The Hindu Editorial Analysis in Hindi
24 September 2025
अनुपातिक दंड: आपराधिक मानहानि लोकतांत्रिक बहस से असंगत
(Source – The Hindu, International Edition – Page No. – 8)
Topic : GS-2: शासन; न्यायपालिका की भूमिका; जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की प्रमुख विशेषताएं; अधिकार मुद्दों के महत्वपूर्ण पहलू।
प्रसंग
सup्रीम कोर्ट के एक न्यायाधीश ने निजी व्यक्तियों और राजनीतिक कर्ताओं द्वारा आपराधिक मानहानि के बढ़ते दुरुपयोग को आलोचना से बचाव और प्रतिशोध के औजार के रूप में रेखांकित किया है। 2016 के फैसले के बाद निचली अदालतों के बार-बार समन से भय का माहौल बढ़ा और अभिव्यक्ति पर ठंडा प्रभाव पड़ा है। यह समय इस बात का संकेत है कि प्रतिष्ठा-सुरक्षा के अनुपातिक उपायों को आपराधिक दंड के बजाय नागरिक कानून की ओर पुनर्संतुलित किया जाए।

भूमिका
सुब्रमण्यम स्वामी (2016) में सुप्रीम कोर्ट ने इस आधार पर आपराधिक मानहानि को कायम रखा कि प्रतिष्ठा, जीवन के अधिकार का हिस्सा है, परन्तु हालिया अनुभव से इस स्थिति की व्यावहारिक कठिनाइयाँ उजागर हुई हैं। न्यायमूर्ति एम.एम. सुंदरेश ने चेताया है कि निजी और राजनीतिक शिकायतकर्ताओं द्वारा आलोचना के विरुद्ध इसे बीमा की तरह इस्तेमाल करने की प्रवृत्ति बढ़ी है, जो तंत्रगत अतिक्रमण दर्शाती है। संपादकों और विपक्षी नेताओं के विरुद्ध क्रमिक कार्यवाहियाँ और समन दिखाते हैं कि कैसे आपराधिक मानहानि गरिमा-सुरक्षा से भयादोहन के औजार में बदल सकती है। मूल लोकतांत्रिक प्रश्न अनुपातिकता का है: प्रतिष्ठा-हानि, जिसे नागरिक उपायों से सुधारा जा सकता है, क्या कारावास और बहस पर ठंडे प्रभाव को न्यायोचित ठहराती है?
मुख्य मुद्दे और प्रभाव
- दुरुपयोग और भयादोहन: आपराधिक मानहानि “प्रक्रिया ही दंड” के रूप में काम कर रही है; चयनित पाठ और संदर्भ-विहीन कथनों के आधार पर शिकायतें हथियार बन रही हैं।
- प्रभाव: पत्रकारों और राजनीतिक आलोचकों पर कानूनी उत्पीड़न, आत्म-सेंसरशिप, तथा शुरुआती दहलीज से कमज़ोर मामलों से न्यायालयों पर बोझ।
- निचली न्यायपालिका की दहलीज समस्या: मानहानिकारक सामग्री पर कठोर प्रथमदृष्टया परीक्षण के बिना समन का नियमित निर्गमन, आपराधिक अभियोजन की प्रविष्टि-दहलीज घटाता है।
- प्रभाव: प्रक्रिया की आवृत्ति ही दंड बन जाती है, अंतिम बरी के बावजूद, और सशक्त सार्वजनिक विमर्श कमजोर होता है।
- प्रक्रिया-फँसाव बनाम समाधान: उच्च-प्रोफ़ाइल मामलों से दिखता है कि कार्यवाहियाँ सुलझने के बजाय बढ़ती जाती हैं।
- प्रभाव: कानूनी थकावट, प्रभावी प्रतिष्ठा-उपचार को विस्थापित करती है; निषेधाज्ञा/हरजाने जैसे नागरिक उपायों से ध्यान हटता है।
- संवाददाताओं के लिए प्रतिकूल माहौल: संपादकों-रिपोर्टरों पर राजनीतिक टीका-टिप्पणी के लिए शिकायतें, समन और पेशियाँ उनकी कार्यक्षमता बाधित करती हैं।
- प्रभाव: जोखिम-आकलन जांच-पड़ताल पर सावधानी को वरीयता देता है, जवाबदेही पत्रकारिता और नागरिक निगरानी कमजोर होती है।
- दंड में अनुपातहीनता: भौतिक क्षति के विपरीत, प्रतिष्ठा-हानि का पर्याप्त समाधान नागरिक उपायों से संभव है, कारावास अपेक्षानुरूप नहीं।
- प्रभाव: भाषण पर आपराधिक दंड बहस को ठंडा करता है और लोकतांत्रिक अनिवार्यताओं व अनुपातिकता-सिद्धांत से असंगत है।
- मंच-चयन और रणनीतिक शिकायतें: दूरस्थ न्यायालयों में दायरियाँ लागत और लॉजिस्टिक बोझ बढ़ाती हैं।
