The Hindu Editorial Analysis in Hindi
8 October 2025
रणनीतिक भूलभुलैया में इज़राइल की सामरिक उपलब्धियाँ
(स्रोत – द हिंदू, अंतर्राष्ट्रीय संस्करण – पृष्ठ संख्या – 8)
विषय: सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र II – अंतर्राष्ट्रीय संबंध | सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र III – आंतरिक सुरक्षा
संदर्भ
यह संपादकीय 7 अक्टूबर 2023 को हमास द्वारा इस्रायल पर किए गए हमले और उसके बाद शुरू हुए इस्रायल–गाज़ा संघर्ष के बाद पश्चिम एशिया (West Asia) की बदलती भू-राजनीतिक परिस्थितियों की पड़ताल करता है। इसमें बताया गया है कि इस्रायल ने भले ही भारी खुफिया और रणनीतिक झटका झेला हो, लेकिन उसने सामरिक अभियानों को राजनयिक लाभों में बदलने में सफलता पाई है। फिर भी, वह अस्थिरता और अलगाव के एक व्यापक रणनीतिक जाल में फँसा हुआ है।
युद्ध से पहले, पश्चिम एशिया अमेरिकी नेतृत्व वाले सामान्यीकरण प्रयासों (जैसे अब्राहम समझौते) के तहत स्थिर होता दिखाई दे रहा था, जिससे इस्रायल को अरब देशों के साथ आर्थिक रूप से जोड़ने की दिशा में कदम बढ़ रहे थे। परंतु 7 अक्टूबर के बाद, फिलिस्तीन का प्रश्न एक बार फिर पश्चिम एशिया की राजनीति के केंद्र में लौट आया है, जिसने इस्रायल के दीर्घकालिक रणनीतिक उद्देश्यों को कमजोर कर दिया है।

मुख्य मुद्दे और तर्क
1. अक्टूबर 2023 से पहले का पश्चिम एशिया का स्वरूप
- इस्रायल, अमेरिका के सहयोग से, अब्राहम समझौतों (2020) के माध्यम से अरब देशों से संबंध सामान्य कर रहा था।
- इन समझौतों ने क्षेत्रीय व्यवस्था को पुनर्परिभाषित किया — यूएई, बहरीन और मोरक्को जैसे देश इस्रायल के साथ व्यापार और रक्षा मामलों में सहयोग करने लगे।
- अमेरिका का लक्ष्य था — फिलिस्तीनी मुद्दे को हाशिए पर डालना और ईरान को अलग-थलग करना, ताकि चीन और रूस के प्रभाव को संतुलित किया जा सके।
- लेकिन 7 अक्टूबर 2023 को हमास द्वारा किया गया हमला इस पूरी योजना को झकझोर गया, जिससे फिलिस्तीन प्रश्न फिर से केंद्र में आ गया और क्षेत्रीय दरारें उजागर हो गईं।
2. रणनीतिक भूलें और उनके परिणाम
- हमास का हमला इस्रायल की खुफिया प्रणाली की बड़ी विफलता थी, जिसने उसकी अजेयता की छवि को तोड़ दिया।
- इस्रायल की प्रतिक्रिया — गाज़ा में लम्बा और विनाशकारी सैन्य अभियान — ने सामरिक रूप से कुछ सफलता दी, लेकिन राजनयिक रूप से उसे अलग-थलग कर दिया।
- नागरिक हताहतों और मानवीय संकटों ने इस्रायल की नैतिक वैधता को कमजोर किया और विश्व स्तर पर सहानुभूति घटाई।
- अरब देशों को घरेलू जनमत के दबाव में इस्रायल के साथ अपने संबंधों की पुनर्समीक्षा करनी पड़ी।
- संक्षेप में, इस्रायल की सैन्य श्रेष्ठता राजनीतिक स्थिरता या राजनयिक समर्थन में नहीं बदल सकी।
3. अमेरिका की दुविधा और पश्चिम एशिया के नए समीकरण
