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  • न्यायपालिका द्वारा संविधान की मूल मान्यताओं का समर्थन उच्च स्तर की पुष्टि है।
  • RSS, BJP के वैचारिक केंद्र ने प्रस्तावना से “धर्मनिरपेक्ष” और “समाजवादी” शब्द हटाने की मांग की है।
  • देश के शीर्ष संवैधानिक पदों से भी धर्म और राष्ट्र के मेल को बल देने वाले विवादास्पद बयान सामने आए।
  • यह ध्रुवीकरण पर आधारित एक राजनीतिक रणनीति है जो आधुनिक, बहुलतावादी और लोकतांत्रिक भारत की विरासत को कमजोर कर, सांप्रदायिक और असमान व्यवस्था को स्थापित करना चाहता है।
  • संविधान निर्माण के दौरान पूर्णतः धर्मनिरपेक्ष राज्य के पक्षधर सभी सदस्यों का एकमत था।
  • इसके प्रस्तावक किसी भी प्रकार के धर्मनिरपेक्ष विरोधी राज्य नहीं चाहते थे।
  • यह सहमति भारत के विविधता में एकता वाले राष्ट्रीय स्वरूप का आधार है जो उपनिवेशवादी नीति, सांप्रदायिक राजनीति व जातिगत वर्चस्व को अस्वीकार करती है।
  • RSS-BJP हिंदू राष्ट्र की विचारधारा के अनुसार संविधान की पहचान को परिवर्तित करने में लगे हैं।
  • राम मंदिर के समर्पण दिवस पर प्रधानमंत्री मोदी द्वारा “राम है राष्ट्र, देव है देश” जैसी अभिव्यक्तियों ने धर्म और राज्य की सीमाओं को धुंधला किया।
  • संविधान के निर्माता जिस धर्मनिरपेक्षता और विविधता में एकता को लक्षित करते थे, आज की राजनीति में उसकी जगह हिंदू बहुसंख्यकता ने ले ली है।
  • गांधी, डॉ. भीमराव अम्बेडकर, और अन्य नेताओं ने बार-बार राज्य की धार्मिक तटस्थता पर जोर दिया।
  • संविधान सभा के सदस्यों ने खुले रूप से धर्मनिरपेक्ष गणराज्य की आवश्यकता जताई।
  • अम्बेडकर ने “हिंदू राज” की संभावना को देश के लिए सबसे बड़ा संकट बताया।
  • संविधान के अनुच्छेद 37 में सामाजिक न्याय, समानता और आर्थिक गरिमा सुनिश्चित करने वाली समाजवादी धारणाएं प्रतिफलित हैं।
  • इसका उद्देश्य जातिगत शोषण, भूमिहीनता, गरीबी और भेदभाव का क्रमशः समाप्तिकरण है।
  • RSS द्वारा धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद शब्दों को हटाने का प्रयास संविधानात्मक गणराज्य को तोड़ने, धार्मिक व जातिगत वर्चस्व को बढ़ावा देने तथा अभिजात्य राजनीतिक तंत्र स्थापित करने की रणनीति है।
  • इस खतरे का मुकाबला केवल एक क्षेत्रीय प्रयास नहीं, बल्कि व्यापक जनजागरण, कानूनी लड़ाई, राजनीतिक mobilisation और लोकतांत्रिक आंदोलन के जरिए होना चाहिए।
  • भारतीय संविधान एक मात्र कानूनी दस्तावेज नहीं, अपितु सामाजिक, राजनीतिक और नैतिक समझौता है जो स्वतंत्रता संग्राम एवं बलिदानों की परिणति है।
  • यह भारत को सभी नागरिकों का समान अधिकार देने वाला दस्तावेज है।

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