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प्रस्तावना

हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा स्वीकृत ग्रेट निकोबार द्वीप परियोजना भारत की समुद्री एवं आर्थिक रणनीति में एक महत्वाकांक्षी कदम के रूप में प्रस्तुत की जा रही है। इसमें ट्रांस-शिपमेंट टर्मिनल, हवाई अड्डा, पावर प्लांट और टाउनशिप का विकास प्रस्तावित है। यद्यपि यह परियोजना इंडो-पैसिफिक में भारत की भूमिका को सशक्त करने की क्षमता रखती है, किन्तु इसकी पारिस्थितिक संवेदनशीलता और जनजातीय उपस्थिति गंभीर समीक्षा की माँग करती है।

मुख्य मुद्दे एवं तर्क

1. रणनीतिक महत्व

  • ग्रेट निकोबार को एक प्रमुख समुद्री केंद्र में रूपांतरित करेगा।
  • इंडो-पैसिफिक कनेक्टिविटी को बढ़ाएगा।
  • बाहरी बंदरगाहों पर निर्भरता घटेगी, आर्थिक लचीलापन बढ़ेगा।

2. पर्यावरणीय चुनौतियाँ

  • EIA एवं EMP का संचालन हुआ, वन एवं वन्यजीव अनुमति शर्तों सहित दी गई।
  • 81.55 हेक्टेयर वन भूमि का हस्तांतरण; प्रतिपूरक वनीकरण अनिवार्य।
  • प्रश्न यह है कि क्या प्रतिपूरक वनीकरण वास्तव में जैव विविधता की क्षति की भरपाई कर पाएगा।

3. जनजातीय एवं सामाजिक चिंताएँ

  • शोम्पेन व निकोबारी जनजातियाँ क्षेत्र में निवास करती हैं।
  • प्रत्यक्ष विस्थापन नहीं, किन्तु सांस्कृतिक व पारिस्थितिक प्रभाव अवश्य पड़ेंगे।
  • परामर्श प्रक्रिया सीमित; दीर्घकालीन प्रभावों पर संदेह।

4. नीतिगत व प्रक्रियागत सुरक्षा उपाय

  • राष्ट्रीय वन नीति एवं अनुसूचित जनजाति अधिकार प्रावधानों के अनुरूप परियोजना।
  • निरंतर निगरानी हेतु केंद्रशासित प्रदेश प्रशासन जिम्मेदार।
  • ZSI, BSI और WII जैसी संस्थाओं के अध्ययन सम्मिलित।

नीति-गत खामियाँ

क्षेत्रखामियाँ
पर्यावरण संरक्षणवनीकरण व वन्यजीव प्रबंधन में क्रियान्वयन जोखिम।
जनजातीय कल्याणसीमित परामर्श तंत्र; हाशिये पर धकेलने की आशंका।
दीर्घकालिक स्थिरतापारिस्थितिक डिज़ाइन की बजाय प्रतिपूरक वनीकरण पर निर्भरता।
संस्थागत निगरानीप्रशासनिक मंजूरियों पर अत्यधिक निर्भरता; स्थानीय स्तर पर कमजोर निगरानी।

आगे की राह

  • समावेशी जनजातीय कल्याण :
    • PVTG संरक्षण ढाँचे के अंतर्गत सशक्त परामर्श।
    • आजीविका व स्वास्थ्य सहायता तंत्र।
  • पारिस्थितिक सुरक्षा :
    • स्वतंत्र निगरानी तंत्र द्वारा वनीकरण व जैव विविधता प्रबंधन।
    • वैश्विक biodiversity offsets प्रथाओं का समावेश।
  • पारदर्शी प्रशासन :
    • प्रभाव आकलन व अनुपालन रिपोर्ट का सार्वजनिक प्रकटीकरण।
    • नागरिक व सिविल सोसायटी की निगरानी।
  • संतुलित विकास दृष्टिकोण :
    • हरित अवसंरचना (नवीकरणीय ऊर्जा, इको-टूरिज्म) का समावेश।
    • रणनीतिक लक्ष्यों को पारिस्थितिक सुरक्षा से संतुलित करना।
  • नैतिक आयाम :
    • विकास बनाम पर्यावरण द्वंद्व का समाधान।
    • जनजातीय समूहों के साथ न्याय सुनिश्चित करना।
    • सतत विकास सिद्धांतों का पालन – वर्तमान की आवश्यकताओं को पूरा करना, भविष्य को नुकसान पहुँचाए बिना।

निष्कर्ष

ग्रेट निकोबार परियोजना भारत की समुद्री भविष्य दृष्टि और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए एक रणनीतिक निवेश है। परंतु इसकी सफलता केवल बुनियादी ढाँचे से नहीं, बल्कि पारिस्थितिकी की रक्षा, जनजातीय समुदायों के संरक्षण और लचीली प्रणालियों के निर्माण पर निर्भर करेगी।
यदि भारत इसे “सतत विकास का मॉडल” सिद्ध करना चाहता है तो उसे पर्यावरणीय सुरक्षा का संस्थानीकरण और जनजातीय अधिकारों की पूर्ण रक्षा करनी होगी। तभी यह परियोजना न केवल रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण बल्कि नैतिक वैधता से भी परिपूर्ण बन सकेगी।


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