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प्रसंग

बांग्लादेश फरवरी 2026 के आम चुनावों से पूर्व एक बड़े राजनीतिक पुनर्संरचना के दौर से गुजर रहा है। यहाँ नए शक्ति केंद्र उभर रहे हैं और पारंपरिक दलगत संरचनाएँ कमजोर हो रही हैं। छात्र आंदोलनों, इस्लामवादी संगठनों और नोबेल पुरस्कार विजेता डॉ. मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में उभरते तकनीकी-नौकरशाही (Technocratic) प्रशासन ने उस राजनीतिक परिदृश्य को बदलना शुरू कर दिया है, जिस पर अब तक आवामी लीग (AL) और बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) का वर्चस्व रहा है।

यह परिवर्तन बांग्लादेश के लोकतंत्र की स्थिरता, सेना की भूमिका और भारत की रणनीतिक सोच के लिए नई चुनौतियाँ उत्पन्न कर रहा है।

1. पृष्ठभूमि: द्विदलीय प्रभुत्व से राजनीतिक तरलता तक

(a) पारंपरिक द्विध्रुवीय व्यवस्था

स्वतंत्रता के बाद से बांग्लादेश की राजनीति दो प्रमुख दलों के इर्द-गिर्द घूमती रही है —

  • आवामी लीग (AL) — शेख हसीना के नेतृत्व में, 1971 के मुक्ति संग्राम की विरासत पर आधारित, धर्मनिरपेक्ष राष्ट्रवाद की पक्षधर।
  • बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) — खालिदा जिया के नेतृत्व में, राष्ट्रवादी-रूढ़िवादी विचारधारा की प्रतिनिधि।

यह द्विदलीय प्रभुत्व अक्सर राजनीतिक ध्रुवीकरण, हिंसा और शासन-पक्षाघात का कारण बना। लेकिन आज जब BNP कमजोर है और AL की सत्ता थकान (governance fatigue) झलक रही है, तब नए राजनीतिक खिलाड़ी उभरने लगे हैं।

(b) नए राजनीतिक गठबंधनों का उदय

जमात-ए-इस्लामी (JeI) और नवगठित नेशनल सिटिजन पार्टी (NCP) अंतरिम सरकार की व्यवस्था का लाभ उठाकर अपना प्रभाव बढ़ा रहे हैं।

  • जमात, जिसे 1971 के युद्ध में भूमिका के कारण चुनावी राजनीति से प्रतिबंधित किया गया था, अब खुद को “मुख्यधारा के इस्लामवादी स्वर” के रूप में प्रस्तुत कर रही है।
  • NCP, जो छात्र नेताओं और नागरिक समाज के कुछ वर्गों से समर्थित है, आनुपातिक प्रतिनिधित्व (Proportional Representation) प्रणाली की वकालत कर रही है ताकि मौजूदा प्रथम-पास-पोस्ट प्रणाली (FPTP) को बदला जा सके और सभी राजनीतिक शक्तियों के लिए समान अवसर सुनिश्चित हो।

2. अंतरिम सरकार और डॉ. मोहम्मद यूनुस की भूमिका

(a) तकनीकी वैधता (Technocratic Legitimacy)

नोबेल पुरस्कार विजेता डॉ. मोहम्मद यूनुस, जिन्हें अंतरिम सरकार का मुख्य सलाहकार नियुक्त किया गया है, राजनीतिक गतिरोध के बीच एक सुधारवादी और तकनीकी नेतृत्व का प्रतीक माने जा रहे हैं। हालांकि उन्हें पश्चिमी हितों और छात्र आंदोलनों के प्रति झुकाव रखने का आरोप भी झेलना पड़ रहा है।

(b) राजनीतिक संतुलन और चुनौतियाँ

सितंबर 2025 में संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) सत्र के दौरान यूनुस का जमात और NCP प्रतिनिधियों के साथ मंच साझा करना AL–BNP के पारंपरिक प्रभुत्व से दूरी का संकेत था।
फिर भी यूनुस के गठबंधन को दोहरी चुनौतियों का सामना है —

  • BNP का अविश्वास, जो उन्हें जमात और पश्चिमी संस्थानों के निकट मानता है।
  • आवामी लीग की शत्रुता, जो उन्हें शेख हसीना की राजनीतिक वैधता को कमजोर करने वाला मानती है।

3. BNP और आवामी लीग: नेतृत्व संकट और प्रासंगिकता का ह्रास

(a) BNP की गिरावट

कभी प्रमुख विपक्षी दल रही BNP अब गंभीर नेतृत्व संकट से जूझ रही है। खालिदा जिया के निर्वासन और आंतरिक गुटबाज़ी ने इसे कमजोर कर दिया है।
चुनावी अनिश्चितता और कार्यकर्ताओं में निराशा ने जनाधार को और घटा दिया है।
लंदन से पार्टी का संचालन कर रहे तारिक रहमान एक विभाजनकारी चेहरा बने हुए हैं।

(b) आवामी लीग की थकान

लगातार एक दशक से अधिक सत्ता में रहने के बाद शेख हसीना के नेतृत्व में आवामी लीग को सत्तावाद, युवाओं में बेरोज़गारी और भ्रष्टाचार के आरोपों से जन असंतोष झेलना पड़ रहा है।
उनकी सेना पर निर्भरता, बदलते नागरिक-सैन्य समीकरणों के बीच उन्हें राजनीतिक रूप से अस्थिर बना रही है।

4. सेना की रणनीतिक भूमिका

(a) नियंत्रित तटस्थता (Controlled Neutrality)

