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प्रसंग
संयुक्त राष्ट्र की State of Food Security and Nutrition in the World 2025 रिपोर्ट दर्शाती है कि वैश्विक कुपोषण दर 2024 में घटकर 8.2% हो गई है (2023 में 8.5% थी)। इस वैश्विक सुधार में भारत ने सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) सुधारों, पोषण योजनाओं और कृषि-खाद्य प्रणाली रूपांतरण के माध्यम से निर्णायक भूमिका निभाई है। कोविड-19 के बाद से यह भारत की नीतिगत प्राथमिकताओं में एक बड़ा बदलाव दर्शाता है।

मुख्य मुद्दे और तर्क

1. भारत की निर्णायक भूमिका

  • भारत में कुपोषण दर: 14.3% (2020–22) → 12% (2022–24)
  • 3 करोड़ से अधिक लोग भूख से बाहर आए।
  • सुधार दर्शाते हैं:
    • खाद्य सुरक्षा
    • पोषण कार्यक्रम
    • स्मार्ट शासन
    • डिजिटल नवाचार में निवेश।

2. सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) का रूपांतरण

  • डिजिटलीकरण, आधार-आधारित पहचान, बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण
  • रीयल-टाइम इन्वेंट्री ट्रैकिंग और वन नेशन वन राशन कार्ड
  • प्रवासी और कमजोर वर्गों को बेहतर पहुँच।

3. कैलोरी से पोषण की ओर बदलाव

  • 60% से अधिक भारतीय स्वस्थ आहार का खर्च नहीं उठा सकते (महंगे दाम, कमजोर कोल्ड चेन, कमजोर बाजार संपर्क)।
  • सरकारी योजनाएँ:
    • पीएम पोषण (2021) – विद्यालय पोषण आहार।
    • आंगनवाड़ी/ICDS – मातृ एवं शिशु पोषण।

4. कृषि-खाद्य प्रणाली रूपांतरण

  • पोषक आहार (दालें, फल-सब्ज़ियाँ, पशु-आधारित प्रोटीन) सस्ता बनाना आवश्यक।
  • 13% फसल-उपरांत नुकसान घटाने हेतु बेहतर भंडारण और लॉजिस्टिक्स।
  • जलवायु-सहिष्णु फसलें और किसान उत्पादक संगठन (FPOs) को बढ़ावा।

5. डिजिटल बढ़त की भूमिका

  • AgriStack, e-NAM, भू-स्थानिक डेटा टूल्स से सुधार:
    • बाजार पहुँच
    • कृषि नियोजन
    • पोषण-केंद्रित हस्तक्षेप।

6. वैश्विक महत्व: आशा का प्रतीक

  • FAO ने भारत की भूमिका को वैश्विक बताया।
  • भारत के डिजिटल शासन, सामाजिक सुरक्षा और कृषि-तकनीक नवाचार विकासशील देशों के लिए प्रेरणा
  • SDG-2 (जीरो हंगर) और 2030 एजेंडा से जुड़ा।

नीति संबंधी अंतराल (Policy Gaps)

क्षेत्रकमी
पोषणस्वस्थ आहार की लागत अब भी अधिक
बाज़ार संपर्कअपर्याप्त कोल्ड चेन, कमजोर लॉजिस्टिक्स
शहरी गरीबमोटापा, कुपोषण, सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी
कृषि-खाद्य प्रणालीकैलोरी-केंद्रित, पोषण-संवेदनशील कम

आगे की राह

  • पोषण-केंद्रित नीतियाँ – केवल कैलोरी नहीं, विविध आहार पर ध्यान।
  • महिला और स्थानीय उद्यम – महिला-नेतृत्व वाले खाद्य व्यवसाय, FPOs, सहकारी समितियों को सशक्त करना।
  • जलवायु-सहिष्णु कृषि – टिकाऊ और पोषणयुक्त फसलें बढ़ावा देना।
  • डिजिटल नवाचार – AgriStack, e-NAM, AI, भू-स्थानिक टूल्स का विस्तार।
  • वैश्विक नेतृत्व – वैश्विक दक्षिण (Global South) के साथ भारत के सर्वश्रेष्ठ अभ्यास साझा करना।

नैतिक और दार्शनिक आयाम

  • भूख घटाना केवल पेट भरना नहीं बल्कि गरिमा, लचीलापन और अवसर सुनिश्चित करना है।
  • नैतिक नेतृत्व का अर्थ है राजनीतिक इच्छाशक्ति, समावेशन और स्थिरता के बीच संतुलन।

निष्कर्ष
भारत का अनुभव दिखाता है कि नीतिगत नवाचार, डिजिटल शासन और सामुदायिक लचीलापन के माध्यम से वैश्विक खाद्य प्रणालियाँ बदली जा सकती हैं। 2030 के सतत विकास लक्ष्यों के लिए पाँच वर्ष शेष हैं। भारत की यह गति न केवल भूख से लड़ाई जीत सकती है, बल्कि इसे पोषण न्याय, वैश्विक सहयोग और समतामूलक विकास की यात्रा में बदल सकती है।


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