The Hindu Editorial Analysis in Hindi
15 September 2025
अनियंत्रित विश्व में भारत की स्थिति
(Source – The Hindu, International Edition – Page No. – 8)
Topic : सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र II: अंतर्राष्ट्रीय संबंध | सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र III: सुरक्षा चुनौतियाँ | निबंध/अंतर्राष्ट्रीय संबंध प्रश्नपत्र
प्रस्तावना
विश्व राजनीति आज संक्रमण के दौर से गुजर रही है। Foreign Affairs के एक लेख में भारत की महाशक्ति बनने की महत्वाकांक्षा को “भ्रामक” बताया गया और इसे अमेरिका पर अत्यधिक निर्भर तथा “मध्य-आय जाल” में फँसा हुआ देश कहा गया। किंतु एम.के. नारायणन का प्रतिवाद स्पष्ट करता है कि भारत की आकांक्षा न तो भ्रांति है और न ही कमजोरी का प्रतीक, बल्कि यह उसकी ऐतिहासिक, सभ्यतागत और रणनीतिक नींव पर आधारित एक स्वाभाविक विकास यात्रा है।

मुख्य मुद्दे एवं तर्क
1. भारत की महत्वाकांक्षा पर आलोचना
- आलोचना : भारत केवल क्षेत्रीय शक्ति है, वैश्विक शक्ति बनने की “हवाबाज़ी” कर रहा है।
- आरोप : भारत अमेरिका पर अत्यधिक निर्भर है तथा मध्य-आय जाल से बाहर नहीं निकल पाएगा।
- प्रतिवाद : यह दृष्टिकोण सतही है और भारत की सभ्यता, संस्थागत विरासत तथा आर्थिक आधार को अनदेखा करता है।
2. ऐतिहासिक आधार
- भारत विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यताओं में से एक है।
- स्वतंत्रता संग्राम और गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) में अग्रणी भूमिका निभाई।
- बांडुंग सम्मेलन (1955) और 1971 के युद्ध में भारत ने स्पष्ट किया कि वह निष्क्रिय नहीं, बल्कि स्वायत्त शक्ति है।
3. भारत बनाम पश्चिम
- पश्चिम शक्ति को केवल सैन्य व भौतिक सामर्थ्य से मापता है।
- भारत का मार्ग अलग है—अकाल से खाद्य आत्मनिर्भरता की ओर, वैश्विक समस्या-समाधानकर्ता के रूप में प्रतिष्ठा।
- लोकतांत्रिक पहचान और भू-राजनीतिक स्थिति भारत की विशेष ताकत हैं।
4. प्रौद्योगिकी की निर्णायक भूमिका
- आज की शक्ति का आधार केवल हथियार नहीं, बल्कि प्रौद्योगिकी नेतृत्व है।
- भारत AI, स्पेस, और क्वांटम कम्प्यूटिंग में निवेश कर रहा है।
- जहाँ अमेरिका पुरानी सैन्य प्रधानता पर टिकता है, वहीं भारत लचीलेपन और नवाचार को अपनी ताकत बना रहा है।
5. कूटनीति और बहुपक्षीय सहयोग
- क्वाड के माध्यम से चीन का संतुलन,
- ब्रिक्स और SCO द्वारा वैश्विक शक्ति संतुलन में योगदान।
- G20 अध्यक्षता (2023) भारत की सर्वसम्मति-निर्माण क्षमता का प्रमाण।
- भारत की नीति मल्टी-अलाइन्मेंट की है, न कि किसी एक शक्ति-गुट पर निर्भर रहने की।
निष्कर्ष
भारत की महाशक्ति बनने की चाह केवल एक भ्रामक कल्पना नहीं, बल्कि उसकी सभ्यतागत निरंतरता, ऐतिहासिक अनुभव और तकनीकी दृष्टि का स्वाभाविक परिणाम है। पश्चिम यदि केवल सैन्य शक्ति को ही प्रभाव मानता है तो यह अधूरा दृष्टिकोण है। वास्तविक शक्ति अब सतत विकास, नवाचार और लोकतांत्रिक लचीलापन है।
भारत के पास अवसर है कि वह पश्चिमी प्रभुत्व या चीनी अधिनायकवाद के विकल्प के रूप में समावेशी और बहुध्रुवीय नेतृत्व प्रस्तुत करे। यही मार्ग भारत को विकसित भारत 2047 और नए वैश्विक व्यवस्था के निर्माण की दिशा में अग्रसर करेगा।