The Hindu Editorial Analysis in Hindi
20 September 2025
सऊदी-पाकिस्तान समझौता एक संदिग्ध बीमा पॉलिसी है
(Source – The Hindu, International Edition – Page No. – 8)
Topic : जीएस पेपर II – अंतर्राष्ट्रीय संबंध | जीएस पेपर III – सुरक्षा | निबंध/अंतर्राष्ट्रीय संबंध वैकल्पिक विषय
प्रस्तावना
सितंबर 2025 में रियाद में घोषित सऊदी अरब–पाकिस्तान रणनीतिक रक्षा समझौता (SDA) को सऊदी सुरक्षा के लिए एक नया आश्वासन बताया जा रहा है। इसमें सैन्य सहयोग, प्रशिक्षण, और आपातकालीन तैनाती की गारंटी शामिल है। यद्यपि इसे रियाद के लिए सुरक्षा कवच के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है, संपादकीय तर्क देता है कि यह समझौता न तो स्थायी है, न ही विश्वसनीय, बल्कि दीर्घकाल में प्रतिकूल साबित हो सकता है।

मुख्य मुद्दे और तर्क
1. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
- संबंध 1951 से; 1979–87 के दौरान पाकिस्तानी सैन्य टुकड़ियाँ पवित्र स्थलों की सुरक्षा हेतु सऊदी में तैनात।
- कुवैत संकट (1990) और यमन युद्ध (2015) में भी सीमित भूमिका।
- रियाद ने पाकिस्तान को हमेशा “बीमा पॉलिसी” की तरह देखा, पर फ्रंटलाइन जिम्मेदारी नहीं सौंपी।
2. SDA की प्रतिज्ञाएँ
- द्विपक्षीय बाध्यकारी रक्षा समझौता।
- संयुक्त प्रशिक्षण, हथियार आपूर्ति और सैनिक तैनाती।
- ईरान, यमन और इज़राइल संबंधी तनाव में पाकिस्तान को बैकअप पार्टनर बनाना।
3. समझौते की प्रमुख कमजोरियाँ
- पाकिस्तानी भूमिका की सीमित विश्वसनीयता:
- ऐतिहासिक रूप से सक्रिय युद्ध में भागीदारी से परहेज़।
- आंतरिक अस्थिरता और आर्थिक संकट रणनीतिक प्रतिबद्धताओं को कमजोर करते हैं।
- क्षेत्रीय प्रभाव:
- सुन्नी–शिया तनाव बढ़ने की आशंका।
- पाकिस्तान को पश्चिम एशिया के संघर्षों में गहराई से उलझा सकता है।
- अमेरिकी कारक:
- अतीत में अमेरिका सऊदी सुरक्षा का मुख्य आधार रहा।
- SDA अमेरिका की जगह कमजोर विकल्प जैसा प्रतीत होता है।
4. रियाद की गणना
- गाज़ा युद्ध, ईरान की बढ़ती शक्ति, और यमन की अस्थिरता के बीच आश्वासन की तलाश।
- अमेरिका की घटती विश्वसनीयता से विकल्प खोजने की प्रवृत्ति।
- पाकिस्तानी सैन्य जनशक्ति – पश्चिमी सैनिकों की तुलना में सस्ता और राजनीतिक रूप से स्वीकार्य विकल्प।
5. कमजोर बीमा क्यों?
- समझौता प्रतीकात्मक अधिक है, व्यावहारिक कम।
- पाकिस्तान अमेरिकी सुरक्षा गारंटी का स्थान नहीं ले सकता।
- तैनाती घरेलू राजनीतिक दबावों और सीमित क्षमता पर निर्भर।
- विरोधी ताकतें समझौते की सीमाओं को परख सकती हैं।
नीति-गत खामियाँ
क्षेत्र | खामी |
---|---|
सऊदी रक्षा | बाहरी मानवशक्ति पर निर्भरता, स्वदेशी रक्षा विकास का अभाव |
पाकिस्तान की भूमिका | आंतरिक अस्थिरता, सीमित क्षमता |
क्षेत्रीय स्थिरता | समझौता सांप्रदायिक तनाव को बढ़ावा दे सकता है |
अमेरिका–सऊदी संबंध | पाकिस्तान पर अत्यधिक निर्भरता, टिकाऊ विकल्प नहीं |
आगे की राह
- विविधीकृत सुरक्षा रणनीति: सऊदी को स्वदेशी रक्षा क्षमता पर बल देना चाहिए।
- कूटनीतिक संतुलन: ईरान और अन्य क्षेत्रीय पक्षों से संवाद बढ़ाना।
- आर्थिक–सुरक्षा संयोजन: दीर्घकालिक सुधारों और रोजगार में निवेश।
- भारत के लिए:
- रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखना।
- ऊर्जा व आर्थिक सहयोग में रियाद की कमजोरियों का लाभ उठाना।
- क्षेत्रीय अस्थिरता से उत्पन्न जोखिमों के लिए तैयारी।
नैतिक एवं रणनीतिक आयाम
- यह समझौता वास्तविक सुरक्षा निर्माण नहीं, बल्कि राजनीतिक तात्कालिकता का प्रतीक है।
- रियाद अपनी असुरक्षाएँ पाकिस्तान पर थोप रहा है, जबकि पाकिस्तान स्वयं अस्थिर है।
- स्थायी शांति और सुरक्षा केवल समावेशी कूटनीति से संभव है, न कि सैन्य बीमा पॉलिसियों से।
निष्कर्ष
सऊदी–पाकिस्तान SDA एक कमज़ोर बीमा पॉलिसी की तरह है, न कि ठोस सुरक्षा ढाँचा। यह अस्थायी रूप से रियाद को आश्वस्त कर सकता है, पर पाकिस्तान को गहरे संघर्षों में धकेलने और ईरान जैसे विरोधियों को उकसाने का जोखिम अधिक है।
भारत के लिए यह विकास इस बात का संकेत है कि पश्चिम एशिया की गतिविधियों पर निकट दृष्टि रखी जाए, सभी पक्षों से संतुलित संबंध बनाए जाएँ और ऊर्जा–सुरक्षा व्यवधानों के लिए सजग तैयारी की जाए।