- प्रभाव: प्रणाली गुण-दोष पर निष्पक्ष निर्णय के बजाय रणनीतिक चुप्पी और मंच-दबाव को सक्षम करती है।
व्यापार/नागरिक लागत
- आपराधिकरण की आर्थिक व नागरिक लागत: आपराधिक कार्यवाही सार्वजनिक संसाधन, अदालत का समय और निजी विधिक खर्च खा जाती है, जबकि विषय नागरिक कानून से सुलझ सकते हैं।
- प्रभाव: अवसर-लागत गंभीर अपराधों के न्याय-प्रदाय को बाधित करती है और मीडिया वित्त पर दबाव से विविधता घटती है।
ऐतिहासिक व तुलनात्मक सबक
- कई लोकतंत्रों, विशेषकर यूके, ने आपराधिक मानहानि से दूरी बनाई और नागरिक मार्गों व सार्वजनिक-हित रक्षा को सुदृढ़ किया।
- प्रभाव: तुलनात्मक अनुभव दिखाता है कि बिना आपराधिक दंड के भी प्रतिष्ठा की रक्षा करते हुए भाषण स्वतंत्रता बचाई जा सकती है।
नागरिक कानून से संतुलन
- नियम-आधारित संतुलन: नागरिक मानहानि में हर्जाना, निषेधाज्ञा, सुधार और खंडन जैसे औज़ार हैं—उपचार पर केंद्रित, प्रतिशोध पर नहीं।
- प्रभाव: यह अनुपातिकता से मेल खाता है, दुर्भावनापूर्ण असत्य से निरोध करता है और आपराधिक कानून के ठंडे प्रभाव से बचाता है।
संवैधानिक/कानूनी कोण
- अनुच्छेद 19(1)(a) और 19(2) के “उचित प्रतिबंध” का तर्क संकीर्ण-निर्धारण और अनुपातिकता की मांग करता है; आपराधिक मानहानि अतिव्यापकता और ठंडे प्रभाव का जोखिम रखती है।
- सुब्रमण्यम स्वामी (2016) ने आपराधिक मानहानि को कायम रखा, पर बाद के दुरुपयोग के साक्ष्य आवश्यकता और कम से कम प्रतिबंधकारी साधन पर पुनर्विचार आमंत्रित करते हैं।
- “होस्ट-कंट्री” शैली उन्मुक्ति यहाँ प्रासंगिक नहीं; निर्णायक बिंदु यह है कि अदालतें भाषण-मामलों में प्रक्रिया-पूर्व दहलीज को कड़ाई से परखें।
भारत की अहमियत
- सशक्त प्रेस और मुक्त राजनीतिक अभिव्यक्ति, जवाबदेही के लिए अनिवार्य हैं, विशेषकर उच्च-दांव चुनाव और नीतिगत समीक्षा के समय।
- अतिआपराधिकरण मुखबिरी, खोजी पत्रकारिता और नागरिक आलोचना को हतोत्साहित करता है, जिससे शासन और सेवाप्रदाय कमजोर होता है।
अंतरराष्ट्रीय तुलना
- अनेक अधिकार-क्षेत्रों ने आपराधिक मानहानि समाप्त/सीमित की और नागरिक उपायों तथा सार्वजनिक-हित बचाव को प्राथमिकता दी।
- ये मॉडल भारत के लिए ऐसे विकल्प दिखाते हैं जो गरिमा-सुरक्षा रखते हुए भाषण को कैद से मुक्त रखते हैं।
तथ्य, आंकड़े, नजीरें
- 2016: सुप्रीम कोर्ट ने आपराधिक मानहानि को वैध ठहराया; पश्चात: पत्रकारों और राजनेताओं के विरुद्ध बढ़ती शिकायतें और बारंबार समन पर न्यायालयी टिप्पणियाँ।
- न्यायमूर्ति एम.एम. सुंदरेश का न्यायिक अवलोकन: आलोचना और असहमति पर शिकायत दर्ज करने की प्रवृत्ति तथा तंत्रगत दुरुपयोग को रेखांकित करता है।
आगे की राह
- दहलीज कड़ी करें: समन-पूर्व कठोर परीक्षण और प्रथमदृष्टया मानहानि व सार्वजनिक-हित अपवादों पर कारणयुक्त आदेश अनिवार्य हों।
- नागरिक उपायों को वरीयता: हर्जाना, निषेधाज्ञा, सुधार, खंडन; त्वरित, कम-लागत नागरिक प्रक्रिया अपनाकर मंच-दुरुपयोग घटाएँ।
- निरर्थक शिकायतों पर दंडात्मक लागत: कपटी और मंच-चयन शिकायतों पर लागत/प्रतिबंध लगाकर दुरुपयोग रोका जाए।
- सार्वजनिक-हित भाषण की रक्षा: निष्पक्ष टिप्पणी, रिपोर्टिंग और सार्वजनिक महत्व के विषयों हेतु सुदृढ़ रक्षा का संहिताकरण।
- अपराधमुक्ति पर विचार: आपराधिक मानहानि का निरसन या कड़ा संकुचन; आपराधिक कानून को उकसावे, घृणास्पद भाषण और हिंसा-संबंधी अपराधों तक सीमित रखें।