The Hindu Editorial Analysis in Hindi
18 November 2025
भारत को अफ्रीका के साथ ‘जुड़ने, निर्माण करने और पुनर्जीवित करने’ की आवश्यकता है
(Source – The Hindu, International Edition – Page No. – 8)
विषय: सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र II: भारत और उसके पड़ोसी एवं अफ्रीका संबंध | सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र III: अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संबंध, दक्षिण-दक्षिण सहयोग
प्रसंग
भारत-अफ्रीका फ़ोरम शिखर सम्मेलन (IAFS-III) के 2015 में आयोजन के दस वर्ष बाद, यह लेख भारत की अफ्रीका के साथ साझेदारी के पुनर्जीवन का आह्वान करता है। यद्यपि इस अवधि में भारत ने अपने कूटनीतिक और आर्थिक विस्तार को गहरा किया है, परंतु चीन की बढ़ती उपस्थिति के बीच अब इस साझेदारी में रणनीतिक, डिजिटल और संस्थागत स्तर पर नवीन ऊर्जा का संचार आवश्यक हो गया है।

पृष्ठभूमि: भारत–अफ्रीका संबंधों का संक्षिप्त अवलोकन
कूटनीतिक विस्तार: भारत ने अफ्रीका में 17 नए दूतावास स्थापित किए हैं, जिससे महाद्वीप के सभी 54 देशों में उसकी उपस्थिति सुनिश्चित हुई है।
व्यापार एवं निवेश: द्विपक्षीय व्यापार 100 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक हो चुका है तथा कुल निवेश लगभग 75 अरब डॉलर के आसपास है।
विकास सहयोग: ITEC, पैन-अफ्रीकन ई-नेटवर्क और शांति स्थापना अभियानों के माध्यम से भारत अफ्रीका का विश्वसनीय विकास साझेदार बना हुआ है।
नई पहलें: ज़ांज़ीबार में आईआईटी मद्रास का परिसर शिक्षा एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अगले चरण की साझेदारी का प्रतीक है।
अवसर और चुनौतियाँ
1. आर्थिक संभावनाएँ
- वर्ष 2050 तक विश्व की प्रत्येक चार व्यक्तियों में से एक व्यक्ति अफ्रीका में निवास करेगा।
- भारत और अफ्रीका मिलकर वाणिज्य–प्रौद्योगिकी–जनांकिकी पर आधारित एक ऐसे गलियारे का निर्माण कर सकते हैं, जो वैश्विक दक्षिण की सामूहिक उभरती शक्ति को आकार देगा।
2. चीन से प्रतिस्पर्धा
- व्यापार और परियोजना क्रियान्वयन की गति दोनों ही मामलों में भारत अभी चीन से पीछे है।
- अफ्रीकी अर्थव्यवस्थाएँ तीव्र डिजिटल परिवर्तन की आकांक्षी हैं; इस क्षेत्र में भारत UPI, आधार और इंडिया स्टैक जैसे डिजिटल ढाँचे के माध्यम से सहयोग को बढ़ा सकता है।
3. संरचनात्मक समस्याएँ
- नौकरशाही जड़ता और छोटे स्तर के निवेश भारत के प्रभाव को सीमित करते हैं।
- हरित हाइड्रोजन, इलेक्ट्रिक-गतिशीलता और डिजिटल अवसंरचना जैसे क्षेत्रों में व्यापक साझेदारी दीर्घकालिक रणनीतिक लाभ प्रदान कर सकती है।
सहयोग के प्रमुख स्तंभ
1. मानवीय संबंध
- पिछले एक दशक में 40,000 से अधिक अफ्रीकी छात्र भारत में अध्ययन कर चुके हैं।
- ये पूर्व छात्र—वैज्ञानिक, सिविल सेवक, उद्यमी—विश्वास और कौशल के “जीवंत सेतु” के रूप में कार्य करते हैं।
2. ज्ञान और शिक्षा
- पैन-अफ्रीकन ई-नेटवर्क तथा आईआईटी ज़ांज़ीबार जैसी पहलें भारत के “सह-निर्माण” (co-creation) आधारित मॉडल को दर्शाती हैं, न कि निर्भरता पर आधारित मॉडल को।
3. शांति एवं बहुपक्षवाद
- भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और G20 में अफ्रीकी प्रतिनिधित्व के लिए लगातार आवाज़ उठाई है तथा वैश्विक मंचों पर अफ्रीका की अधिक भागीदारी का समर्थन किया है।
आगे का मार्ग: तीन प्रमुख रणनीतिक कदम
1. वित्त को वास्तविक परिणामों से जोड़ना
- यह सुनिश्चित किया जाए कि ऋण सहायता (Lines of Credit) ऐसी परियोजनाओं में परिवर्तित हो, जिनसे स्थानीय स्तर पर प्रत्यक्ष लाभ प्राप्त हों, न कि केवल औपचारिक कूटनीतिक संकेत भर रहें।
2. डिजिटल साझेदारी का निर्माण
- डिजिटल पब्लिक गुड्स, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा में सहयोग हेतु इंडिया स्टैक और UPI का विस्तार अफ्रीकी देशों तक किया जाए।
3. संस्थागत संवाद को पुनर्जीवित करना
- वर्ष 2015 के बाद से आयोजित न होने के कारण IAFS शिखर सम्मेलन को पुनः सक्रिय करना आवश्यक है, ताकि राजनीतिक इच्छाशक्ति और सामरिक दिशा दोनों को सुदृढ़ किया जा सके।
निष्कर्ष
“भारत और अफ्रीका केवल वस्तुओं का आदान-प्रदान नहीं कर रहे, वे आत्मविश्वास, क्षमता और विचारों का भी आदान-प्रदान कर रहे हैं।”
भारत–अफ्रीका संबंध सहायता-आधारित मॉडल से आगे बढ़कर साझेदारी-आधारित मॉडल में विकसित हो चुके हैं, जो साझा ऐतिहासिक संबंधों और दक्षिण–दक्षिण सहयोग पर आधारित है। भविष्य डिजिटल सह-विकास, हरित सहयोग और संस्थागत पुनर्जीवन में निहित है, जो उभरते अफ्रीका के साथ भारत को एक विश्वसनीय और सुदृढ़ साझेदार के रूप में स्थापित करेगा।