The Hindu Editorial Analysis in Hindi
1 October 2025
जिला को एक लोकतांत्रिक साझा संपत्ति के रूप में पुनः प्राप्त करें
(Source – The Hindu, International Edition – Page No. – 8)
Topic : जीएस पेपर II – शासन | जीएस पेपर IV – सार्वजनिक जीवन में नैतिकता
संदर्भ
विश्व स्तर पर सार्वजनिक जीवन बढ़ते विखंडन, ध्रुवीकरण, तकनीकी तथा पारिस्थितिक व्यवधानों का सामना कर रहा है। भारत में, जहाँ आधी आबादी 35 वर्ष से कम है, यह व्यवधान और तीव्र है तथा लोकतांत्रिक भागीदारी की संरचनाओं पर पुनर्विचार की आवश्यकता है। यह विचार प्रस्तुत किया गया है कि ज़िले को लोकतांत्रिक साझा स्थल (कॉमन्स) के रूप में पुनः स्थापित किया जाए — ऐसा क्षेत्र जहाँ नागरिक केवल लाभार्थी न रहकर विकास के निर्माता और निर्णय लेने में सहभागी बनें।

मुख्य मुद्दे और तर्क
१. लोकतंत्र का बदलता स्वरूप
- आज लोकतंत्र हर पाँच वर्ष में होने वाले चुनावों तक सीमित हो गया है।
- नागरिकों को मुख्यतः कल्याण योजनाओं के लाभार्थी या शासन सेवाओं के उपभोक्ता के रूप में देखा जाता है, न कि शासन के सक्रिय सहभागी के रूप में।
- इससे अलगाव की भावना उत्पन्न होती है, जवाबदेही कमजोर होती है और लोकतंत्र केवल चुनावों तक सीमित रह जाता है।
२. शासन की कमियाँ
- भारत ने कल्याणकारी प्रावधानों का विस्तार किया है, परंतु कार्यान्वयन में खामियाँ और स्थानीय जवाबदेही कमजोर है।
- ज़िले अक्सर नौकरशाही की बाधाओं के केंद्र बन जाते हैं और नागरिकों के लिए स्थानीय प्राथमिकताओं को तय करने के पर्याप्त मंच नहीं होते।
३. खोया हुआ लोकतांत्रिक अवसर
- जिला योजना समितियाँ या तो अस्तित्वहीन हैं या निष्क्रिय।
- युवाओं, हाशिए पर रहने वाले समूहों और महिलाओं को, नीति से सर्वाधिक प्रभावित होने के बावजूद, विचार-विमर्श आधारित शासन से बाहर रखा जाता है।
नीति संबंधी खामियाँ
क्षेत्र | मौजूदा खामियाँ |
---|---|
चुनावी राजनीति | नागरिकों को केवल मतदाता या लाभार्थी तक सीमित कर देता है, सहभागिता की अनदेखी। |
स्थानीय योजना | जिला योजना समितियाँ निष्क्रिय, नागरिकों की आवाज़ शामिल नहीं। |
जवाबदेही | नौकरशाही संसाधनों पर नियंत्रण रखती है, नीचे से ऊपर तक निगरानी कमजोर। |
युवा सहभागिता | जिला स्तर पर जनसांख्यिकीय लाभांश का उपयोग करने के लिए कोई संस्थागत तंत्र नहीं। |
आगे की राह के सुझाव
१. ज़िलों को साझा स्थल के रूप में पुनर्जीवित करना
- ज़िलों को केवल प्रशासनिक क्षेत्र न रखकर कार्यात्मक लोकतांत्रिक इकाइयाँ बनाया जाए।
- सुनिश्चित किया जाए कि जिला योजना समितियाँ सार्थक रूप से कार्य करें और उनमें युवा, महिलाएँ तथा हाशिए के वर्ग शामिल हों।
२. सहभागी बजट और योजना
- नागरिकों को सहभागी बजट पद्धति के माध्यम से विकास व्यय को प्राथमिकता देने का अधिकार मिले।
- ब्राज़ील के पोर्टो एलेग्रे जैसे वैश्विक उदाहरण अपनाए जाएँ, जहाँ नागरिकों ने सीधे नगर निगम का बजट तय किया।
३. साझा ज़िम्मेदारी और समावेशी शासन
- ऊपर से नीचे थोपे गए लाभार्थी दृष्टिकोण से हटकर नागरिकों को निर्णय-निर्माण का सह-स्वामी बनाया जाए।
- नागरिकों, स्थानीय सरकारों, सांसदों और विधायकों को साझा विकास प्राथमिकताओं पर एकसाथ काम करना चाहिए।
४. युवा और डिजिटल सहभागिता
- जिला स्तर पर सामूहिक शासन के लिए डिजिटल साधनों का उपयोग किया जाए।
- नीतिगत संवाद के लिए युवा मंचों को संस्थागत रूप दिया जाए, ताकि जनसांख्यिकीय क्षमता लोकतांत्रिक ताकत में बदल सके।
निष्कर्ष
ज़िले को लोकतांत्रिक पुनरुत्थान के केंद्र के रूप में पुनः स्थापित किया जा सकता है। नागरिकों को निष्क्रिय प्राप्तकर्ताओं के बजाय निर्णय-निर्माता बनाकर भारत लोकतंत्र के सार — सहभागिता, जवाबदेही और साझा ज़िम्मेदारी — को पुनर्जीवित कर सकता है। जब आधी आबादी 35 वर्ष से कम है, तब यह केवल शासन सुधार नहीं बल्कि लोकतांत्रिक आवश्यकता है। जिला स्तर के साझा स्थल को मज़बूत करना यह सुनिश्चित करेगा कि लोकतंत्र केवल चुनावों तक सीमित न रहे, बल्कि सामूहिक भविष्य को आकार देने में रोज़मर्रा की सहभागिता का माध्यम बने।