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  1. डिजिटल क्षेत्रों में खोज शक्तियों का विस्तार
  • पारंपरिक भौतिक खोज प्रावधानों (आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 132) से आगे बढ़कर ईमेल, व्हाट्सएप चैट, क्लाउड स्टोरेज, सोशल मीडिया और अन्य समान प्लेटफॉर्म शामिल।
  • “अन्य समान प्लेटफॉर्म” अस्पष्ट और खुला शब्द, जिससे मनमाना अतिक्रमण बढ़ने का खतरा।
  1. कमजोर औचित्य और अनुपातहीन हस्तक्षेप
  • डिजिटल जगह में कई पक्षों की व्यक्तिगत एवं व्यावसायिक जानकारी होती है।
  • स्पष्ट सीमाओं के अभाव में, दोस्तों, परिवार, पेशेवर संपर्कों एवं पत्रकारों के अधिकारों का उल्लंघन संभव।
  1. प्रक्रिया संबंधी सुरक्षा उपायों की कमी
  • किसी भी डिजिटल खोज से पहले पूर्व अनुमोदन, न्यायिक समीक्षा या “विश्वास का कारण” की अनिवार्यता नहीं।
  • पारदर्शिता और जवाबदेही के सिद्धांतों का हनन।
  • सुप्रीम कोर्ट ने कई बार स्पष्ट किया है कि खोज और जब्ती निजता का गंभीर उल्लंघन है।
  1. अनुपातहीनता सिद्धांत का उल्लंघन
  • न्यायमूर्ति के.एस. पुत्तस्वामी बनाम भारत संघ (2017) में सुप्रीम कोर्ट ने निजता पर प्रतिबंध के लिए चार मानकों को रखा: वैध उद्देश्य, आवश्यकता, अनुपातिता और सबसे कम हस्तक्षेप वाला तरीका।
  • वर्तमान बिल इन मापदंडों पर खरा नहीं उतरता।
  1. वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं की अनदेखी
  • अमेरिका, कनाडा जैसे देशों में डिजिटल खोज के लिए उच्च स्तर की शर्तें।
  • उदाहरण: अमेरिका में Riley बनाम कैलिफोर्निया मामले में सुप्रीम कोर्ट ने डिजिटल डेटा की गहरी व्यक्तिगत प्रकृति के कारण कड़े संरक्षण की आवश्यकता बताई।
  1. प्रेस की स्वतंत्रता और गोपनीयता को खतरा
  • पत्रकारों और व्हिसलब्लोअर के गोपनीय डेटा, स्रोतों और संचार को उजागर करने का खतरा।
  • मौजूदा कानून में भी इस तरह की शक्तियों का सीमित और सावधानीपूर्वक उपयोग।
  • “आभासी डिजिटल स्थान” की स्पष्ट परिभाषा हो।
  • खोज से पहले न्यायिक अनुमोदन और तटस्थ पर्यवेक्षण।
  • डिजिटल हस्तक्षेप से पहले लिखित “विश्वास का कारण” प्रस्तुत करना अनिवार्य हो।
  • प्रक्रिया संबंधी सुरक्षा उपाय और शिकायत निवारण प्रणाली स्थापित हो।
  • वैश्विक डेटा गोपनीयता और निगरानी मानकों के साथ समन्वय।
  • प्रवर्तन और नागरिक अधिकारों के बीच संतुलन बनाये रखा जाए।

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