Achieve your IAS dreams with The Core IAS – Your Gateway to Success in Civil Services

प्रसंग

नई दिल्ली में आयोजित 23वाँ भारत–रूस वार्षिक शिखर सम्मेलन ने बदलते वैश्विक समीकरणों और भू-राजनीतिक अस्थिरता के बीच भारत–रूस साझेदारी की दृढ़ता को पुनः स्थापित किया।
यूक्रेन युद्ध ने जहाँ वैश्विक ध्रुवीकरण को तीव्र किया और रूस के पश्चिम के साथ संबंधों को तनावपूर्ण बनाया है, वहीं भारत ने मॉस्को के साथ अपने संबंधों का रणनीतिक पुनर्संयोजन किया है—पुराने भरोसे के साथ नई वास्तविकताओं को संतुलित करते हुए।

लेखक का तर्क है कि यह शिखर सम्मेलन केवल प्रतीकात्मक नहीं था, बल्कि एक रणनीतिक पुनर्संतुलन था, जिसका उद्देश्य भारत की ऊर्जा सुरक्षा, व्यापार विविधीकरण और प्रौद्योगिकी सहयोग को भविष्य के अनुरूप सुदृढ़ करना है।

1. महत्व और समय

राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की यह यात्रा (यूक्रेन युद्ध के बाद पहली बार) तथा उच्च-स्तरीय प्रतिनिधिमंडल की उपस्थिति दोनों देशों के बीच आपसी विश्वास का संकेत है।

भारत के लिए, इस शिखर सम्मेलन ने उसकी रूस नीति से जुड़ी अस्पष्टता को दूर किया तथा यह स्पष्ट किया कि रणनीतिक स्वायत्तता उसकी विदेश नीति का मूल स्तंभ बनी हुई है।

यह समय—जब यूक्रेन की सैन्य स्थिति कमजोर पड़ रही है और अमेरिका–रूस टकराव बढ़ रहा है—यह दर्शाता है कि भारत अलग-थलग करने के बजाय संवाद को प्राथमिकता देता है।

लेखक के अनुसार, रूस के प्रति भारत का यह खुला दृष्टिकोण उसकी अमेरिका नीति के साथ भी संगत है, और यह दिखाता है कि भारत प्रतिद्वंद्वी शक्तियों के साथ समानांतर रणनीतिक संबंध बना सकता है।


2. भारत–रूस संबंधों के प्रमुख स्तंभ

(a) व्यापार एवं आर्थिक विविधीकरण

“प्रोग्राम 2030” को अपनाया गया है, जिसका लक्ष्य वर्ष 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार को 100 अरब डॉलर तक पहुँचाना है।

मुख्य क्षेत्र:

  • गैर-शुल्कीय बाधाओं का हटाना
  • राष्ट्रीय मुद्राओं में व्यापार निपटान (रूबल–रुपया तंत्र)
  • ऊर्जा से परे रेल, उर्वरक, औषधि आदि क्षेत्रों में निवेश

रूस के विशाल खनिज एवं संसाधन भंडार से भारत को महत्वपूर्ण आपूर्ति श्रृंखला सुरक्षा सुनिश्चित होती है।


(b) ऊर्जा सुरक्षा

  • भारत अब रूसी कच्चे तेल का दूसरा सबसे बड़ा आयातक है; 2022 से आयात में 10 गुना वृद्धि हुई है।
  • रियायती कीमतों पर रूस की विश्वसनीय आपूर्ति भारत की ऊर्जा स्थिरता और मुद्रास्फीति नियंत्रण में सहायक है।

संपादकीय चेतावनी देता है कि यदि भारत रूसी संसाधनों को सुरक्षित नहीं करता, तो उसे पश्चिमी आपूर्ति में उतार-चढ़ाव और चीन के बढ़ते प्रभुत्व के सामने कमजोर पड़ना पड़ सकता है।


(c) संपर्क व समुद्री सहयोग

दोनों देश निम्नलिखित परियोजनाओं को आगे बढ़ा रहे हैं:

