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संदर्भ

भारत का स्वास्थ्य-तंत्र एक निर्णायक मोड़ पर खड़ा है—अब इसे विशेषाधिकार से आगे बढ़ाकर प्रत्येक नागरिक के लिए एक सुनिश्चित अधिकार के रूप में विकसित करना आवश्यक है।

प्रस्तावना

भारत का स्वास्थ्य क्षेत्र आज दोहरी चुनौती से जूझ रहा है—एक ओर वंचित आबादी तक सेवाओं की पहुँच बढ़ानी है और दूसरी ओर बढ़ती लागत के बीच इन्हें सुलभ बनाए रखना है। इसके लिए एक व्यापक और एकीकृत ढाँचे की आवश्यकता है, जिसमें बीमा कवरेज को मज़बूत किया जाए, सेवा-प्रदायन के पैमाने का लाभ उठाया जाए, प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल में रोकथाम (prevention) को शामिल किया जाए, डिजिटल प्रौद्योगिकी का प्रयोग तेज़ी से हो, विनियमन स्पष्ट हो तथा सतत निवेश आकर्षित हो। यदि भारत इस समग्र दृष्टिकोण को अपनाए, तो वह न केवल समावेशी और वित्तीय दृष्टि से टिकाऊ प्रणाली बना सकेगा, बल्कि नवाचार और समानता का वैश्विक उदाहरण भी प्रस्तुत कर पाएगा।

सुलभता का आधार: बीमा

  • जोखिम का सामूहिक वहन (risk pooling) महंगे स्वास्थ्य-खर्च को सस्ता बनाने का सबसे प्रभावी तरीका है।
  • मात्र ₹5,000–₹20,000 (व्यक्तिगत) या ₹10,000–₹50,000 (परिवार) के प्रीमियम से लाखों रुपये तक का कवरेज उपलब्ध हो सकता है, जो परिवारों को विनाशकारी वित्तीय झटकों से बचाता है।
  • इसके बावजूद भारत में बीमा कवरेज अभी भी केवल 15%–18% तक सीमित है, जबकि प्रीमियम-टू-जीडीपी अनुपात 3.7% है, जो वैश्विक औसत 7% से काफी कम है।
  • आयुष्मान भारत–प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (PM-JAY) ने 50 करोड़ लोगों को ₹5 लाख प्रति परिवार का स्वास्थ्य कवरेज देकर स्वास्थ्य पहुँच का स्वरूप बदल दिया है। कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों के समय पर उपचार में 90% की वृद्धि इसका प्रमाण है।
  • अगली 50 करोड़ आबादी तक पहुँचने के लिए निजी अस्पतालों की भागीदारी बढ़ाना आवश्यक है, जो न्यायपूर्ण प्रतिपूर्ति और पारदर्शी प्रक्रियाओं पर निर्भर करेगा।

रोकथाम: सबसे प्रभावी लागत बचत उपाय

  • पंजाब के एक अध्ययन ने दिखाया कि बीमा-धारक परिवार भी मधुमेह, उच्च रक्तचाप और अन्य गैर-संक्रामक रोगों (NCDs) की बाह्य-रोगी (outpatient) देखभाल पर विनाशकारी खर्च उठाते हैं।
  • समाधान यह है कि बीमा योजनाओं में OPD और डायग्नोस्टिक्स को शामिल किया जाए और एक राष्ट्रव्यापी रोकथाम अभियान चलाया जाए।
  • प्रत्येक निवेशित रुपया स्वस्थ जीवनशैली द्वारा कई गुना उपचार-लागत बचा सकता है। इसमें विद्यालयों, नियोक्ताओं, समुदायों और नागरिकों की साझेदारी आवश्यक है।
  • डिजिटल स्वास्थ्य ने गाँवों और शहरों के बीच पहुँच का अंतर पाटना शुरू किया है—AI आधारित जाँच, टेलीमेडिसिन, और राष्ट्रीय स्वास्थ्य डिजिटल मिशन (ABDM) इसके उदाहरण हैं।
  • इससे स्वास्थ्य अभिलेख सार्वभौमिक बनेंगे और देखभाल की निरंतरता सुनिश्चित होगी।

विनियमन और विश्वास: गुम कड़ी

  • स्वास्थ्य-नवाचार के बावजूद चुनौतियाँ बनी हुई हैं।
  • प्रदूषण-जनित बीमारियों के चलते बीमा प्रीमियम में 10–15% वृद्धि पर विचार हो रहा है, जो सुलभता को और कठिन बना सकता है।
  • वित्त मंत्रालय ने IRDAI से दावों (claims) के निपटान और शिकायत निवारण को सुदृढ़ करने का आग्रह किया है, क्योंकि बीमा में भरोसा ही उसका विस्तार सुनिश्चित करता है।
  • 2023 में भारत के स्वास्थ्य क्षेत्र ने $5.5 बिलियन का निजी निवेश आकर्षित किया, किंतु इसका अधिकांश हिस्सा महानगरों में केंद्रित रहा।
  • वास्तविक परीक्षा यह है कि निवेश छोटे शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों तक पहुँचे, प्राथमिक ढाँचे का निर्माण हो और विशेषज्ञों को प्रशिक्षित किया जाए।

निष्कर्ष

भारत का स्वास्थ्य-तंत्र एक निर्णायक अवस्था में है। बीमा को केवल अस्पताल-प्रवेश (hospitalization) तक सीमित न रखकर दैनिक देखभाल तक बढ़ाना होगा। प्रदाताओं को अपनी सेवाएँ कुशलतापूर्वक विस्तारित करनी होंगी। रोकथाम को प्राथमिकता देकर दीर्घकालिक लागत कम की जा सकती है और डिजिटल प्रौद्योगिकी से समावेशी पहुँच संभव है।
सुनियोजित निवेश और सशक्त सार्वजनिक–निजी साझेदारी के माध्यम से भारत एक ऐसा स्वास्थ्य मॉडल बना सकता है जो न तो बिखरा हुआ हो और न ही बहिष्कारी, बल्कि सार्वभौमिक, लचीला और सतत हो।
स्वास्थ्य सेवा अब विशेषाधिकार नहीं, बल्कि प्रत्येक भारतीय का सुनिश्चित अधिकार बनना चाहिए।


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