The Hindu Editorial Analysis in Hindi
27 May 2025
मानसून के बावजूद गर्मी से निपटने पर ध्यान केंद्रित
(स्रोत – द हिंदू, राष्ट्रीय संस्करण – पृष्ठ संख्या – 08)
विषय: GS 2 और 3: सार्वजनिक स्वास्थ्य | जलवायु परिवर्तन और आपदा तैयारी | सामाजिक न्याय | शासन और नीति प्रतिक्रिया
परिप्रेक्ष्य
भारत में भीषण गर्मी की लहरों ने स्वास्थ्य प्रणाली पर भारी दबाव डाला है, खासकर कमजोर समुदायों में। वर्तमान दृष्टिकोण संकट-संचालित व प्रतिक्रिया संबंधी है, जबकि जलवायु-प्रतिरोधी स्वास्थ्य प्रणाली पूर्व-सावधानी, अंतर्विभागीय सहयोग और समानता पर आधारित होनी चाहिए।

परिचय
मानसून से कुछ अस्थायी राहत मिलती है, पर भारत का असली सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट बढ़ती गर्मी है। उच्च तापमान के कारण हीटस्ट्रोक, निर्जलीकरण और पुरानी बीमारियों का भार मुख्यतः अनौपचारिक कामगारों, बुजुर्गों और झुग्गी-झोपड़ी बस्तियों के निवासियों पर अधिक पड़ता है।
हीट-रेजिलिएंस केवल स्वास्थ्य का विषय नहीं, बल्कि सामाजिक समानता और अवसंरचना की चुनौती है, जिसके लिए त्वरित प्रणाली सुधार आवश्यक है।
समस्या: हीटवेव स्वास्थ्य संकट
- स्वास्थ्य प्रणाली का अधिभार
भारत की प्रतिक्रिया मुख्यतः आपातकालीन उपचार (IV फ्लूइड्स, अस्पताल के बिस्तर) पर केंद्रित है, जबकि रोकथाम पर कम ध्यान दिया जाता है। अस्पतालों पर निर्भरता से गर्मी से पहले की संवेदनशीलता का समाधान नहीं होता। - छुपा हुआ बोझ और गलत निदान
हीटस्ट्रोक के लक्षण जैसे थकान, भ्रम अक्सर आपातकालीन सेटिंग में देखे नहीं जाते, जिससे बचाव योग्य मौतें होती हैं।
सक्रिय दृष्टिकोण: रोकथाम प्रारंभ होती है प्राथमिक देखभाल से
- आशा कार्यकर्ताओं और स्वास्थ्य केंद्रों की भूमिका
आशा कार्यकर्ता “हीट-सुरक्षा चैंपियन” के रूप में कार्य कर सकते हैं। प्रशिक्षण से वे समुदाय को सतर्क कर सकते हैं, हाइड्रेशन किट वितरित कर सकते हैं और संवेदनशील समूहों को सुरक्षित जगहों पर मार्गदर्शन कर सकते हैं। - पुरानी बीमारियों में गर्मी की सावधानी
मधुमेह, हृदय रोग, गुर्दे की बीमारियों और मानसिक स्वास्थ्य वाले मरीजों की गर्मी के मौसम में निगरानी आवश्यक है। दवाओं और दिनचर्या में आवश्यक समायोजन जरूरी है।
गैप को पाटना: आवश्यक बदलाव
- प्रमाणित चिकित्सकीय प्रोटोकॉल
अस्पतालों में हीट-संबंधित बीमारियों के निदान और उपचार के लिए स्पष्ट प्रोटोकॉल हों जैसे: कूलिंग किट्स, नियमित गर्मी आपातकालीन अभ्यास, डिस्चार्ज के बाद फॉलो-अप। - विभागीय समन्वय
शहरी नियोजन (ठंडे आवास), श्रम नियम (बाहर काम करने के समय), जल सुरक्षा और जलवायु साक्षर शासन के माध्यम से गर्मी से बचाव। - समुदाय-केंद्रित प्रतिरोध मॉडल
अहमदाबाद जैसे शुरुआती चेतावनी सिस्टम और हाइड्रेशन अभियान को राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ाना। मोबाइल अलर्ट, घर-घर संदेश और व्हाट्सएप समूहों से समुदाय को सशक्त बनाना।
समानता और प्रणाली सुधार
- ज्यादा प्रभावित होते हैं गरीब
सड़क विक्रेता, अनौपचारिक कामगार और खराब वेंटिलेशन वाले क्षेत्र के निवासी घर में नहीं रह सकते। इनके लिए लक्ष्यित शेल्टर, कूलिंग सेंटर और सक्रिय चिकित्सकीय जांच जरूरी हैं। - विज्ञान और न्याय का तालमेल
हीट-रेजिलिएंस को विज्ञान आधारित और समानता केंद्रित होना चाहिए। समाधान को समझना चाहिए कि कौन सबसे ज्यादा प्रभावित होता है, क्यों और कैसे—डाटा, सहानुभूति, नीति और तत्परता के साथ।
निष्कर्ष
भारत का गर्मी संकट वर्तमान में है, भविष्य में नहीं।
हमें आपात स्थिति से निपटने के स्थान पर पूर्व तैयारी, सहकार्य और प्रणालीगत बदलाव करना होगा।
रास्ता समानता, सहयोग और तैयारियों से होकर जाता है।
समय अगली गर्मी का नहीं, अभी का है—सभी के लिए जलवायु-प्रतिरोधी भविष्य सुरक्षित करने का।