बांग्लादेश की सेना परंपरागत रूप से सत्ता के निर्णायक (kingmaker) के रूप में देखी जाती रही है। वर्तमान सेनाध्यक्ष जनरल वाकर-उज़-जमान के अधीन सेना प्रत्यक्ष शासन नहीं, बल्कि नियंत्रित संक्रमण (controlled transition) को प्राथमिकता देती दिख रही है।

(b) संस्थागत निरंतरता

1971 के युद्ध अपराधों की जांच के लिए गठित अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण (ICT), जो कभी नैतिक वैधता का प्रतीक था, अब राजनीतिक उपकरण बनकर रह गया है।
दिसंबर 2024 में जमान-नेतृत्व वाली सेना ने स्वतंत्रता घोषणा-पत्र (Proclamation of Independence) में संशोधन कर “राष्ट्रीय स्थिरता में सेना की भूमिका” को संवैधानिक रूप से निहित किया — हालांकि लोकतांत्रिक ढाँचा औपचारिक रूप से बरकरार रखा गया।

5. जमात-ए-इस्लामी की रणनीतिक वापसी

(a) इस्लामी राजनीति का पुनर्ब्रांडिंग

जमात-ए-इस्लामी, जो 1971 की भूमिका के कारण हाशिये पर थी, अब सोशल मीडिया और छात्र आंदोलनों के ज़रिए “मध्यमार्गी राजनीतिक इस्लाम” की छवि गढ़ रही है।
यह संगठन पाकिस्तान, तुर्की और मध्य-पूर्व के इस्लामी नेटवर्क से वैचारिक रूप से जुड़ा हुआ है।

(b) गठबंधन निर्माण

जमात की छात्र शाखा इस्लामी छात्र शिबिर विश्वविद्यालयों में सक्रिय छात्र संघों (जो NCP से जुड़ी हैं) के साथ मिलकर “इस्लामी लोकतंत्र और राष्ट्रीय एकता” के नाम पर जनसंपर्क कर रही है।
यह धर्मनिरपेक्ष-राष्ट्रवादी विमर्श के सामने एक जनोन्मुख (populist) वैकल्पिक कथा प्रस्तुत कर रही है।

6. नया चुनावी गणित: आनुपातिक बनाम बहुमत प्रणाली

(a) आनुपातिक प्रतिनिधित्व (PR) की मांग

NCP और जमात का गठबंधन दावा कर रहा है कि PR प्रणाली वंशवादी राजनीति को कम करेगी और सभी वर्गों का न्यायसंगत प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करेगी।
BNP के लिए PR का समर्थन सत्ता में वापसी का एक अवसर हो सकता है।
परंतु आवामी लीग के लिए यह उसकी परंपरागत प्रभुत्व को चुनौती देता है।

(b) छात्र और युवा लामबंदी

कैंपस आंदोलनों और युवा-नेतृत्व वाले सामाजिक अभियानों ने नई राजनीतिक ऊर्जा दी है।
“डिजिटल बांग्लादेश” जैसे हसीना सरकार के कार्यक्रमों की प्रभावहीनता से जो वैचारिक रिक्तता बनी, उसे अब यूनुस और इस्लामी संगठनों से जुड़े छात्र समूह भर रहे हैं।

7. भारत के लिए निहितार्थ

(a) रणनीतिक चिंताएँ

ढाका में कमजोर नागरिक सरकार भारत के लिए सीमा सुरक्षा, रोहिंग्या शरणार्थी संकट और इस्लामी कट्टरता से निपटने की रणनीति को जटिल बना सकती है।
जमात की मुख्यधारा में वापसी सीमापार चरमपंथी नेटवर्क को बल दे सकती है।

(b) कूटनीतिक संतुलन

भारत को संतुलन साधना होगा —

  • एक ओर आवामी लीग से ऐतिहासिक संबंध,
  • दूसरी ओर NCP और यूनुस प्रशासन जैसे नए उभरते समूहों से व्यावहारिक संवाद।

हसीना के पक्ष में खुला समर्थन भविष्य की सरकारों को भारत से दूर कर सकता है और बांग्लादेश को चीन या तुर्की के नज़दीक ला सकता है, जो बंगाल की खाड़ी क्षेत्र में अपना रणनीतिक प्रभाव बढ़ा रहे हैं।

निष्कर्ष (Conclusion)

बांग्लादेश आज एक राजनीतिक मोड़ पर खड़ा है, जहाँ पारंपरिक द्विदलीय व्यवस्था टूट रही है और नए संकर (hybrid) गठजोड़ उभर रहे हैं।
तकनीकी नेतृत्व, इस्लामी पुनःप्रवेश और छात्र लामबंदी — ये सभी लोकतांत्रिक परिवर्तन के साथ-साथ संस्थागत अस्थिरता की झलक देते हैं।

2026 के चुनाव केवल सत्ता परिवर्तन का प्रश्न नहीं होंगे, बल्कि यह तय करेंगे कि बांग्लादेश का लोकतंत्र धर्मनिरपेक्ष और बहुलतावादी रहेगा या धार्मिक जनवाद (religious populism) और सैन्य-समर्थित स्थिरता की ओर मुड़ जाएगा।

भारत के लिए चुनौती यह होगी कि वह इस परिवर्तनशील परिदृश्य में रणनीतिक संयम और दूरदर्शिता के साथ कदम रखे, ताकि भारत-बांग्लादेश साझेदारी बदलते राजनीतिक प्रवाहों के बीच भी मज़बूत बनी रहे।


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