Achieve your IAS dreams with The Core IAS – Your Gateway to Success in Civil Services

  • पैलिएटिव केयर शारीरिक, मानसिक, सामाजिक और आध्यात्मिक जरूरतों की देखभाल करती है।
  • इसका उद्देश्य रोग को ठीक करना नहीं, बल्कि जीवन की गुणवत्ता बढ़ाना और कष्ट कम करना है।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, विश्व में हर साल लगभग 40 मिलियन लोगों को पैलिएटिव केयर चाहिए, जिनमें 78% निम्न और मध्यम आय वाले देश के निवासी हैं।
  • भारत में अनुमानित 7-10 मिलियन लोगों को आवश्यक है, मगर सिर्फ 1-2% को यह सेवा मिल पाती है।
  • बढ़ती गैर-संचारी बीमारियाँ (जैसे कैंसर, मधुमेह आदि) पैलिएटिव केयर की मांग बढ़ा रही हैं।
  • भारत का स्वास्थ्य तंत्र पहले से ही दबाव में है; पैलिएटिव केयर शामिल होने से गैर-जरूरी अस्पताल जाने और खर्च को कम किया जा सकता है।
  1. नीति समावेशन
  • 2017 की राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति में पैलिएटिव केयर को शामिल किया जाना एक बड़ा कदम था, लेकिन अभी भी ग्रामीण और गरीब क्षेत्रों में पहुंच सीमित है।
  1. मानव संसाधन
  • प्रशिक्षित पैलिएटिव केयर विशेषज्ञों की कमी। अधिकांश चिकित्सकों को इस क्षेत्र की विशेष ट्रेनिंग नहीं मिली।
  • डॉक्टर-जनसंख्या अनुपात भारत में WHO मानक (1:1000) से बेहतर है, लेकिन प्रशिक्षण बहुत कम।
  1. वित्त और अवसंरचना
  • कम वित्तपोषण और कमजोर भौतिक आधार। उच्च स्तर के अस्पतालों में इस सेवा का समावेशन अधूरा।
  1. जन जागरूकता की कमी
  • आम लोग पैलिएटिव केयर के बारे में कम जानते हैं, जिससे सहायता के लिए शीघ्र पहुँच में बाधा आती है।
  • डॉक्टरों को पैलिएटिव केयर की क्षमताओं से लैस करना आवश्यक।
  • MBBS पाठ्यक्रम में पैलिएटिव केयर को शामिल करना चाहिए ताकि कौशल और सहानुभूति दोनों विकसित हों।
  • ICMR और AIIMS जैसे संस्थान प्रशिक्षण कार्यक्रम चला रहे हैं।
  • विशेषज्ञों की कमी को देखते हुए, नर्सों और स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित कर कार्यभार बांटना (Task-Shifting) एक व्यावहारिक समाधान।
  • भारत में लाखों नर्सें और स्वास्थ्य कर्मचारी हैं, जो उचित प्रशिक्षण से आम जनता को समग्र देखभाल प्रदान कर सकते हैं।
  • नीति निर्माताओं को लैांगिक लाभ और स्वास्थ्य प्रणाली पर सकारात्मक प्रभाव देखने की जरूरत।
  • सभी स्वास्थ्य संस्थानों में पैलिएटिव केयर के लिए समर्पित वित्त पोषण और उपयुक्त अवसंरचना होनी चाहिए।
  • आयुष्मान भारत जैसे योजनाओं में इसे शामिल कर मरीजों के वित्तीय बोझ को कम करें।
  • NGOs और निजी क्षेत्र के साथ साझेदारी क्षेत्रीय पहुंच बढ़ाने में मददगार।
  • पैलिएटिव केयर को केवल अंतिम समय की देखभाल समझने की भ्रांतियों को दूर करना जरूरी।
  • इसके भावनात्मक समर्थन और जीवन गुणवत्ता सुधारने वाले पहलुओं को उजागर कर लोगों को जल्दी सेवा लेने के लिए प्रोत्साहित करना होगा।
  • अमेरिकी मॉडल से सीख लेकर भारत के सांस्कृतिक आर्थिक और जनसंख्या विशेषताओं के अनुसार अनुकूलित नीति बनानी चाहिए।
  • शोध और साक्ष्य आधारित तरीकों के माध्यम से देखभाल की गुणवत्ता सुधर सकेगी।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *