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प्रस्तावना

18 अगस्त 2025 को राज्यसभा द्वारा पारित भारतीय बंदरगाह विधेयक, 2025 भारत के समुद्री कानूनों में एक ऐतिहासिक सुधार माना जा रहा है। यह 1908 के बंदरगाह अधिनियम का स्थान लेता है और इसके साथ ही कोस्टल शिपिंग अधिनियम, 2025, कार्गो ऑफ गुड्स बाय सी विधेयक, 2025 तथा मर्चेंट शिपिंग अधिनियम, 2025 लाए गए हैं। इन सुधारों का उद्देश्य समुद्री शासन को सुव्यवस्थित करना और वैश्विक मानकों के अनुरूप बनाना है। किंतु इस सुधार यात्रा में संघीय ढाँचे के क्षरण और प्रतिस्पर्धात्मक असमानता की आशंका भी उठ रही है।

सुधार के सकारात्मक पहलू

  • पुराने और बिखरे नियमों को आधुनिक संदर्भ में एकीकृत करना।
  • वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं (best practices) के अनुरूप नियमन।
  • बंदरगाहों में ease of business, सतत विकास और समन्वित नियामक व्यवस्था का प्रावधान।

संघवाद संबंधी चिंताएँ

  • Maritime State Development Council का अध्यक्ष केंद्रीय मंत्री होगा, और राज्यों को केंद्र के दिशानिर्देशों का पालन करना होगा।
  • यह सहकारी संघवाद की बजाय संघीय अधीनता का संकेत देता है।
  • तटीय राज्यों के पास वित्तीय व नीतिगत स्वायत्तता घटेगी, जबकि बंदरगाह प्रबंधन का बोझ उन्हीं पर रहेगा।

नियामकीय और न्यायिक मुद्दे

  • अधिनियम में अस्पष्ट व विवेकाधीन शक्तियाँ दी गई हैं, जो छोटे संचालकों पर अनुपालन का भारी बोझ डाल सकती हैं।
  • विवाद समाधान व्यवस्था त्रुटिपूर्ण है:
    • धारा 17 के तहत दीवानी न्यायालयों को अधिकार से बाहर कर दिया गया।
    • विवादों का निपटारा उन्हीं समितियों द्वारा होगा जिनके निर्णय पर प्रश्नचिह्न है।
  • स्वतंत्र न्यायिक समीक्षा के अभाव से निजी निवेश प्रभावित हो सकता है।

स्वामित्व से जुड़ी समस्या (Merchant Shipping Act, 2025)

  • सकारात्मक पक्ष: जहाजों की व्यापक परिभाषा, प्रशिक्षण संस्थानों की कड़ी निगरानी, और अंतर्राष्ट्रीय दायित्व मानकों के अनुरूप प्रावधान।
  • चिंताएँ:
    • अब भारतीय ध्वज वाले जहाजों में आंशिक विदेशी स्वामित्व की अनुमति।
    • Bareboat Charter-Cum-Demise पंजीकरण से विदेशी नियंत्रण लंबे समय तक बना रह सकता है।
    • सभी जहाजों का अनिवार्य पंजीकरण छोटे संचालकों पर बोझ डालेगा।
    • कार्यपालिका को व्यापक विवेकाधिकार मिलने से भारत flag-of-convenience राज्य बनने का जोखिम उठा सकता है।

छोटे संचालकों के लिए खतरे (Coastal Shipping Act, 2025)

  • अधिनियम ने कैबोटेज नियम स्पष्ट किए और तटीय व्यापार भारतीय जहाजों के लिए सुरक्षित रखा।
  • किंतु Director General of Shipping को विदेशी जहाजों को लाइसेंस देने का व्यापक विवेकाधिकार है—“राष्ट्रीय सुरक्षा” या “रणनीतिक संरेखण” जैसे अस्पष्ट कारणों पर।
  • छोटे संचालकों, विशेषकर मछली उद्योग से जुड़े लोगों पर यात्रा व माल रिपोर्टिंग का बोझ बढ़ेगा, पर डेटा संरक्षण स्पष्ट नहीं।
  • विपक्ष का तर्क है कि यह अधिनियम भी संघीय स्वायत्तता को कमजोर करता है।

निष्कर्ष

भारत को निश्चित रूप से एक आधुनिक समुद्री कानूनी ढाँचे की आवश्यकता है। परंतु सुधार प्रक्रिया ऐसी न हो जिससे संघीय संतुलन कमजोर हो या प्रतिस्पर्धी समानता विकृत हो। स्वामित्व सीमा, लाइसेंसिंग नियम और विवाद समाधान ढाँचे को स्पष्ट रूप से कानून में परिभाषित किया जाना चाहिए, न कि केवल कार्यपालिका के विवेक पर छोड़ा जाए। अन्यथा यह सुधार पैकेज कुछ बड़े हितधारकों के लिए ease of business का साधन तो बनेगा, परंतु राज्यों की स्वायत्तता और भारत की दीर्घकालिक समुद्री सुरक्षा दोनों पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगा।


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