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संदर्भ

भारत एक ऐसे मोड़ पर खड़ा है जहाँ उसे यह निर्णय लेना है कि क्या वह युवाओं पर बोझ डालने वाली प्रतियोगी संस्कृति को बनाए रखेगा या फिर प्रवेश प्रणाली में न्याय और समानता का ढाँचा लागू करेगा।

प्रस्तावना

हर वर्ष भारत में लगभग 70 लाख छात्र स्नातक पाठ्यक्रमों के लिए JEE, NEET, CUET और CLAT जैसी परीक्षाओं में सम्मिलित होते हैं। सीटों की संख्या सीमित होने के कारण प्रतियोगिता असाधारण रूप से कठिन हो गई है, जिसने कोचिंग उद्योग को फलने-फूलने का अवसर दिया है और छात्रों पर अत्यधिक दबाव डाला है। हाल ही में हुए कोचिंग संस्थानों के बंद होने, वित्तीय घोटालों, प्रवर्तन निदेशालय की छापेमारी और छात्र आत्महत्याओं ने इस प्रणाली की खामियों को उजागर कर दिया है। अब समय आ गया है कि स्नातक प्रवेश व्यवस्था को न्याय, समानता और छात्र-कल्याण की दृष्टि से पुनःपरिकल्पित किया जाए।

कोचिंग संकट और उसका प्रभाव

  • अत्यधिक प्रतिस्पर्धा : 15 लाख छात्र लगभग 18,000 IIT सीटों के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं।
  • कोचिंग उद्योग : 6–7 लाख रुपये की फीस वाले दो वर्षीय कार्यक्रम, जिनमें छात्र 14 वर्ष की उम्र से शामिल हो जाते हैं।
  • अत्यधिक पाठ्यभार : छात्रों से Irodov और Krotov जैसी पुस्तकों के कठिन प्रश्न हल कराए जाते हैं, जो B.Tech स्तर से कहीं अधिक हैं।
  • मानसिक दबाव : इस दौड़ से तनाव, अवसाद और सामाजिक अलगाव बढ़ता है, जिससे किशोरावस्था का सामान्य विकास बाधित होता है।
  • नियमों की सीमा : कुछ राज्यों ने कोचिंग संस्थानों पर नियंत्रण की कोशिश की, किंतु मूल समस्या प्रवेश परीक्षा प्रणाली ही है।
  • असमानता : 91% और 97% या 99.9 पर्सेंटाइल और 99.7 पर्सेंटाइल वाले छात्रों में अंतर करना अव्यावहारिक है।
  • झूठा मेरिट तंत्र : संपन्न परिवारों के छात्रों को अधिक अवसर मिलते हैं जबकि गरीब, ग्रामीण और वंचित पृष्ठभूमि के छात्र हाशिये पर चले जाते हैं।
  • दार्शनिक दृष्टिकोण : दार्शनिक माइकल सैंडेल ने अत्यधिक मेरिटोक्रेसी की आलोचना करते हुए लॉटरी-आधारित प्रवेश की वकालत की है।

डच लॉटरी और अन्य वैश्विक अनुभव

  • नीदरलैंड्स :
    • 1972 में मेडिकल प्रवेश के लिए वेटेड लॉटरी प्रणाली लागू की गई, जिसे 2023 में पुनः लागू किया गया।
    • न्यूनतम अंक प्राप्त करने वाले सभी छात्र लॉटरी में शामिल होते हैं; अधिक अंक पाने वालों की संभावना अधिक होती है।
    • इस प्रणाली से विविधता बढ़ती है और अत्यधिक प्रतिस्पर्धा का दबाव घटता है।
  • चीन की “डबल रिडक्शन नीति” (2021) :
    • स्कूली विषयों की लाभकारी कोचिंग पर प्रतिबंध लगाया।
    • इससे आर्थिक बोझ कम हुआ, असमानताएँ घटीं और छात्रों का मानसिक स्वास्थ्य बेहतर हुआ।

भारत के लिए प्रस्तावित प्रवेश ढाँचा

  • प्रवेश प्रणाली का सरलीकरण :
    • कक्षा 12वीं की बोर्ड परीक्षा को आधार बनाया जाए।
    • B.Tech हेतु न्यूनतम पात्रता (जैसे PCM में 80%) तय की जाए।
    • छात्रों को अंकों के आधार पर श्रेणियों में बाँटकर (90%+, 80–90%) वेटेड लॉटरी से सीटें आवंटित हों।
  • समानता और विविधता बढ़ाने के उपाय :
    • IIT की 50% सीटें ग्रामीण एवं सरकारी विद्यालयों से आए छात्रों हेतु आरक्षित हों।
    • यदि प्रवेश परीक्षा बनी रहती है, तो कोचिंग को या तो प्रतिबंधित किया जाए या राष्ट्रीयकृत कर दिया जाए।
    • निःशुल्क ऑनलाइन संसाधन उपलब्ध कराए जाएँ।
    • IIT छात्र विनिमय कार्यक्रम और प्राध्यापक स्थानांतरण से समान मानक बनाए जाएँ।

निष्कर्ष

यदि भारत प्रवेश परीक्षाओं को समाप्त कर लॉटरी-आधारित प्रणाली अपनाता है तो छात्रों को कोचिंग की दौड़ से मुक्ति मिलेगी। इससे वे शिक्षा, खेल और समग्र विकास पर ध्यान केंद्रित कर पाएँगे। यह आर्थिक बाधाएँ कम करेगा और प्रत्येक योग्य छात्र को—चाहे उसका सामाजिक या आर्थिक दर्जा कुछ भी हो—समान अवसर देगा। सबसे महत्वपूर्ण यह होगा कि युवाओं को उनकी किशोरावस्था सामान्य रूप से जीने का अवसर मिलेगा, न कि केवल अंक और पर्सेंटाइल के पीछे भागने की मशीन बनने का।
भारत की शिक्षा प्रणाली आज एक चौराहे पर खड़ी है—या तो वह छात्रों को नुकसान पहुँचाने वाली इस विषैली दौड़ को जारी रखेगी, या फिर न्याय, समानता और अवसर की सच्ची भावना को अपनाएगी। चुनाव स्पष्ट है।


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