The Hindu Editorial Analysis in Hindi
16 May 2025
मणिपुर मुद्दे पर दृष्टिकोण का विरोधाभास
(स्रोत – द हिंदू, राष्ट्रीय संस्करण – पृष्ठ संख्या – 08)
विषय: जीएस 2: शासन | आंतरिक सुरक्षा | केंद्र-राज्य संबंध | जातीय संघर्ष और नीति प्रतिक्रिया |
संदर्भ
- मणिपुर में मई 2023 से मेइतेई और कुकि समुदायों के बीच लंबा जातीय हिंसात्मक संघर्ष जारी है, जिसमें 250 से अधिक लोग मारे गए और हजारों विस्थापित हुए हैं।
- सैन्य बलों की तैनाती और प्रशासनिक हस्तक्षेपों के बावजूद संघर्ष अनसुलझा है, जिससे नई दिल्ली की आंतरिक सुरक्षा और मानवाधिकार नीति पर सवाल उठ रहे हैं।
- यह संपादकीय भारत की सैन्यकृत दृष्टिकोण और राजनीतिक समझौते की आवश्यकता के बीच के गहरे विरोधाभास की आलोचना करता है।

परिचय
- मणिपुर में सुरक्षा बल मौजूद हैं, लेकिन सुरक्षा नहीं है।
- केंद्र की नीति ने राजनीतिक सामंजस्य की बजाय सैन्य नियंत्रण को प्राथमिकता दी है, जो पूरे पूर्वोत्तर क्षेत्र में एक व्यापक पैटर्न को दर्शाता है—जहां सुरक्षा का मतलब सत्ता पकड़ना है, न कि समझौता।
- यह विरोधाभास भारत की आंतरिक शांति रणनीति को कमजोर करता है और जातीय समूहों में दूरी बढ़ाने का खतरा पैदा करता है।
मुख्य मुद्दा: सैन्यकृत शासन
- राजनीतिक संलग्नता में देरी
- केंद्र ने संकट के दौरान सुरक्षा प्रतिष्ठानों का दौरा जरूर किया, लेकिन समावेशी समाधान के लिए गंभीर राजनीतिक संवाद में देरी दिखाई।
- यह पूर्वोत्तर की पुरानी नीति का पुनरावृत्ति है, जहां सैन्य रोकथाम राजनीतिक वार्तालाप की जगह ले लेती है।
- सुरक्षा और पुलिसिंग का बाहरीकरण
- 3 मई की हिंसा के बाद सरकार ने ग्राम आधारित मिलिशिया समूहों (जैसे VDF, VBIG) पर निर्भरता बढ़ाई, जिससे जातीय ध्रुवीकरण और बढ़ा।
- इससे राज्य की जिम्मेदारी कमजोर हुई, सशस्त्र समूहों को बढ़ावा मिला और प्रतिक्रिया स्वरूप हिंसा का सिलसिला चला।
पूर्वोत्तर नीति में व्यापक पैटर्न
- अतीत की प्रतिध्वनि
- भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र को राष्ट्रीय सुरक्षा के नजरिए से देखा गया है, जहां अस्थायी सैन्य हस्तक्षेपों को प्राथमिकता मिली।
- NSCN, ULFA और PLA जैसी संगठनों के खिलाफ भी यही दृष्टिकोण अपनाया गया, जो दीर्घकालिक समाधान तक नहीं पहुंच पाया।
- मूल कारणों और स्वायत्तता की मांगों की अनदेखी
- जातीय समूहों की भूमि, पहचान और स्वायत्तता से जुड़ी मांगे बिना समाधान के छोड़ दी गई हैं।
- भारत-म्यांमार सीमा पर बाड़ लगाने और शरणार्थी प्रवाह रोकने के प्रयास इस क्षेत्र को अलग-थलग करने की इच्छा दर्शाते हैं, न कि समावेश की।
न्याय विहीन सुरक्षा: जातीय मांगों का संकट
- AFSPA और हथियार अधिनियम का उपयोग
- राष्ट्रपति शासन के पुनः लागू होने और कड़े कानूनों से यह संदेश जाता है कि दिल्ली व्यवस्था को न्याय से ऊपर महत्व देती है।
- विस्थापित समुदायों के लिए सामंजस्य, विमुद्रीकरण और पुनर्वास के उपाय न किए जाने से अविश्वास गहरा गया है।
- मानवीय जवाबदेही पर चुप्पी
- बड़े पैमाने पर विस्थापन, राहत कार्यों और अत्याचारों की जिम्मेदारी पर केंद्र ने पारदर्शिता नहीं दिखाई।
- इस चयनात्मक मौन ने जनता के मध्य भरोसा कम किया और सांप्रदायिक आघात को न मिटा पाने तथा भविष्य में अशांति रोकने में नाकामी दिखाई।
निष्कर्ष
- मणिपुर में सिर्फ सैन्य मौजूदगी से शांति संभव नहीं है।
- केंद्र की नीति को सैन्य नियंत्रण से हटाकर समावेशी प्रशासन की दिशा में बढ़ना होगा।
- बिना सच्चे राजनीतिक संवाद, जवाबदेही और ऐतिहासिक पीड़ाओं के प्रति संवेदनशीलता के शांति दूर की कौड़ी रहेगी।
- भारत की पूर्वोत्तर में आंतरिक सुरक्षा भय पर नहीं, बल्कि न्याय, स्वायत्तता और सहानुभूति पर आधारित होनी चाहिए—जो किसी भी सच्चे लोकतांत्रिक संघ के मूल स्त