The Hindu Editorial Analysis in Hindi
5 July 2025
सांप्रदायिक व्यवस्था लाने के लिए एक सोची समझी रणनीति
(स्रोत – द हिंदू, अंतर्राष्ट्रीय संस्करण – पृष्ठ संख्या – 6)
विषय: GS 2: भारतीय संविधान-ऐतिहासिक आधार, विकास, विशेषताएँ, संशोधन, महत्वपूर्ण प्रावधान और बुनियादी संरचना
संदर्भ:
भारत के संविधान के “धर्मनिरपेक्ष” एवं “समाजवादी” स्वरूप पर तीव्र कट्टरपंथी हमले हो रहे हैं। राष्ट्रव्यापी सार्वजनिक जागरूकता, कानूनी चुनौतियाँ, राजनीतिक संगठित प्रयास और लोकतांत्रिक प्रतिरोध के माध्यम से इन हमलों का सशक्त मुकाबला आवश्यक है।

परिचय:
भारतीय संविधान के 75 वर्षों के समारोह से पूर्व, सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद संविधान के प्रस्तावना का अभिन्न हिस्सा हैं। ये शब्द 1976 के 42वें संशोधन के माध्यम से शामिल किए गए थे। तथापि, कुछ कट्टर दक्षिणपंथी समूह इसे हटाने की कोशिश कर रहे हैं, मगर हालिया सुप्रीम कोर्ट के फैसलों ने इन शब्दों की वैधता और संवैधानिकता को पुन: पुष्ट किया।
न्यायपालिका का रुख बनाम RSS-BJP का वैचारिक आक्रमण:
- न्यायपालिका द्वारा संविधान की मूल मान्यताओं का समर्थन उच्च स्तर की पुष्टि है।
- RSS, BJP के वैचारिक केंद्र ने प्रस्तावना से “धर्मनिरपेक्ष” और “समाजवादी” शब्द हटाने की मांग की है।
- देश के शीर्ष संवैधानिक पदों से भी धर्म और राष्ट्र के मेल को बल देने वाले विवादास्पद बयान सामने आए।
- यह ध्रुवीकरण पर आधारित एक राजनीतिक रणनीति है जो आधुनिक, बहुलतावादी और लोकतांत्रिक भारत की विरासत को कमजोर कर, सांप्रदायिक और असमान व्यवस्था को स्थापित करना चाहता है।
संवैधानिक सहमति और उसका महत्व:
- संविधान निर्माण के दौरान पूर्णतः धर्मनिरपेक्ष राज्य के पक्षधर सभी सदस्यों का एकमत था।
- इसके प्रस्तावक किसी भी प्रकार के धर्मनिरपेक्ष विरोधी राज्य नहीं चाहते थे।
- यह सहमति भारत के विविधता में एकता वाले राष्ट्रीय स्वरूप का आधार है जो उपनिवेशवादी नीति, सांप्रदायिक राजनीति व जातिगत वर्चस्व को अस्वीकार करती है।
मौजूदा संकट:
- RSS-BJP हिंदू राष्ट्र की विचारधारा के अनुसार संविधान की पहचान को परिवर्तित करने में लगे हैं।
- राम मंदिर के समर्पण दिवस पर प्रधानमंत्री मोदी द्वारा “राम है राष्ट्र, देव है देश” जैसी अभिव्यक्तियों ने धर्म और राज्य की सीमाओं को धुंधला किया।
- संविधान के निर्माता जिस धर्मनिरपेक्षता और विविधता में एकता को लक्षित करते थे, आज की राजनीति में उसकी जगह हिंदू बहुसंख्यकता ने ले ली है।
ऐतिहासिक चेतावनियाँ:
- गांधी, डॉ. भीमराव अम्बेडकर, और अन्य नेताओं ने बार-बार राज्य की धार्मिक तटस्थता पर जोर दिया।
- संविधान सभा के सदस्यों ने खुले रूप से धर्मनिरपेक्ष गणराज्य की आवश्यकता जताई।
- अम्बेडकर ने “हिंदू राज” की संभावना को देश के लिए सबसे बड़ा संकट बताया।
समाजवाद का संवैधानिक लक्ष्य:
- संविधान के अनुच्छेद 37 में सामाजिक न्याय, समानता और आर्थिक गरिमा सुनिश्चित करने वाली समाजवादी धारणाएं प्रतिफलित हैं।
- इसका उद्देश्य जातिगत शोषण, भूमिहीनता, गरीबी और भेदभाव का क्रमशः समाप्तिकरण है।
वर्तमान खतरा:
- RSS द्वारा धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद शब्दों को हटाने का प्रयास संविधानात्मक गणराज्य को तोड़ने, धार्मिक व जातिगत वर्चस्व को बढ़ावा देने तथा अभिजात्य राजनीतिक तंत्र स्थापित करने की रणनीति है।
आवश्यकता – संगठित प्रतिरोध:
- इस खतरे का मुकाबला केवल एक क्षेत्रीय प्रयास नहीं, बल्कि व्यापक जनजागरण, कानूनी लड़ाई, राजनीतिक mobilisation और लोकतांत्रिक आंदोलन के जरिए होना चाहिए।
- भारतीय संविधान एक मात्र कानूनी दस्तावेज नहीं, अपितु सामाजिक, राजनीतिक और नैतिक समझौता है जो स्वतंत्रता संग्राम एवं बलिदानों की परिणति है।
- यह भारत को सभी नागरिकों का समान अधिकार देने वाला दस्तावेज है।
निष्कर्ष:
धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद की रक्षा करना आज लोकतंत्र की रक्षा के समानार्थी है। यह भारत के हर नागरिक के अधिकार और गरिमा की रक्षा करना, समानता, स्वतंत्रता और न्याय के मूल्यों को कायम रखना है। गणराज्य अपने आप में स्थायी नहीं है; इसे संरक्षित, संवर्धित और जब भी खतरा आए, तभी संग