  • चेन्नई–व्लादिवोस्तोक समुद्री गलियारा
  • उत्तरी समुद्री मार्ग
  • आर्कटिक में जहाज निर्माण सहयोग

इनका उद्देश्य भारत की हिंद-प्रशांत उपस्थिति को मजबूत करना तथा उसकी यूरेशियाई महाद्वीपीय संपर्क को सुदृढ़ रखना है।


(d) श्रमिक गतिशीलता और जन-संपर्क

एक नए समझौते के तहत भारतीय कुशल श्रमिकों को रूस जाने का अवसर मिलेगा, जिससे रूस की जनसांख्यिकीय कमी और श्रम संकट का समाधान होगा।
वीजा मानदंडों में ढील रूस की दीर्घकालिक, मानवीय साझेदारी की इच्छा को दर्शाती है।


(e) रक्षा, विज्ञान और प्रौद्योगिकी

भारत–रूस सहयोग अभी भी रक्षा, अंतरिक्ष और परमाणु ऊर्जा क्षेत्रों में मजबूत है।

  • ब्रह्मोस मिसाइल
  • एस-400 वायु रक्षा प्रणाली

ये साझेदारी दोनों देशों के बीच गहरे रणनीतिक विश्वास का प्रतीक हैं।
स्थानीयकरण और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण से भारत आत्मनिर्भरता की दिशा में आगे बढ़ते हुए रूसी प्रणालियों के साथ अपनी अनुकूलता बनाए रख रहा है।


3. रणनीतिक पुनर्संयोजन एवं वैश्विक संतुलन

यह शिखर सम्मेलन दर्शाता है कि दोनों देश उभरती बहुध्रुवीय दुनिया के अनुरूप अपने संबंधों को फिर से आकार दे रहे हैं:

  • पश्चिमी अलगाव के बीच रूस एशिया की ओर पुनः सक्रिय रूप से उन्मुख हो रहा है।
  • भारत इस अवसर का उपयोग अपने यूरेशियाई प्रभाव को बढ़ाने तथा अमेरिका और यूरोप के साथ संतुलन बनाए रखने के लिए कर रहा है।

लेखक इसे “समांतर संलग्नता कूटनीति” (Parallel Engagement Diplomacy) कहते हैं—अर्थात् भारत प्रतिद्वंद्वी देशों के बीच संतुलन रखकर अपनी स्वायत्तता अक्षुण्ण रखता है।


4. भारत की विदेश नीति पर व्यापक प्रभाव

  • यह शिखर सम्मेलन भारत की महाद्वीपीय रणनीति को मजबूत करता है, जो उसकी समुद्री हिंद-प्रशांत प्राथमिकताओं का पूरक है।
  • यह भारत की भूमिका को पूर्व और पश्चिम के बीच एक सेतु के रूप में सुदृढ़ करता है, विशेषकर तब जब रूस–चीन और अमेरिका–यूरोप दोनों ध्रुवीय गठबंधन कठोर हो रहे हैं।
  • रूस के लिए भारत एक स्थिर, गैर-पश्चिमी साझेदार है जो उसकी वैश्विक पहुँच को विश्वसनीयता प्रदान करता है।

निष्कर्ष

“भारत ने मॉस्को के साथ अपने संबंधों को पुनर्संरचित किया है, बिना पश्चिम के साथ अपने समीकरणों को क्षति पहुँचाए।”

संपादकीय का निष्कर्ष है कि भारत ने अत्यंत जटिल भू-राजनीतिक परिस्थितियों में संतुलन कला का सफल प्रयोग किया है—रूस के साथ अपने दीर्घकालिक रणनीतिक साझेदारी को बनाए रखते हुए अमेरिका और यूरोप के साथ भी जुड़ाव को आगे बढ़ाया है।

भारत–रूस शिखर सम्मेलन 2025 एक अग्रदृष्टिपूर्ण साझेदारी का संकेत है—जो ऊर्जा, प्रौद्योगिकी और विश्वास पर आधारित है और भारत को उभरते बहुध्रुवीय वैश्विक क्रम के केंद्र में स्थापित करती है।


Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *