The Hindu Editorial Analysis in Hindi
9 July 2025
प्रतिबंधित या चयनात्मक मताधिकार के काले संकेत
(Source – The Hindu, International Edition – Page No. – 6)
Topic: जीएस 2: विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिए सरकारी नीतियां और हस्तक्षेप तथा उनके डिजाइन और कार्यान्वयन से उत्पन्न होने वाले मुद्दे
संदर्भ:
भारत के चुनावी लोकतंत्र में एक गंभीर व्यवधान बिहार में सामने आ रहा है, जो लाखों नागरिकों को असुरक्षित और द्वितीय श्रेणी का नागरिक बना सकता है।

परिचय:
24 जून 2025 से बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) के नाम से निर्वाचन सूची का अचानक और व्यापक पुनर्निर्माण शुरू हुआ। यह पिछली बार डिजिटल अथवा सीमित पुनरीक्षण से भिन्न एक पूरी तरह से नए दस्तावेजों पर आधारित नामांकन प्रक्रिया है, जिसने लोकतंत्र की बुनियादी नींव को चुनौती दी है।
विश्लेषण:
- इस SIR ने नागरिकों में 2016 के नोटबंदी से प्रेरित भ्रम और आक्रोश को पुनः जगाया है, यह ‘वोटबंदी’ के रूप में विख्यात हो गया।
- इसका स्वरूप असम के NRC से मिलता-जुलता है, लेकिन NRC की तुलना में यह बेहद तीव्र, बिना सुप्रीम कोर्ट के पर्यवेक्षण के, और कम वक्त में हो रहा है।
- SIR में दस्तावेजी आवश्यकताएँ अत्यंत कड़ी और दुर्लभ हैं, जैसे जन्म प्रमाण पत्र, मैट्रिकुलेशन सर्टिफिकेट, जमीन या घर के कागजात – सामान्य पहचान पत्र जैसे आधार, वोटर आईडी, राशन कार्ड स्वीकार नहीं किए जा रहे।
- बिहार में प्रवासी मजदूर इस प्रक्रिया से सबसे अधिक प्रभावित हैं क्योंकि वे अक्सर राज्य में ‘नियमित निवास’ सिद्ध नहीं कर पाते, जिससे उनका वोटिंग अधिकार खतरे में पड़ सकता है।
- सार्वजनिक आशंका है कि इस प्रक्रिया से बड़ी संख्या में लोगों को मतदाता सूची से हटाया जाए, जिससे लोकतंत्र की हरितिमा और व्यापक जनसंख्या की भागीदारी प्रभावित होगी।
लोकतांत्रिक संकट के संकेत:
- अब नागरिकों को अपनी नागरिकता साबित करने की जिम्मेदारी दी गई है, जबकि संविधान की मूल भावना में राज्य की जिम्मेदारी होती है।
- मतदाता को संदेहित बनाकर उसकी वैधता के प्रमाण मांगना प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत के विपरीत है।
- दस्तावेजों की कमी वाले गरीब और कमजोर वर्गों को ‘डॉक्यूमेंटेशन’ के नाम पर मताधिकार से वंचित करना लोकतंत्र के लिए बड़ा खतरा है।
- यह प्रक्रिया यदि पूरे देश में लागू हुई तो लोकतंत्र के स्तंभ में दरारें पड़ सकती हैं।
नई असमतुल्य श्रेणी का निर्माण:
- किन्तु 2003 के बाद नाम दर्ज कराने वालों से अब कड़ी नागरिकता प्रमाण की मांग की जा रही है।
- इससे कुछ नागरिकों के मताधिकार छिन सकते हैं, जो कानूनी रूप से नागरिक हैं लेकिन मतदान से वंचित रहेंगे।
- ऐसे लोग ‘दूसरे दर्जे के नागरिक’ की तरह रह जाएंगे, जिन्हें उनके मौलिक अधिकार और सुरक्षा नहीं मिलेगी।
- यह कदम सामाजिक विभाजन और असमानता को गहरा करेगा।
निष्कर्ष:
स्वतंत्रता प्राप्ति के साथ भारत ने सार्वभौमिक मताधिकार को अपनाया था – वह सबके लिए एकसाथ मिला अधिकार था। किन्तु बिहार का ‘वोटबंदी’ मॉडल एक खतरनाक संकेत है कि कहीं हम एक बार फिर मतदान के अधिकार को सीमित या चयनात्मक बनाने की ओर तो नहीं बढ़ रहे। यह लोकतंत्र के प्रति एक बड़ा व्यवधान और भारत के संवैधानिक मूल्यों के विरुद्ध कदम होगा।