The Hindu Editorial Analysis in Hindi
14 August 2025
सहायता और सलाह
(Source – The Hindu, International Edition – Page No. – 8)
Topic : जीएस 2: संघ और राज्यों के कार्य और जिम्मेदारियाँ
प्रसंग
उप-राज्यपाल (एल-जी) के अनियंत्रित नामांकन अधिकार जम्मू-कश्मीर के चुनावों को प्रभावित कर सकते हैं।

परिचय
जम्मू-कश्मीर में उप-राज्यपाल के नामांकन अधिकारों पर केंद्रीय गृह मंत्रालय का रुख लोकतांत्रिक जवाबदेही को लेकर गंभीर चिंताएँ उत्पन्न करता है। यदि पाँच नामित सदस्यों को बिना निर्वाचित सरकार की सलाह और सहमति के मतदान का अधिकार दिया जाता है, तो यह प्रशासनिक विवेक के माध्यम से विधायिका में बहुमत की संरचना बदलने और जनता के जनादेश को पलटने की संभावना पैदा करता है। यह संविधान की मूल संरचना के सिद्धांत को कमजोर कर सकता है।
मंत्रालय का पक्ष और लोकतांत्रिक चिंताएँ
- गृह मंत्रालय का रुख: गृह मंत्रालय ने जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय को बताया कि उप-राज्यपाल बिना निर्वाचित सरकार की “सलाह और सहमति” के पाँच विधानसभा सदस्यों को नामित कर सकते हैं।
- जवाबदेही का प्रश्न: जब नामित सदस्यों को मतदान का अधिकार प्राप्त हो, तो उनका चयन प्रशासनिक विवेक के बजाय लोकतांत्रिक जनादेश पर आधारित होना चाहिए।
- संवैधानिक मुद्दा: उच्च न्यायालय यह देख रहा है कि 2023 के जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम में किया गया संशोधन—जिसके तहत एल-जी को पाँच सदस्य नामित करने का अधिकार है—क्या संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन करता है।
- संभावित प्रभाव: इस अधिकार के जरिए नामित सदस्य अल्पमत सरकार को बहुमत में या बहुमत सरकार को अल्पमत में बदल सकते हैं।
कानूनी तर्क और उद्धृत मिसालें
- मंत्रालय का दृष्टिकोण: संवैधानिक सिद्धांत से अधिक तकनीकी कानूनी बिंदुओं पर जोर।
- अधिकार का दायरा: दावा किया गया कि नामांकन का विषय निर्वाचित सरकार के अधिकार-क्षेत्र से बाहर है।
- पुडुचेरी मिसाल: के. लक्ष्मीनारायण बनाम भारत संघ मामले का हवाला, जिसमें एल-जी के नामांकन अधिकार को समर्थन मिला था।
- वैधानिक आधार: 1963 के केंद्रशासित प्रदेश अधिनियम की धारा 12 (मतदान प्रक्रिया) का उल्लेख, यह दर्शाने के लिए कि नामांकन में लोकतांत्रिक परामर्श आवश्यक नहीं।
- स्वीकृत संख्या का तर्क: 119 सदस्यीय विधानसभा की ‘स्वीकृत संख्या’ में निर्वाचित और नामित दोनों सदस्य शामिल बताए गए, जिससे सरकार के स्थायित्व पर प्रभाव को कमतर बताया गया।
परिणाम, ऐतिहासिक संदर्भ और विरोधाभास
- संशोधन प्रावधान: 2019 अधिनियम की धाराएँ 15A और 15B के अनुसार एल-जी नामित कर सकते हैं:
- दो कश्मीरी प्रवासी (एक महिला सहित)।
- पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से एक व्यक्ति।
- यदि विधानसभा में महिलाओं का प्रतिनिधित्व कम हो, तो दो महिलाएँ।
- ऐतिहासिक उदाहरण: पुडुचेरी (2021) में नामित सदस्यों और दल-बदल करने वाले विधायकों ने कांग्रेस नेतृत्व वाली सरकार गिराने में भूमिका निभाई।
- जम्मू-कश्मीर में लोकतांत्रिक नाज़ुकता: केंद्रशासित प्रदेश में परिवर्तन निर्वाचित प्रतिनिधियों से परामर्श के बिना हुआ। राज्य का दर्जा बहाल करने का वादा अब तक अधूरा है, जबकि इस पर व्यापक समर्थन और सुप्रीम कोर्ट की मान्यता है।
- सुप्रीम कोर्ट का रुख: दिल्ली सेवाओं मामलों (2018, 2023) में अदालत ने कहा कि एल-जी को सामान्यतः निर्वाचित सरकार की सलाह पर कार्य करना चाहिए; विवेकाधिकार अपवादस्वरूप हो।
- विरोधाभास: मंत्रालय का तर्क इस न्यायिक दृष्टिकोण को कमजोर करता है और नियुक्त सदस्यों के माध्यम से चुनावी जनादेश को पलटने का खतरा पैदा करता है।
निष्कर्ष
उप-राज्यपाल को बिना लोकतांत्रिक परामर्श के सदस्यों को नामित करने का अधिकार देना जम्मू-कश्मीर में प्रतिनिधिक शासन की मूल भावना को कमजोर कर सकता है। क्षेत्र के संवेदनशील राजनीतिक इतिहास, राज्य का दर्जा बहाल न होने, और सुप्रीम कोर्ट द्वारा विवेकाधिकार सीमित करने के निर्देशों को देखते हुए, कोई भी ऐसा ढाँचा जो नियुक्त अधिकारियों को विधानसभा में बहुमत बदलने की शक्ति दे, भारत की संसदीय प्रणाली की लोकतांत्रिक आत्मा और संवैधानिक अखंडता के लिए सीधा खतरा है।