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प्रसंग

तूफ़ान के गुजर जाने के बाद ही ओडिशा की असली परीक्षा आरम्भ होती है।

परिचय

ओडिशा में दीर्घकालिक सुदृढ़ता का निर्माण केवल आपदा प्रतिक्रिया तक सीमित न रहकर आजीविका के पुनर्निर्माण की दिशा में होना चाहिए। जीवन-रक्षक प्रणालियाँ भले ही सशक्त हुई हों, परंतु आर्थिक पुनरुत्थान अभी भी असमान है। अब आवश्यक है कि किसानों, मछुआरों और लघु कृषकों को शीघ्र बीमा भुगतान, सुलभ ऋण तथा हरित सुरक्षा प्रदान की जाए — ताकि वित्तीय स्थिरता को पर्यावरणीय संतुलन से जोड़ा जा सके और समुदाय हर चक्रवात की छाया से आगे बढ़कर समृद्धि प्राप्त करें।

चक्रवात ‘मोंथा’ का तट से टकराव और तात्कालिक प्रभाव

चक्रवात मोंथा ने 28 अक्तूबर 2025 को आंध्र प्रदेश के मछलीपट्टनम और कालिंगपट्टनम के मध्य काकीनाडा के समीप पूर्वी तट से टक्कर ली।

  • वायु की गति लगभग 100 से 110 किलोमीटर प्रति घंटा तक पहुँची।
  • तूफ़ान दक्षिणी ओडिशा (गंजाम, रायगढ़ा, कोरापुट) तथा तेलंगाना के कुछ भागों से होकर गुज़रा और बाद में निम्न दाब क्षेत्र में परिवर्तित हो गया।
  • खेत नष्ट हो गए, ग्रामों में जलभराव हुआ और हज़ारों लोग चक्रवात आश्रयों में शरण लेने को विवश हुए।
  • कृषि तथा उद्यानिकी क्षेत्र को व्यापक क्षति पहुँची।

ओडिशा की संरचनात्मक संवेदनशीलता

ओडिशा का 575 किलोमीटर लंबा तटीय क्षेत्र विश्व के छह सर्वाधिक चक्रवात-प्रवण क्षेत्रों में से एक है।

  • पिछले एक शताब्दी में लगभग 260 चक्रवात इस राज्य को प्रभावित कर चुके हैं — 1999 के महाचक्रवात से लेकर फाइलिन (2013), तितली (2018), फानी (2019) और यास (2021) तक।
  • 1999 के महाचक्रवात ने जीवन और संपत्ति का अभूतपूर्व नुकसान किया, जबकि फाइलिन से ही लगभग नौ हजार करोड़ रुपये की क्षति हुई, जिसमें से एक-चौथाई से अधिक कृषि और पशुधन क्षेत्र से थी।
    यह इतिहास दर्शाता है कि ओडिशा का उष्णकटिबंधीय तूफ़ानों से सामना आकस्मिक नहीं, बल्कि दीर्घकालिक है।

आर्थिक एवं आजीविका पर प्रभाव

चक्रवातों के तत्काल आर्थिक झटकों में किसानों की आय में कमी, व्यापारियों की नकदी समस्या और शहरी क्षेत्रों में खाद्य आपूर्ति में अवरोध प्रमुख हैं।
फानी चक्रवात के बाद संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम द्वारा किए गए अध्ययन में यह पाया गया कि —

  • कृषि, पशुधन और मत्स्य क्षेत्र में लगभग तीन हजार करोड़ रुपये की क्षति हुई।
  • ग्रामीण क्षेत्र में लगभग सात करोड़ कार्यदिवस नष्ट हुए, जिनकी मजदूरी मूल्य लगभग दो हजार सात सौ करोड़ रुपये था।

