The Hindu Editorial Analysis in Hindi
11 June 2025
शहरीकरण और आदर्श पारगमन समाधान की चुनौती
(स्रोत – द हिंदू, राष्ट्रीय संस्करण – पृष्ठ संख्या – 08)
विषय: जीएस पेपर 2: शहरी शासन, बुनियादी ढांचा, विकास, जीएस पेपर 3: सतत विकास, शहरी गतिशीलता, बजटीय योजना, पर्यावरण
संदर्भ
2060 तक भारत की लगभग 60% जनसंख्या शहरी होने का अनुमान है, जिससे देश को किफायती, टिकाऊ और समावेशी शहरी परिवहन प्रणालियों में निवेश की तत्काल आवश्यकता है। भारी निवेश के बावजूद मैट्रो रेल और ई-बसों में, केवल 37% शहरी भारतीयों के पास सार्वजनिक परिवहन की पहुँच है, जो योजना और पहुंच में मौलिक खामियों को दर्शाता है।

संपादकीय में उठाए गए मुख्य मुद्दे
- मैट्रो प्रणाली में अत्यधिक निवेश पर कम लाभ
- मैट्रो परियोजनाएं पूंजी-गहन होती हैं और अक्सर अनुमानित सवारी संख्या पूरी नहीं कर पातीं, जिससे वित्तीय दबाव बढ़ता है।
- अंतिम मील कनेक्टिविटी की उच्च लागत और किराए की संवेदनशीलता उपयोग को बाधित करती है।
- कई मैट्रो संचालन लागत वसूलने में विफल रहे, जिससे दीर्घकालिक सततता पर सवाल खड़े होते हैं।
- बस सिस्टम का कम उपयोग
- भारत को 2,00,000 शहरी बसों की आवश्यकता है, जबकि केवल 35,000 ही चल रही हैं।
- बजट आवंटन (PM ई-बस सेवा योजना, PM-ई-ड्राइव) के तहत 14,000+ नई ई-बसें जोड़ी जानी हैं, लेकिन कवरेज सीमित है।
- ट्राम और ट्रॉलीबस जैसे किफायती विकल्पों की अनदेखी
- ट्राम जीवन चक्र में 45% लाभ दिखाती हैं, जबकि ई-बसों को 7 दशकों में 82% नुकसान हुआ।
- योजनाकार अल्पकालिक व्यवहार्यता के कारण ट्राम को नजरअंदाज करते हैं, जबकि ये कम लागत और पर्यावरण-हितैषी हैं।
- शहरी परिवहन में असमानता
- मैट्रो स्टेशनों से अंतिम मील कनेक्टिविटी की कमी निम्न-आय वर्ग के लोगों के लिए पहुंच को सीमित करती है।
- भारतीय शहरी परिवहन महंगा एवं समावेशी नहीं है, जिससे सामाजिक और आर्थिक रूप से अकारगरता होती है।
नीति संबंधी अंतर्दृष्टियाँ और सुझाव
क्षेत्र | नीति की कमी | सुझाए गए सुधार |
---|---|---|
योजना और निवेश | मैट्रो और ई-बसों पर अधिक ध्यान | विविध सार्वजनिक परिवहन जैसे ट्राम और बसों में निवेश |
किफायतीपन | उच्च किराए और अंतिम मील की लागत | लक्षित सब्सिडी और बस फीडर सेवाओं में सुधार |
स्थिरता | गैर-नवीकरणीय ईंधन तकनीक का अधिक उपयोग | CNG, हाइड्रोजन, इलेक्ट्रिक और रेल आधारित प्रणालियों को प्राथमिकता |
व्यवहार्यता मूल्यांकन | दीर्घकालिक लाभ का अभाव | जीवन-चक्र लागत और लाभ-हानि विश्लेषण को योजना में शामिल करें |
कुछ केस-आधारित उदाहरण
- ब्राजील और चीन में 50% से अधिक शहरी निवासियों को परिवहन सुविधा प्राप्त है (भारत के 37% के मुकाबले)।
- कोलकाता की ट्राम प्रणाली का पुनरुद्धार और कोच्चि की ट्राम योजना से विरासत प्रणालियों के फिर से उपयोग की संभावना दिखती है।
- यूरोप में ट्रॉलीबस का उपयोग स्वच्छ और किफायती शहरी गतिशीलता का उदाहरण है।
नैतिक और पर्यावरणीय परिप्रेक्ष्य (GS4 लिंक)
- शहरी गतिशीलता केवल एक अवसंरचना मुद्दा नहीं, बल्कि समानता, पर्यावरण न्याय और अंतरपीढ़ीय स्थिरता का विषय है।
- अधिकार आधारित शहरी योजना में सभी के लिए, विशेष रूप से गरीब और विकलांगों के लिए परिवहन की सुविधा सुनिश्चित होनी चाहिए।
निष्कर्ष
भारत का शहरी भविष्य भव्य इन्फ्रास्ट्रक्चर से संचालित नहीं होना चाहिए, बल्कि क्रियात्मक, टिकाऊ और समावेशी गतिशीलता प्रणालियों द्वारा संचालित होना चाहिए। ट्राम, ट्रॉलीबस और बस रैपिड ट्रांजिट (BRT) प्रणाली कार्बन-गहन और कम उपयोगी मैट्रो लाइनों से बेहतर, समझदार और आर्थिक विकल्प प्रस्तुत करती हैं। योजना को अब प्रतीकात्मक दृश्यता से कार्यात्मक व्यवहार्यता की ओर स्थानांतरित करना होगा।