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संदर्भ

भारत का असंगठित श्रम क्षेत्र — जो देश की लगभग 90 प्रतिशत कार्यबल को रोजगार देता है — आज भी शोषण, रोजगार असुरक्षा तथा सामाजिक सुरक्षा के अभाव से ग्रस्त है।
सरकार की प्रमुख योजना “श्रमे शक्ति नीति 2025”, जिसे “भविष्य के लिए तैयार श्रम नीति” के रूप में प्रस्तुत किया गया है, का उद्देश्य कार्यबल का औपचारिकीकरण (Formalization) करना तथा “अधिकार-आधारित श्रम बाज़ार” को बढ़ावा देना है।
किन्तु वास्तविक स्थिति में यह स्पष्ट है कि वायदों और सुरक्षा के बीच की दूरी बढ़ती जा रही है, विशेषकर दैनिक मज़दूरों और गिग (Gig) कार्यकर्ताओं के लिए।

शोषण का संकट

इस्पात कारखानों, पत्थर खदानों तथा निर्माण स्थलों पर कार्यरत हज़ारों श्रमिकों को आज भी ईएसआई, पीएफ और मातृत्व लाभ जैसे मूल अधिकार नहीं मिल रहे हैं।
अक्सर श्रमिकों को “दैनिक मज़दूर” के रूप में पुनः वर्गीकृत कर दिया जाता है, जिससे उन्हें नियुक्ति के समय वादा किए गए स्थायी लाभों से वंचित कर दिया जाता है।
यह स्थिति भारत की विधिक संरचना में श्रम अधिकारों की कमज़ोर स्थिति को दर्शाती है, जबकि संविधान के अनुच्छेद 14, 16, 19, 21 और 23 इन अधिकारों की रक्षा का आश्वासन देते हैं।


श्रमे शक्ति नीति 2025 में नीतिगत कमियाँ

1. प्रवर्तन (Enforcement) का अभाव:
नीति में ऑडिट, त्रिपक्षीय निधि (Tripartite Funding) और कल्याण योजनाओं का वादा किया गया है, किन्तु इनके क्रियान्वयन के लिए ठोस प्रवर्तन तंत्र का अभाव है।

2. गिग एवं प्लेटफ़ॉर्म श्रमिकों का बहिष्कार:
लाखों गिग कार्यकर्ता अब भी औपचारिक सुरक्षा तंत्र से बाहर हैं; उनके लिए वेतन, बीमा तथा व्यावसायिक सुरक्षा को लेकर कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है।

3. डिजिटल समावेशन बिना सुरक्षा के:
नीति में पेरोल और पंजीकरण के लिए डिजिटल प्रणाली लागू करने की बात की गई है, परन्तु इससे डेटा निगरानी (Data Surveillance) और एल्गोरिदमिक पक्षपात (Algorithmic Bias) का खतरा बढ़ जाता है, विशेषकर डिजिटल इंडिया ढाँचे के अंतर्गत।

4. व्यावसायिक सुरक्षा प्रावधानों की कमज़ोरी:
हालाँकि नीति में “Occupational Safety, Health and Working Conditions Code” का उल्लेख है, परंतु कमज़ोर निरीक्षण प्रणाली और सीमित यूनियन भागीदारी के कारण यह प्रभावहीन सिद्ध होती है।


चिंताजनक क्षेत्र
  • लिंग एवं जातीय असमानता: महिलाओं को समान कार्य के लिए समान वेतन न मिलना तथा असुरक्षित कार्यस्थल की स्थिति अनुच्छेद 15(1) और 39(d) का उल्लंघन करती है।
  • यूनियनों का दमन: सामूहिक सौदेबाज़ी (Collective Bargaining) के अधिकारों के अभाव में श्रमिक शोषण के प्रति अधिक संवेदनशील बने रहते हैं।
  • नियामक निगरानी में गिरावट: श्रम निरीक्षक तंत्र के संकुचन और निजी ऑडिट व्यवस्था के विस्तार से उत्तरदायित्व और पारदर्शिता में कमी आई है।

आगे की राह

1. संवैधानिक आदेशों को सुदृढ़ करना:
श्रम अधिकारों को सामाजिक न्याय का मूल अंग मानते हुए, अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के मानकों और संवैधानिक प्रावधानों का पूर्ण अनुपालन सुनिश्चित किया जाए।

2. त्रिपक्षीय ढाँचे को सशक्त बनाना:
यूनियनों, नियोक्ताओं और सरकारी निकायों को न्यायसंगत वेतन निर्धारण तथा सुरक्षित कार्य परिस्थितियों हेतु सक्रिय रूप से सहयोग करने का अवसर दिया जाए।

3. डिजिटल उत्तरदायित्व सुनिश्चित करना:
डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म पर पारदर्शी ऑडिट प्रणाली विकसित की जाए, जिससे एल्गोरिदमिक शोषण और डेटा दुरुपयोग पर अंकुश लगाया जा सके।

4. असंगठित श्रमिकों हेतु लक्षित योजनाएँ:
सभी प्रकार के रोजगारों को समाहित करते हुए स्वास्थ्य, बीमा, मातृत्व एवं पेंशन जैसी सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का विस्तार किया जाए।


निष्कर्ष

श्रमे शक्ति नीति 2025” का “अधिकार-आधारित, भविष्य के लिए तत्पर भारत” का दृष्टिकोण तब तक अधूरा रहेगा,
जब तक इसे सुदृढ़ जवाबदेही और प्रभावी क्रियान्वयन का समर्थन नहीं मिलेगा।

“एक डिजिटल डैशबोर्ड कठोर परिश्रम से झुलसे हाथों का उपचार नहीं कर सकता।
भारत के श्रमिकों को वादों की नहीं, बल्कि न्याय की आवश्यकता है —
न्यायपूर्ण वेतन, सम्मान और क़ानूनी सुरक्षा की।

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