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मुख्य विषय और तर्क

  1. रणनीतिक स्थिरता में कमी
    भारत का वैश्विक आर्थिक और कूटनीतिक प्रभाव बढ़ा है, पर उसकी कड़ा राजनीतिक एवं सुरक्षा रणनीति अपेक्षित गति से विकसित नहीं हुई है।
    विशेषकर अमेरिका, चीन और रूस के साथ बढ़ती तनावपूर्ण स्थितियों में भारत ने निर्णायक कदम उठाने में कमज़ोरी दिखाई है।
  2. पुलवामा के बाद सुरक्षा परिप्रेक्ष्य
    पुलवामा के बाद भारत ने आतंकवाद समर्थक पाकिस्तान को कूटनीतिक रूप से अलग किया और आतंकवादियों के खिलाफ कारगर अभियान चलाए।
    फिर भी पाकिस्तान ने स्वतंत्र रूप से FATF की ग्रे-लिस्ट से बाहर निकलकर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सफलता पाई, जो भारत की मिल रही चुनौतियों को दर्शाता है।

भारत की बाहरी रणनीति में प्रमुख समस्याएं

समस्यासंपादकीय दृष्टिकोण
अमेरिकी दबावट्रंप काल में लगाए गए प्रतिबंधों और टैरिफ्स ने भारत की स्वायत्त कूटनीति क्षमता को सीमित किया।
भू-राजनीतिक विचलनयूक्रेन और पश्चिम एशिया की घटनाओं ने Indo-US सहयोग को संकरी सीमाओं तक सीमित किया।
यूरोपीय संघ के साथ अविश्वाससुरक्षा-संवेदनशील मुद्दों में भारत की चिंता को पश्चिमी सहयोगी अक्सर अनदेखा करते हैं।
व्यापार वार्ता में स्थिरताIndo-UK और Indo-EU व्यापार वार्ता अस्पष्ट और धीमी गति से आगे बढ़ रही हैं।

भारत के चूक गए अवसर

  • क्षेत्रीय नेतृत्व का कम उपयोग
    भारत दक्षिण एशिया में त्रिपक्षीय कूटनीति का नेतृत्व कर सकता है, पर बांग्लादेश की अनिच्छा और चीन की सक्रिय भूमिका इस राह में बाधा हैं।
  • EU और रूस का कारक
    EU के आंतरिक मतभेद और रूस-विरोधी रुख भारत के ऊर्जा और उर्वरक सुरक्षा में बाधा उत्पन्न कर रहा है।
  • भू-राजनीतिक तरलता
    चीन भारत के पड़ोसी क्षेत्रों में तेजी से सक्रिय है, जिससे भारत के लिए जरूरी है कि वह कभी तटस्थ और कभी निर्णायक भूमिका निभाए।

भारत की रणनीतिक पुनर्संतुलन के लिए सुझाव

  • विदेश नीति को आर्थिक विकास के साथ संरेखित करें
    ऊर्जा, प्रौद्योगिकी, लॉजिस्टिक्स और आपूर्ति श्रृंखलाओं जैसे क्षेत्रों पर फोकस बढ़ाएं।
  • बहुपक्षवाद और रणनीतिक स्वायत्तता को मजबूत करें
    भारत-मध्य पूर्व-यूरोप कॉरिडोर (IMEC), ब्रिक्स+ आर्थिक कूटनीति, और I2U2 जैसे मंचों पर नेतृत्व करें।
  • कठोर और कोमल शक्ति का संतुलन
    AI, डिजिटल कूटनीति, रक्षा निर्यात और अंतरिक्ष कूटनीति के माध्यम से कड़ा शक्ति प्रदर्शन पूरा करें।
  • इंडो-अमेरिकी संबंधों में विश्वास पुनर्जीवित करें
    भारत को अपनी रणनीतिक प्राथमिकताएं स्पष्ट करनी होंगी; साथ ही Indo-Pacific कमांड सहयोग जैसे रक्षा लक्ष्यों को आगे बढ़ाना होगा, बिना यूक्रेन या पश्चिम एशिया के मामलों में पक्षपात किए।

निष्कर्ष


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