The Hindu Editorial Analysis in Hindi
15 November 2025
लचीला मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण: एक अच्छा संतुलन
(Source – The Hindu, International Edition – Page No. – 8)
विषय: सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र III: भारतीय अर्थव्यवस्था – मौद्रिक नीति, मुद्रास्फीति और विकास | सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र II: सरकारी नीतियाँ और संस्थागत ढाँचे
प्रसंग
भारत में 2016 से लागू लचीला मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण (Flexible Inflation Targeting – FIT) ढाँचा, संशोधित भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) अधिनियम के अंतर्गत स्थापित किया गया था। इसके तहत 4% मुद्रास्फीति लक्ष्य के साथ ±2% की सहनशील सीमा निर्धारित की गई। इस प्रावधान की समीक्षा मार्च 2026 में अपेक्षित है।
यह लेख इस बात का विश्लेषण करता है कि क्या यह ढाँचा मूल्य स्थिरता और आर्थिक वृद्धि के संतुलन में सफल रहा है तथा आगामी चरण के लिए इसमें किन सुधारों की आवश्यकता हो सकती है।

पृष्ठभूमि: मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण का विकास
- मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण की अवधारणा चक्रवर्ती समिति (1985) के बाद प्रमुखता से उभरी और 2016 में मौद्रिक नीति समिति (MPC) की स्थापना के साथ इसे संस्थागत रूप प्रदान किया गया।
- RBI को मूल्य स्थिरता बनाए रखने के साथ विकास एवं रोजगार के संवर्धन का कार्यात्मक स्वायत्तता प्राप्त हुई।
- इस ढाँचे की विश्वसनीयता 4% लक्ष्य के समीप मुद्रास्फीति बनाए रखने पर निर्भर करती है, जिससे पूर्वानुमेयता एवं निवेशकों का विश्वास सुनिश्चित होता है।
वर्तमान बहस के प्रमुख मुद्दे
1. हेडलाइन बनाम कोर मुद्रास्फीति
- क्या RBI को हेडलाइन मुद्रास्फीति (जिसमें खाद्य एवं ईंधन सम्मिलित होते हैं) को लक्ष्य बनाना चाहिए या कोर मुद्रास्फीति को?
- लेखकों का तर्क है कि हेडलाइन मुद्रास्फीति जीवन यापन की वास्तविक लागत और बचत पर प्रभाव को बेहतर ढंग से दर्शाती है—विशेषतः भारत में, जहाँ खाद्य उपभोग का घरों के व्यय में बड़ा हिस्सा होता है।
2. स्वीकार्य मुद्रास्फीति स्तर
- 1991–2023 के आँकड़ों से पता चलता है कि मुद्रास्फीति एवं आर्थिक वृद्धि के बीच अ-रैखिक संबंध है।
- लगभग 4% मुद्रास्फीति पर अधिकतम वृद्धि दर्ज की गई है।
- इसलिए 4% से नीचे मुद्रास्फीति लाना अतिरिक्त वृद्धि नहीं देता, बल्कि निवेश को बाधित कर सकता है।
3. मुद्रास्फीति सीमा (Band)
- ±2% की सहनशील सीमा (अर्थात् 2–6%) से RBI को परिचालन संबंधी लचीलापन मिलता है।
- महामारी, आपूर्ति श्रृंखला अवरोध तथा तेल संकट जैसे वैश्विक झटकों के बावजूद यह ढाँचा प्रभावी सिद्ध हुआ है।
नीतिगत विचार-विमर्श
1. फ़िलिप्स वक्र (Phillips Curve) का संतुलन
कम मुद्रास्फीति का स्तर रोजगार सृजन को प्रभावित कर सकता है; भारत में यह संबंध आंशिक रूप से अभी भी प्रासंगिक है।
2. राजकोषीय–मौद्रिक समन्वय
यदि राजकोषीय नीति अनुशासित न हो, तो आपूर्ति पक्ष की मुद्रास्फीति मौद्रिक कठोरता के बावजूद बनी रह सकती है। अतः दोनों नीतियों का समन्वय अनिवार्य है।
3. स्वायत्तता एवं जवाबदेही
RBI की स्वतंत्रता को संरक्षित रखना आवश्यक है, साथ ही निर्णय-प्रक्रिया की पारदर्शिता निरंतर बनी रहनी चाहिए ताकि जनता और बाज़ार दोनों का विश्वास बना रहे।
आगे की राह
1. 4% लक्ष्य को बनाए रखना
यह वृद्धि एवं स्थिरता के बीच संतुलित नाममात्र (Nominal) लंगर के रूप में उपयुक्त है।
2. सीमा (Band) की समीक्षा, लक्ष्य की नहीं
आर्थिक संरचना में बदलती प्रवृत्तियों को देखते हुए 2–6% का दायरा अभी भी यथार्थवादी है।
3. संवाद को सुदृढ़ करना
MPC की स्पष्ट सार्वजनिक मार्गदर्शन प्रणाली से बाजार की अपेक्षाओं को बेहतर ढंग से नियंत्रित किया जा सकता है।
4. आपूर्ति-पक्ष मजबूती पर ध्यान
लॉजिस्टिक्स, कृषि, एवं ऊर्जा क्षेत्र में सुधारों से लागत-धक्का (Cost-push) मुद्रास्फीति पर नियंत्रण संभव है।
निष्कर्ष
लचीला मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण (FIT) ढाँचा भारत की व्यापक आर्थिक स्थिरता सुनिश्चित करने में काफी हद तक सफल रहा है।
जैसा कि कहा गया है—
“मुद्रास्फीति नियंत्रण अपने-आप में लक्ष्य नहीं, बल्कि सतत् आर्थिक वृद्धि और वित्तीय विश्वास को प्रोत्साहित करने का साधन है।”
इसलिए 2026 की समीक्षा के संदर्भ में इस ढाँचे में सावधानीपूर्वक पुनर्संतुलन (Recalibration) उपयुक्त होगा, न कि इसके प्रतिस्थापन की आवश्यकता।