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संदर्भ

अमानक दवाइयाँ बनाने वाली कंपनियों को अपने कार्यों के लिए उत्तरदायी ठहराया जाना चाहिए।

परिचय

आत्मनिर्भर भारत का दृष्टिकोण भारत को एक स्वावलंबी विनिर्माण शक्ति बनाने का है, परंतु यह लक्ष्य तभी सार्थक होगा जब इसका आधार कठोर गुणवत्ता नियंत्रण पर टिका हो। बार-बार होने वाली चूकें, विशेषकर औषधि क्षेत्र में, यह स्पष्ट करती हैं कि मजबूत विनियमन, जवाबदेही, और नैतिक विनिर्माण प्रथाओं की आवश्यकता अत्यंत आवश्यक है ताकि भारत की पहचान एक विश्वसनीय वैश्विक उत्पादक के रूप में बनी रहे।


आत्मनिर्भर भारत और गुणवत्ता संबंधी चिंताएँ

प्रेरणादायक दृष्टिकोण: आत्मनिर्भर भारत एक प्रशंसनीय राष्ट्रीय लक्ष्य है, जिसका उद्देश्य देश में घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देना और वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता को सशक्त बनाना है।

गुणवत्ता सुनिश्चित करने की आवश्यकता: किंतु यदि सुदृढ़ और सतत गुणवत्ता नियंत्रण प्रणाली न हो, तो यह आकांक्षा कमजोर पड़ सकती है।


औषधि क्षेत्र की चुनौतियाँ

बार-बार गुणवत्ता संबंधी समस्याएँ: भारत की औषधि उद्योग, जो उसकी वैश्विक छवि का मुख्य स्तंभ है, बार-बार दवाओं की गुणवत्ता को लेकर विवादों में रहा है, विशेष रूप से खांसी की सिरप के मामलों में।

हालिया विवाद: केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने हाल ही में दवा अनुपालन मानकों को कड़ा किया, क्योंकि कोल्डरिफ़ खांसी की सिरप में डायइथिलीन ग्लाइकॉल (DEG) प्रदूषण की रिपोर्ट आई थी, जिसे एक निजी कंपनी ने निर्मित किया था।


जांच और निष्कर्ष

प्रेरक घटना: यह परीक्षण तब आदेशित किए गए जब सिरप को राजस्थान और मध्य प्रदेश में कम से कम 16 बच्चों की मौत से जोड़ा गया।

विरोधाभासी परिणाम: स्वास्थ्य मंत्रालय की प्रारंभिक जांच में इन राज्यों के नमूनों में DEG नहीं पाया गया, परंतु तमिलनाडु औषधि नियंत्रण विभाग ने अपनी सीमा में एक बैच में DEG का पता लगाया।

अनुपालन न होना: निरीक्षण में पाया गया कि कंपनी ने गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिस (GMP) और गुड लेबोरेटरी प्रैक्टिस (GLP) के कई नियमों का उल्लंघन किया था।

प्रदूषण का स्रोत: दूषित बैच में ग़ैर-फार्माकोपियल ग्रेड प्रोपिलीन ग्लाइकॉल का उपयोग किया गया था, जिससे संभवतः DEG और एथिलीन ग्लाइकॉल (दोनों गुर्दे को नुकसान पहुँचाने वाले पदार्थ) शामिल हो गए।


किए गए कदम

  • केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) ने कंपनी का निर्माण लाइसेंस रद्द करने की अनुशंसा की।
  • एक चिकित्सक, जिसने प्रभावित बच्चों को यह सिरप लिखी थी, को गिरफ्तार किया गया।

मजबूत निगरानी की आवश्यकता

शून्य सहनशीलता नीति: भारत को निम्न-गुणवत्ता वाली दवाओं के प्रति शून्य सहनशीलता अपनानी चाहिए — जन सुरक्षा पर कोई समझौता नहीं

सक्रिय प्रवर्तन: त्वरित निगरानी और कार्यवाही आवश्यक है; कदम तभी नहीं उठाए जाने चाहिए जब त्रासदी घट चुकी हो।

मौजूदा ढांचा: गुड लेबोरेटरी प्रैक्टिस जैसे मानक पहले से मौजूद हैं; समस्या उनके निरंतर प्रवर्तन और आकस्मिक निरीक्षणों की कमी में है।

जवाबदेही उपाय: प्रत्येक उल्लंघन पर कड़ी सुधारात्मक कार्रवाई होनी चाहिए, जिससे उद्योग में निवारक उदाहरण स्थापित हो।

उद्योग को संदेश: सरकार को स्पष्ट संकेत देना चाहिए कि मानव जीवन को जोखिम में डालने वाली कोई भी लापरवाही या उल्लंघन अस्वीकार्य होगा।


निष्कर्ष

नैतिकता के साथ आत्मनिर्भरता सुनिश्चित करने के लिए दवा सुरक्षा और गुणवत्ता नियंत्रण के प्रति अटूट प्रतिबद्धता आवश्यक है। यदि लापरवाही से जन-जीवन खतरे में पड़ता है, तो भारत की विकास गाथा अपनी विश्वसनीयता खो देती है।

एक सतर्क नियामक तंत्र, नैतिक उद्योग आचरण, और पारदर्शी प्रवर्तन के साथ ही आत्मनिर्भर भारत एक नारा नहीं, बल्कि उत्तरदायी और विश्वसनीय राष्ट्र निर्माण का आदर्श मॉडल बन सकता है।


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