- अमेरिका इस्रायल के प्रति अडिग समर्थन और अरब सहयोगियों के साथ संतुलन बनाए रखने की दोहरी चुनौती से जूझ रहा है।
- सऊदी अरब जैसे देशों ने सामान्यीकरण वार्ताओं को धीमा कर दिया है, जबकि ईरान ने गैर-राज्य कारकों के समर्थन के माध्यम से अपनी रणनीतिक पकड़ मजबूत की है।
- संपादकीय के अनुसार, अमेरिका की “नए पश्चिम एशिया” की परिकल्पना — जिसमें इस्रायल को अमेरिकी नेतृत्व वाले गुट में समाहित किया जाना था — अब विफल होती दिख रही है।
4. क्षेत्रीय और वैश्विक प्रभाव
- ईरान, हिज़्बुल्लाह और हूती समूहों ने फिलिस्तीनी मुद्दे को अपनी वैचारिक ताकत के रूप में प्रस्तुत करते हुए प्रभाव बढ़ाया है।
- चीन और रूस ने इस स्थिति का राजनयिक रूप से लाभ उठाया, बहुध्रुवीयता का समर्थन किया और पश्चिमी “दोहरे मानदंडों” की आलोचना की।
- संघर्ष के कारण तेल और व्यापार मार्गों में बदलाव आया है, जिससे वैश्विक आपूर्ति शृंखला पर दबाव बढ़ा और ऊर्जा सुरक्षा पर बहस फिर से शुरू हुई।
5. सामरिक सफलता, रणनीतिक दलदल
- इस्रायल ने हमास की सैन्य क्षमताओं को कमजोर कर कुछ सामरिक जीतें जरूर हासिल की हैं।
- लेकिन वह एक दीर्घकालिक रणनीतिक दलदल में फँस गया है — लगातार संघर्ष, राजनयिक समर्थन की हानि और बढ़ता अंतरराष्ट्रीय अलगाव।
- घरेलू मोर्चे पर नेतन्याहू सरकार आलोचना और सुरक्षा चुनौतियों से घिरी है, जिससे देश की राजनीतिक एकता खतरे में है।
आगे की राह
इस्रायल के लिए:
- उसे सैन्य दृष्टिकोण से हटकर राजनीतिक और मानवीय दृष्टिकोण अपनाना होगा, जिससे फिलिस्तीनी असंतोष के मूल कारणों का समाधान हो सके।
- एक विश्वसनीय युद्धविराम और पुनर्निर्माण योजना उसके राजनयिक संतुलन को कुछ हद तक बहाल कर सकती है।
अमेरिका और सहयोगियों के लिए:
- वाशिंगटन को अपनी एकतरफा क्षेत्रीय नीति पर पुनर्विचार कर, अरब संवेदनशीलताओं को ध्यान में रखना चाहिए।
- दो-राष्ट्र समाधान की चर्चा को पुनर्जीवित करना क्षेत्रीय स्थिरता और अमेरिकी साख के पुनर्निर्माण में सहायक हो सकता है।
वैश्विक शक्तियों के लिए:
- अंतरराष्ट्रीय समुदाय को संयुक्त राष्ट्र-प्रेरित शांति ढाँचे पर ज़ोर देना चाहिए, जिसमें जवाबदेही और पुनर्निर्माण दोनों शामिल हों।
- भारत, जो इस्रायल और फिलिस्तीन दोनों के साथ संबंध संतुलित रखता है, को संयम और संवाद की नीति पर कायम रहना चाहिए।
निष्कर्ष
7 अक्टूबर के बाद इस्रायल की दिशा एक विरोधाभास प्रस्तुत करती है — सामरिक सफलता लेकिन रणनीतिक असुरक्षा। गाज़ा अभियान ने अस्थायी सुरक्षा दी है, किंतु इसके बदले में इस्रायल ने अपनी वैधता, क्षेत्रीय साझेदारी और नैतिक प्रतिष्ठा खो दी है। अमेरिका समर्थित सामान्यीकरण प्रक्रिया ठहर गई है, और पश्चिम एशिया की शक्ति-संतुलन फिर से अस्थिर हो गया है। यदि इस्रायल समावेशी कूटनीति की ओर नहीं मुड़ा, तो उसकी सामरिक जीतें अंततः उसे अपने ही बनाए रणनीतिक भूलभुलैया में फँसा सकती हैं।