The Hindu Editorial Analysis in Hindi
4 October 2025
ऑपरेशन सिंदूर के बाद समुद्री सिग्नलिंग
(Source – The Hindu, International Edition – Page No. – 8)
Topic : सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र II – अंतर्राष्ट्रीय संबंध | सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र III – आंतरिक सुरक्षा
प्रसंग
मई 2025 में पाकिस्तान के साथ गतिरोध के बाद सामरिक ध्यान समुद्री क्षेत्र पर केंद्रित हो गया है। भारत और पाकिस्तान दोनों ने नौसैनिक अभ्यासों, मिसाइल तैनाती और उच्च-स्तरीय आधिकारिक चेतावनियों के माध्यम से अपनी सैन्य तत्परता प्रदर्शित की है। यह अरब सागर और व्यापक हिंद महासागर में क्षेत्रीय शक्ति संतुलन के पुनर्मूल्यांकन का संकेत देता है।

मुख्य मुद्दे और तर्क
1. नौसैनिक संकेतों का सामरिक महत्व
- ऑपरेशन सिंदूर नौसैनिक प्रतिरोध (deterrence) में एक निर्णायक मोड़ था।
- भारत ने स्वदेशी रूप से निर्मित सहायक पोत आईएनएस निस्तार को शामिल किया और फिलीपींस के साथ संयुक्त गश्ती अभियान चलाया।
- पाकिस्तान ने चीनी-निर्मित हंगोर-श्रेणी की पनडुब्बियां, पीएनएस मंग्रो और पी282 जहाज़ से छोड़ी जाने वाली बैलिस्टिक मिसाइल जैसी क्षमताओं का प्रदर्शन किया।
- ये समानांतर कदम प्रतिरोध-आधारित प्रतिस्पर्धा में शक्ति संकेत (force signalling) के सुनियोजित उपयोग को दर्शाते हैं।
2. समुद्र में वृद्धि की गतिशीलता
- स्थल युद्ध की तुलना में समुद्री संघर्ष में वृद्धि नियंत्रण (escalation control) कठिन होता है।
- जहाज़-से-जहाज़, पनडुब्बी-से-पनडुब्बी और मिसाइल मुठभेड़ जैसी नौसैनिक झड़पें “लाल रेखा” पार करने का अधिक जोखिम रखती हैं।
- पाकिस्तान ने एंटी-एक्सेस/एरिया डिनायल (A2/AD) क्षमताओं में निवेश किया है।
- भारत का वर्चस्व घट रहा है; निर्विवाद श्रेष्ठता की धारणाएँ अब कमजोर पड़ रही हैं।
3. चीन कारक और बाहरी आयाम
- चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) के तहत ग्वादर, बीजिंग की इंडो-पैसिफिक दृष्टि के लिए महत्वपूर्ण है।
- कराची और ग्वादर में चीनी उपस्थिति एक मनोवैज्ञानिक और परिचालन स्तर की प्रतिरोध परत जोड़ती है।
- चीन की नौसेना (PLAN) का समर्थन पाकिस्तान को आत्मविश्वास देता है, किंतु उसे बीजिंग की रणनीतिक गणनाओं में भी बांध देता है।
4. व्यापक दृष्टिकोण
- भारत-पाकिस्तान संकट का नौसैनिक आयाम भले ही परिधीय हो, लेकिन इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
- समुद्र में गलत आकलन का खतरा—मिसाइल परीक्षणों से लेकर ओवरलैपिंग अभ्यासों तक—काफी ऊँचा है।
- भारत और पाकिस्तान दोनों संकल्प का संकेत दे सकते हैं बिना पूर्ण युद्ध की ओर बढ़े।
- इस समुद्री प्रतिस्पर्धा को व्यापक इंडो-पैसिफिक संतुलन के हिस्से के रूप में देखना होगा, जहाँ भारत क्वाड साझेदारों के साथ खड़ा है और पाकिस्तान चीन पर निर्भर है।
निष्कर्ष
अरब सागर भारत-पाकिस्तान प्रतिद्वंद्विता का एक महत्वपूर्ण मंच बनकर उभर रहा है। ऑपरेशन सिंदूर ने भारत के संकल्प को प्रदर्शित किया, किंतु पाकिस्तान की प्रतिकारात्मक रणनीति ने प्रतिरोध अंतर को संकुचित कर दिया है। चीन की बाहरी भूमिका इस प्रतिस्पर्धा को और अधिक धारदार बनाती है। भारत के लिए चुनौती है कि वह आधुनिकीकरण, गठबंधनों और संतुलित संकेतों के माध्यम से समुद्र में अपनी श्रेष्ठता बनाए रखे। भविष्य में संकट स्थिरता का निर्धारण शायद केवल सीमाओं पर नहीं, बल्कि जलक्षेत्रों में भी होगा।