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संदर्भ

1 अक्टूबर 2025 को भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने भारतीय रुपया (INR) के अंतर्राष्ट्रीयकरण हेतु नई पहलें शुरू कीं, जिनका भारत–नेपाल व्यापार एवं वित्तीय संबंधों पर गहरा प्रभाव पड़ेगा।

इन पहलों—सीमापार रुपया लेनदेन, स्पेशल रुपी वोस्ट्रो खाते, और पारदर्शी संदर्भ दर प्रणाली—से भारत-नेपाल के आर्थिक संबंधों को नयी गति मिल सकती है, द्विपक्षीय व्यापार एकीकरण गहरा हो सकता है तथा क्षेत्रीय वित्तीय स्थिरता सुदृढ़ हो सकती है।

संपादकीय का मत है कि इन कदमों का रणनीतिक रूप से उपयोग कर दोनों देशों को ऋण बाधाओं, व्यापार असंतुलन, और नेपाल की संस्थागत जड़ता जैसी चुनौतियों को पार करना चाहिए।

1. RBI का नया ढांचा: मुद्रा-कूटनीति में मील का पत्थर

(a) घोषित तीन प्रमुख उपाय

अधिकृत डीलर (AD) बैंक:
भारतीय बैंक अब नेपाल, भूटान और श्रीलंका के गैर-निवासियों को सीमापार व्यापार के लिए भारतीय रुपये में ऋण दे सकेंगे।

स्पेशल रुपी वोस्ट्रो खाते:
विदेशी बैंक भारतीय बैंकों के साथ INR जमा रखकर कॉर्पोरेट बॉन्ड व वाणिज्यिक पत्रों में निवेश कर सकेंगे — जिससे नए निवेश अवसर सृजित होंगे।

पारदर्शी संदर्भ दर प्रणाली:
भारत के प्रमुख क्षेत्रीय व्यापार भागीदारों के साथ स्थिर मुद्रा-मानक स्थापित करने हेतु एक तंत्र बनाया गया है, जिससे INR-आधारित लेनदेन सुगम होंगे।

(b) उद्देश्य एवं प्रभाव

इन उपायों से सामूहिक रूप से —

  • द्विपक्षीय व्यापार में अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता घटेगी,
  • नेपाल की कंपनियों के लिए वित्तीय समावेशन और व्यवसाय सुगमता बढ़ेगी,
  • तथा रुपया–नेपाली रुपया (NPR) विनिमय दर (1.6 पर स्थिर) की दीर्घकालीन स्थिरता को बल मिलेगा।

2. नेपाल की ऋण चुनौतियाँ और संरचनात्मक अवरोध

(a) कोविड-पश्चात आर्थिक संकट
कोविड-19 लॉकडाउन, पर्यटन-क्षति और ऋण-आधारित उपभोग मॉडल के कारण नेपाल की अर्थव्यवस्था गंभीर रूप से संकुचित हुई।
बैंकिंग-विश्वास घटा और बड़े औद्योगिक घरानों के नियंत्रण वाले बैंक लघु एवं ग्रामीण उद्यमों को ऋण देने से हिचकिचाने लगे।

(b) ऋण-संकोचन की स्थिति
कठोर ऋण-व्यवस्था के कारण कार्यशील पूंजी तक पहुँच सीमित रही।
बड़े उद्योगों को भी सप्लाई-चेन बाधाओं व नकदी संकट का सामना करना पड़ा, जिससे बेरोजगारी बढ़ी और उत्पादक क्षमता का उपयोग घटा।
RBI की नई नीति से सीमापार रुपया ऋण प्रवाह के माध्यम से तरलता बढ़ाई जा सकती है और भारतीय तथा नेपाली बैंकों के संयुक्त ऋण सहयोग को प्रोत्साहन मिल सकता है।

3. व्यापार-एकीकरण एवं निवेश-सम्भावनाएँ

(a) वर्तमान द्विपक्षीय व्यापार स्थिति
भारत, नेपाल का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है, जो नेपाल के कुल व्यापार का लगभग 65% है।
2024 में भारत का नेपाल को निर्यात लगभग 8 अरब डॉलर तथा नेपाल से आयात लगभग 1 अरब डॉलर रहा।
भारतीय कंपनियाँ नेपाल में कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) का लगभग 33% योगदान देती हैं, विशेषतः ऊर्जा, दूरसंचार और विनिर्माण क्षेत्रों में।

(b) रुपये के अंतर्राष्ट्रीयकरण से संभावित लाभ
INR-आधारित निपटान से लेनदेन लागत और अस्थिरता घटेगी।
नेपाल की अर्थव्यवस्था को डॉलर-विनिमय झटकों और चालू खाते के असंतुलन से सुरक्षा मिलेगी।
नेपाल में मूल्यवर्धित उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा, जिससे भारत को INR वित्तपोषित निर्यात किया जा सकेगा।
यह परिवर्तन भारत-नेपाल के क्षेत्रीय आपूर्ति-श्रृंखला एकीकरण को तीव्र कर सकता है।

