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  • SC के लगभग 30% आरक्षित पद अभी भी खाली, विशेषकर वरिष्ठ स्तर पर।
  • ST के पचास प्रतिशत से अधिक पद खाली, खासकर एसोसिएट प्रोफेसर और प्रोफेसर स्तर पर।
  • OBC के हजारों पद खाली, प्रगति नगण्य।
  • कुल मिलाकर 45 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में बड़े पैमाने पर रिक्तियां।
  1. संस्थागत स्वायत्तता और कमजोर जवाबदेही
  • विश्वविद्यालयों को व्यापक स्वायत्तता प्राप्त है, जिससे आरक्षण के सख्त पालन में बाधा।
  • UGC के आरक्षण नियमों का सख्ती से पालन नहीं।
  • चयन समितियों में मुख्यतः प्रबल सामाजिक वर्ग के लोग, सामाजिक न्याय पर उदासीनता।
  1. 13-बिंदु रोस्टर प्रणाली का प्रभाव
  • 2018 में UGC ने 200-बिंदु से 13-बिंदु रोस्टर लागू किया।
  • छोटे विभागों में आरक्षित पदों की संख्या कम या नगण्य।
  • इस बदलाव से आरक्षित पदों में भारी गिरावट, विरोध और मुकदमेबाजी।
  1. स्वेच्छाचारी अस्वीकृति और पक्षपात
  • योग्य SC/ST/OBC उम्मीदवारों को बिना ठोस कारण के अस्वीकार।
  • 2022 के एक अध्ययन के अनुसार 60% से अधिक रिक्तियां पक्षपात के कारण।
  1. राजनीतिक प्रभाव और पारदर्शिता की कमी
  • नियुक्तियाँ राजनीतिक वफादारी या विचारधारा पर आधारित।
  • पारदर्शिता की कमी और समान अवसर के सिद्धांत का हनन।
  • UGC के आरक्षण नियमों का कड़ाई से पालन, नियमित निरीक्षण और सार्वजनिक रिपोर्टिंग।
  • 13-बिंदु रोस्टर प्रणाली की समीक्षा कर संविधान के अनुरूप सुधार।
  • चयन समितियों में विविधता और पारदर्शी, स्पष्ट मानदंड।
  • सामाजिक न्याय और समावेशन के लिए नेतृत्व स्तर पर प्रशिक्षण।
  • राजनीतिक नेतृत्व की जिम्मेदारी सुनिश्चित करना कि नियम सभी विश्वविद्यालयों में लागू हों।
  • खाली पद समावेशी शिक्षा के लक्ष्य को कमजोर करते हैं।
  • विश्वविद्यालय समाज परिवर्तन के केन्द्र हैं।
  • शिक्षण क्षेत्र में निष्पक्ष प्रतिनिधित्व कानूनी और नैतिक दायित्व।

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