The Hindu Editorial Analysis in Hindi
1 November 2025
शांति और सतत सुरक्षा बोर्ड का मामला
(Source – The Hindu, International Edition – Page No. – 8)
Topic : सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र II: अंतर्राष्ट्रीय संबंध | सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र III: आंतरिक सुरक्षा
संदर्भ
संयुक्त राष्ट्र (United Nations – UN) अपनी 80वीं वर्षगांठ मना रहा है, किंतु यह संस्था एक गहरे संस्थागत संकट का सामना कर रही है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC), जिसे युद्धों को रोकने के लिए स्थापित किया गया था, अब शांति बनाए रखने में संघर्षरत है। लम्बे समय तक चलने वाले संघर्ष, सीमित मध्यस्थता, और शांति-स्थापन मिशनों से समयपूर्व वापसी ने वैश्विक शांति संरचना की संरचनात्मक विफलता को उजागर किया है।
यह लेख एक नए संस्थागत तंत्र — “शांति एवं सतत सुरक्षा बोर्ड (Board of Peace and Sustainable Security – BPSS)” — की स्थापना का सुझाव देता है, जो शांति निर्माण और राजनीतिक भागीदारी को पुनर्जीवित कर सके।

समस्या: पुरानी हो चुकी शांति संरचनाएँ
- UNSC की प्रतिक्रियात्मक व्यवस्था केवल तब सक्रिय होती है जब संघर्ष भड़क उठते हैं।
- शांति-स्थापन मिशन (Peacekeeping Missions) जमीनी स्तर पर प्रभावी होते हुए भी राजनीतिक संक्रमण को बनाए रखने की शक्ति से वंचित हैं।
- शांति निर्माण आयोग (Peacebuilding Commission – PBC), जिसकी स्थापना 2005 में हुई थी, सीमित अधिकारों और सततता के अभाव में हाशिये पर है।
इस प्रकार संयुक्त राष्ट्र “बहुत देर से याद करता है और बहुत जल्दी हट जाता है,” जिससे संघर्ष क्षेत्रों में उसकी राजनीतिक गति रुक जाती है।
यह केवल राजनीतिक इच्छाशक्ति की नहीं, बल्कि संस्थागत डिजाइन की त्रुटि है — अर्थात हिंसा समाप्त होने के बाद दीर्घकालिक राजनीतिक सहयोग के अभाव की समस्या।
प्रस्ताव: शांति एवं सतत सुरक्षा बोर्ड (BPSS)
प्रस्तावित BPSS के मुख्य उद्देश्य होंगे:
- संघर्ष के दौरान और बाद में मध्यस्थता एवं संवाद को सशक्त बनाना।
- क्षेत्रीय शांति प्रयासों का समन्वय करना और शांति-स्थापन मिशनों की समाप्ति के बाद राजनीतिक निरंतरता सुनिश्चित करना।
- संयुक्त राष्ट्र महासचिव और सुरक्षा परिषद के साथ मिलकर कार्य करना, बिना अधिकारों की पुनरावृत्ति के, और संविधान के अनुच्छेद 99 के अंतर्गत अधिकृत रहना।
इस प्रकार यह बोर्ड शांति को तात्कालिक प्रतिक्रिया के बजाय एक निरंतर राजनीतिक प्रक्रिया के रूप में रूपांतरित करेगा।
संरचना और प्रतिनिधित्व
- सदस्यता: लगभग 24 देशों की घूर्णनशील सदस्यता, जिन्हें महासभा द्वारा निश्चित अवधि के लिए चुना जाएगा।
- क्षेत्रीय संतुलन: अफ्रीका, एशिया, यूरोप, लैटिन अमेरिका तथा कैरेबियन के बीच समान प्रतिनिधित्व।
- क्षेत्रीय समूहों की भूमिका: वे केवल पर्यवेक्षक नहीं, बल्कि सक्रिय साझेदार होंगे, जिससे शांति निर्माण स्थानीय रूप से प्रेरित होगा, न कि बाहरी रूप से थोपे गए रूप में।
इससे बोर्ड को संस्थागत स्मृति, वैधता एवं पुनर्नवीकरण प्राप्त होगा, और यह सुरक्षा परिषद जैसी जड़ता और शक्ति-राजनीति से मुक्त रहेगा।
कार्यप्रणाली और अधिकार-क्षेत्र
BPSS, UNSC का विकल्प नहीं होगा, बल्कि उसका पूरक अंग होगा। यह:
- मिशनों के बीच प्रतिबद्धताओं की निगरानी करेगा।
- विकास, सुशासन और मानव सुरक्षा जैसे मुद्दों पर केंद्रित रहेगा।
- संघर्ष के मूल कारणों को संबोधित करेगा, न कि केवल लक्षणों को।
इस प्रकार यह संघर्ष की पुनरावृत्ति को रोकेगा और संप्रभुता का सम्मान करते हुए सक्रिय शांति प्रयासों को बनाए रखेगा।
सुधार की आवश्यकता क्यों है
संयुक्त राष्ट्र की विश्वसनीयता संकटग्रस्त है, क्योंकि वह गाज़ा, सूडान, यूक्रेन और म्यांमार जैसे संकटों में शांति लागू करने में असफल रहा है।
वर्तमान वैश्विक व्यवस्था को शक्ति और सहभागिता के बीच संतुलन की आवश्यकता है, जिसमें नियंत्रण के बजाय सहयोग को प्राथमिकता दी जाए।
BPSS जैसे तंत्र से संयुक्त राष्ट्र की बहुपक्षीय वैधता (Multilateral Legitimacy) पुनः स्थापित होगी और शांति-स्थापन प्रयास सतत स्थिरता में रूपांतरित होंगे।
निष्कर्ष
आज शांति केवल युद्धविराम (Ceasefire) से नहीं, बल्कि राजनीतिक, सामाजिक और विकासात्मक निरंतरता से सुनिश्चित होती है।
“शांति एवं सतत सुरक्षा बोर्ड” इस दृष्टिकोण को संस्थागत रूप देने का माध्यम बनेगा — कूटनीति और पुनर्निर्माण के बीच एक सेतु के रूप में।
“संयुक्त राष्ट्र को ऐसी नई संस्थाएँ बनानी होंगी जो शांति को बनाए रखें, केवल उसे पुनःस्थापित न करें।”