4. नेपाल की घरेलू नीतिगत प्राथमिकताएँ

(a) वित्तीय सुशासन को सुदृढ़ बनाना
नेपाल को चाहिए कि वह नेपाल राष्ट्र बैंक (NRB) को विवेकपूर्ण ढंग से INR ऋण लागू करने की शक्ति दे।
सीमापार अनुपालन और उचित परिश्रम (due diligence) तंत्र को सशक्त बनाए।
संस्थागत सुधार और ऋण-गारंटी योजनाओं के माध्यम से स्थानीय बैंकिंग-विश्वास पुनर्स्थापित करे।

(b) निवेश माहौल सुदृढ़ करना
ब्याज-दर नीति को तार्किक बनाना और MSME ऋण वितरण को मजबूत करना।
नीतिगत पूर्वानुमेयता सुनिश्चित कर भारतीय व वैश्विक निवेशकों को आकर्षित करना।
जलविद्युत एवं विनिर्माण क्षेत्रों में संयुक्त उपक्रमों और PPP परियोजनाओं को प्रोत्साहन देना।

5. संभावित गुणक प्रभाव

(a) नेपाल के लिए
डॉलर-निर्भरता घटने से विदेशी मुद्रा अस्थिरता से सुरक्षा मिलेगी।
बढ़ी हुई तरलता से भुगतान-संतुलन का दबाव घटेगा और चालू खाता घाटा स्थिर हो सकेगा।
सस्ती INR ऋण-सुविधा से रोजगार, उद्यमिता और उत्पादन को बल मिलेगा।

(b) भारत के लिए
क्षेत्र में रुपये का विस्तार भारत की “Rupee Internationalization” नीति को गति देगा।
यह भारत की आर्थिक कूटनीति को गहरा करेगा और दक्षिण एशिया में वित्तीय स्थिरता के स्तंभ के रूप में उसकी भूमिका सुदृढ़ करेगा।
साथ ही, यह “Neighbourhood First” तथा “Act East” नीतियों को सतत आर्थिक परस्परता के माध्यम से सशक्त बनाएगा।

6. आगामी चुनौतियाँ

नियामकीय समन्वय: RBI और NRB को ऋण, कराधान और मुद्रा निपटान पर साझा ढांचा बनाना होगा।
अत्यधिक जोखिम: यदि नेपाल का राजकोषीय अनुशासन कमजोर हुआ तो अत्यधिक INR ऋण वित्तीय अस्थिरता पैदा कर सकता है।
राजनीतिक संवेदनशीलता: नेपाल के कुछ घरेलू समूह गहरे रुपये-एकीकरण को मौद्रिक संप्रभुता में कमी के रूप में देख सकते हैं।
संस्थागत संवाद की आवश्यकता: नियमित द्विपक्षीय वार्ताएँ संप्रभु गारंटी, परियोजना वित्तपोषण और क्रेडिट-रेटिंग जैसे तकनीकी मुद्दों को हल कर सकती हैं।

7. आगे की राह

(a) अल्पकालिक कदम
RBI-NRB संयुक्त मुद्रा एवं व्यापार परिषद का गठन।
ऊर्जा और विनिर्माण क्षेत्रों में सीमापार INR निपटान का पायलट प्रोजेक्ट।
डिजिटल भुगतान इंटरफ़ेस विकसित करना जो UPI को नेपाली प्रणालियों से जोड़े (2023 की पहल का विस्तार)।

(b) दीर्घकालिक दृष्टि
वस्तुओं के साथ-साथ सेवाओं, प्रेषणों और पर्यटन में भी INR व्यापार को विस्तारित करना।
नेपाल को भारत के UPI नेटवर्क विस्तार में सहभागी बनाना।
दक्षिण एशियाई रुपया-क्षेत्र (South Asian Rupee Zone) जैसी पहल को संस्थागत रूप देना।

निष्कर्ष

RBI की यह पहल भारत–नेपाल वित्तीय कूटनीति में परिवर्तनकारी चरण का संकेत है, जो मौद्रिक नीति को क्षेत्रीय विकास-एजेंडा से जोड़ती है।
यदि इसे विवेकपूर्णता और समावेशिता के साथ लागू किया जाए, तो यह दक्षिण एशिया की खुली सीमाओं को साझा आर्थिक लचीलापन-पथों में रूपांतरित कर सकती है।

“जब काठमांडू में रुपया मज़बूत होता है,
वह केवल मुद्रा नहीं, बल्कि विश्वास, व्यापार और परंपरागत संबंधों पर आधारित एक पड़ोस को भी मज़बूत करता है।”


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