The Hindu Editorial Analysis in Hindi
16 July 2025
अमेरिका ने बहुपक्षवाद की स्थापना की और उसे समाप्त कर दिया
(Source – The Hindu, International Edition – Page No. – 8)
Topic : जीएस 2: भारत से जुड़े और/या भारत के हितों को प्रभावित करने वाले द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक समूह और समझौते
संदर्भ:
भारत और वैश्विक दक्षिण (Global South) के लिए एक नया मार्ग आवश्यक है, जो एकता और साझा प्रगति पर आधारित हो।

परिचय:
डोनाल्ड ट्रंप, अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति, वैश्विक परिवर्तनों का प्रतिनिधित्व करते हैं जो वास्तव में भारत के उभार का समर्थन करते हैं। अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र की ताकत घटाई है और ग्लोबल साउथ की सामूहिक बातचीत की क्षमता कम कर दी है। अब अमेरिका बहुपक्षीय वैश्विक समझौतों के बजाय व्यक्तिगत व्यापार समझौतों को प्राथमिकता देता है, जिससे वैश्विक व्यवस्था टूट रही है। जुलाई 2025 में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में इस शक्ति असंतुलन पर कोई आपत्ति नहीं हुई। बहुपक्षीयता के पतन को नजरअंदाज करते हुए BRICS घोषणा में दक्षिण-दक्षिण सहयोग को बढ़ावा नहीं मिला। एकतरफा टैरिफ दरअसल वैश्विक एकता के लिए नहीं, बल्कि देशों को व्यापार में समझौता करने के लिए दबाव डालने के लिए हैं।
- अमेरिका का शॉक और वैश्विक शक्ति परिवर्तन:
- 2025 का विश्व 1950 से बिल्कुल अलग है; अमेरिका अकेले वैश्विक नियम निर्धारित नहीं कर सकता।
- अमेरिका आत्मनिर्भरता और चीन के प्रभाव को सीमित करने पर ध्यान केंद्रित करता है।
- पिछले 25 वर्षों में वैश्विक कनेक्टिविटी, व्यापार और प्रतिबंधों ने बहुपक्षीयता के स्थान ले लिए।
- इससे पारंपरिक वैश्विक सहयोग कमजोर हुआ और अस्थिरता बढ़ी।
- बदलती दुनिया में भारत की भूमिका:
- भारत युवाओं की संख्या के कारण 2027 तक तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की राह पर है, और 2075 तक अमेरिका से भी बढ़ सकता है।
- भारत को बहुपक्षीयता से आगे बढ़कर राष्ट्रीय विकास और ग्लोबल साउथ के साथ मजबूत संबंधों पर ध्यान देना चाहिए।
- ‘रणनीतिक स्वायत्तता’ को स्पष्ट करना ज़रूरी है, अर्थात् प्रमुख ताकतों के बीच तटस्थता और अंतरराष्ट्रीय मंचों में स्वतंत्र मतदान।
- वैश्विक संस्थाओं में नेतृत्व पद हासिल करने के लिए कूटनीतिक प्रयास ज़रूरी हैं, जैसा कि यूनेस्को में पाकिस्तान को हार से स्पष्ट है।
- समृद्धि का मार्ग: पूरब की ओरदेखें और घरेलू निवेश बढ़ाएं:
- भारत को दक्षिण-पूर्व एशिया से व्यापार और विचार लेना चाहिए, पश्चिम पर निर्भरता कम करनी चाहिए।
- अमेरिका से हुए व्यापार नुकसान (जैसे स्टील निर्यात) को घरेलू आधारभूत संरचना (सड़क, रेलवे, ऊर्जा, तकनीकी हब, शोध विश्वविद्यालय) में निवेश से पूरा किया जा सकता है।
- चीन की तरह भारत को भी दीर्घकालीन उच्च वृद्धि हेतु बड़े पैमाने पर निवेश करना होगा।
- भारत की ताकतें: तकनीक, रक्षा और कूटनीति:
- भारत चौथी औद्योगिक क्रांति में नेतृत्व कर रहा है, विशेषकर जनरेटिव AI पेटेंट्स और नवाचार में।
- रक्षा क्षेत्र में मिसाइल, ड्रोन, साइबर तकनीक और उपग्रहों के साथ आधुनिकीकरण हो रहा है, जो विदेशी नीति में लचीलापन देता है।
- सीमा विवादों में युद्ध नहीं, संवाद पर ज़ोर देना होगा, खासकर चीन और पाकिस्तान के साथ; लद्दाख सीमा जैसी शांति पहल करने की जरूरत है।
- मुख्य संदेश: युद्ध नहीं, विकास प्राथमिकता हो।
निष्कर्ष:
भारत में 2026 का BRICS शिखर सम्मेलन ग्लोबल साउथ के लिए एक नया मौका है। पुराने G-77 के G-7 की सहायतामूलक नीति की बजाय दक्षिणी देशों के बीच साझा विकास पर ध्यान देना होगा। इसके लिए ट्रेड नियमों और सप्लाई चेन में बदलाव की आवश्यकता होगी ताकि दक्षिण के देश अपनी निर्यात क्षमता बढ़ा सकें और अपनी बढ़ती मांग पूरी कर सकें। ये निर्यात स्थानीय उद्योगों को नुकसान पहुंचाए बिना सस्ते दरों पर उपलब्ध कराए जा सकते हैं। यह बदलाव 1950 के दशक में बहुपक्षीयता के उदय जैसा बड़ा होगा।