचों की तत्काल आवश्यकता है, ताकि विदेशी संस्थानों की जवाबदेही सुनिश्चित हो और छात्रों के हितों की रक्षा की जा सके।