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प्रसंग:
जैसे-जैसे भारत तेजी से शहरीकरण की ओर बढ़ रहा है — जहाँ 2050 तक शहरों में 800 मिलियन से अधिक लोग रहेंगे — इसकी शहरी शासन व्यवस्था की समावेशिता लोकतांत्रिक परिणामों को आकार देगी। हालांकि राजनीतिक संरचनाओं में महिलाओं के प्रतिनिधित्व के लिए संवैधानिक प्रावधान हैं, शहरी नौकरशाह वर्ग अभी भी अधिकतर पुरुषप्रधान है, जिससे समावेशी और लैंगिक-संवेदनशील विकास को बाधा पहुंचती है।

परिचय:
जहाँ पंचायत राज संस्थानों (PRIs) और शहरी स्थानीय सरकारों (ULGs) में महिलाएं अब 46% से अधिक निर्वाचित सीटें धारण करती हैं, वहीं शहरी नौकरशाही जैसे नगर अभियांत्रिकी, परिवहन विभाग, और नियोजन विभागों में उनका प्रतिनिधित्व असामान्य रूप से कम है। इससे अवसंरचना, परिवहन, और सार्वजनिक सुरक्षा संबंधी पहलों के डिजाइन और कार्यान्वयन में गंभीर अंधापन पनपता है।

नौकरशाही में लैंगिक अंतर: तथ्य और चिंताएँ

  1. शहरी नौकरशाही में खराब लैंगिक प्रतिनिधित्व
  • 2022 तक केवल 20% भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) अधिकारी महिलाएं थीं।
  • राष्ट्रीय पुलिस बल में केवल 11.7% महिलाएं हैं, जो अधिकतर डेस्क कार्यों में होंती हैं।
  • अभियांत्रिकी और परिवहन विभागों में महिलाओं की संख्या इससे भी कम है।
  1. बोझिल प्राथमिकताएँ और बहिष्कार
  • महिलाओं की वास्तविक जीवन स्थितियों को अक्सर नजरअंदाज किया जाता है।
  • उदाहरण: दिल्ली और मुंबई की 84% महिलाएं सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करती हैं, फिर भी योजना बनाने में पुरुषों की आवाजाही की जरूरतों को प्राथमिकता दी जाती है।
  • कम रोशनी, असुरक्षित अवसंरचना, और खराब अंतिम किलोमीटर कनेक्टिविटी का महिलाओं पर असमान प्रभाव पड़ता है।

लैंगिक-संवेदनशील शासन में अवसरों की कमी

  1. लैंगिक-संवेदनशील बजट निर्माण (GRB): कम उपयोग किया गया उपकरण
  • 2005 में शुरू किया गया, GRB बजट आवंटन में लैंगिक समानता को एकीकृत कर सकता है।
  • परंतु संस्थागत क्षमता की कमी और कमजोर कार्यान्वयन के कारण इसका प्रभाव सीमित है।
  1. अच्छा अभ्यास के अध्ययन
  • दिल्ली, तमिलनाडु, केरल जैसे स्थानों में महिलाओ के लिए बसें, लैंगिक-संवेदनशील सार्वजनिक प्रकाश व्यवस्था और स्वच्छता को प्राथमिकता दी गई है।
  • फिलीपींस, ब्राजील, ट्यूनिसिया जैसे वैश्विक उदाहरणों में लैंगिक केन्द्रित बजट बनाने से सुरक्षा, आश्रय, बाल देखभाल, और शिक्षा की पहुंच में सुधार हुआ है।

लैंगिक-संवेदनशील नौकरशाह वर्ग क्यों महत्वपूर्ण है

  • महिला अधिकारी सार्वजनिक नीति में सहानुभूति, सुरक्षा की चिंता और अनुभव लाती हैं।
  • प्रतिनिधित्व में समानता केवल दिखावा नहीं, बल्कि मजबूती और समावेशी शहरी शासन के लिए संरचनात्मक आवश्यकता है।
  • UN Women और ICRIER के अध्ययन पुष्टि करते हैं कि विविधता भरोसा, परिणामों और स्थिरता को बढ़ाती है।

आगे का रास्ता: शासन में समानता

  1. शहरी शासन में प्रणालीगत सुधार
  • शहरी अभियांत्रिकी एवं परिवहन सेवाओं में कोटा प्रणाली लागू करना।
  • लैंगिक समावेशी भर्ती और पदोन्नति।
  • तकनीकी शिक्षा में महिलाओं के लिए छात्रवृत्तियाँ।
  1. लैंगिक-संवेदनशील बजट निर्माण का विस्तार
  • सभी शहरी स्थानीय सरकारों (ULGs) में GRB लागु करना।
  • प्रभाव मूल्यांकन, डेटा ऑडिट और नागरिक भागीदारी को शामिल करना।
  1. स्थानीय महिला नेतृत्व को सशक्त बनाना
  • केरल के जैसे कुदुम्बश्री जैसे स्थानीय निकायों में महिलाओं के नेतृत्व को बढ़ावा देना।
  • जलवायु कार्रवाई, गतिशीलता, और डिजिटल प्रशासन में महिला संचालित मॉडल को संस्थागत बनाना।

निष्कर्ष:
जैसे भारत $5 ट्रिलियन अर्थव्यवस्था बनने का लक्ष्य रखता है, शासन में समानता किसी उपेक्षा की वस्तु नहीं हो सकती। शहर न सिर्फ चुनावी राजनीति में बल्कि नौकरशाही नेतृत्व में भी समावेशी होने चाहिए। लैंगिक-समान शहरी प्रशासन केवल न्यायसंगत नहीं, बल्कि सभी की जरूरतों के प्रति सुरक्षित, स्थायी और उत्तरदायी शहरों के निर्माण के लिए अनिवार्य है।


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