दीर्घकालिक संकट इससे भी गहरा है — किसानों को ऋण चुकाना और बीज-खाद पुनः खरीदना पड़ता है; मछुआरों को नावें और जाल बदलने होते हैं, जबकि बीमा भुगतान में विलंब होता है।
अनौपचारिक उद्यम महीनों तक बंद रहते हैं, ऋण-सुविधाएँ सख्त हो जाती हैं, और सार्वजनिक संसाधन स्वास्थ्य, शिक्षा तथा अधोसंरचना से हटकर पुनर्निर्माण में लग जाते हैं।

आपदा प्रबंधन में उपलब्धियाँ और शेष चुनौतियाँ

ओडिशा राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने चक्रवात आश्रयों, पूर्व चेतावनी प्रणालियों और सामूहिक निकासी व्यवस्था में उल्लेखनीय सुधार किया है।
मानवीय क्षति में भारी कमी आई है —

  • 1999 का महाचक्रवात: लगभग 10,000 मृत्यु
  • फाइलिन (2013): पचास से कम मृत्यु
  • यास (2021): केवल दो मृत्यु

फिर भी, आजीविका पुनर्निर्माण अभी पीछे है — पुनर्निर्माण का ध्यान मुख्यतः सड़क, बिजली और आवास पर रहता है; आर्थिक पुनर्वास को द्वितीयक महत्व दिया जाता है।
नमकयुक्त जल का प्रवेश, समुद्री लहरों की तीव्रता और समुद्र-स्तर में वृद्धि जैसी पर्यावरणीय चुनौतियाँ मिट्टी और आर्द्रभूमियों को प्रभावित कर रही हैं, जिससे किसान कम उपज वाली फसलों या पलायन की ओर अग्रसर हैं।

दीर्घकालिक सुदृढ़ता निर्माण के उपाय

अब जीवन-रक्षा जितनी कुशलता आजीविका पुनर्स्थापन में भी दिखनी चाहिए। इसके लिए —

  • फसल और मत्स्य बीमा दावों की प्रक्रिया को सरल और तीव्र बनाया जाए।
  • आपातकालीन ऋण और अल्पकालिक ऋण पर स्थगन दिया जाए ताकि संकटग्रस्त किसान अपनी संपत्ति न बेचें।
  • महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना का विस्तार कर बाँध, तालाब और ग्रामीण परिसंपत्तियों का पुनर्निर्माण किया जाए।

प्रकृति आधारित समाधान

  • मैंग्रोव और आर्द्रभूमियाँ समुद्री लहरों की ऊर्जा को लगभग 90 प्रतिशत तक कम कर सकती हैं, जिससे तटीय सुरक्षा के साथ आय भी सुरक्षित रहती है।
  • ओडिशा में मैंग्रोव पुनर्स्थापन तथा जलवायु-अनुकूल जलीय कृषि (जैसे केकड़ा पालन और धान सघनीकरण) पर्यावरण को आजीविका से जोड़ते हैं।

वित्तीय सुधारों की दिशा में:

  • आकस्मिक कोष, क्षेत्रीय बीमा समूह तथा लघु कृषकों और तटीय समुदायों के लिए प्रत्यक्ष सहायता योजनाएँ प्रारम्भ की जानी चाहिए।

निष्कर्ष

स्थायी सुदृढ़ता चक्रवात आश्रयों में नहीं, बल्कि पुनर्जीवित खेतों, पुनर्स्थापित मत्स्य पालन और पुनरुद्धरित पारिस्थितिक तंत्रों में निहित है।
तेज़ वित्तीय सहायता को मैंग्रोव और आर्द्रभूमि जैसी प्रकृति आधारित रक्षा प्रणालियों के साथ जोड़कर ओडिशा अपनी आजीविका और पर्यावरण दोनों की सुरक्षा सुनिश्चित कर सकता है।
पारिस्थितिकी, अर्थव्यवस्था और समानता के समन्वय से राज्य बार-बार आने वाली आपदाओं को जलवायु अनुकूलन और समावेशी तटीय विकास के अवसरों में बदल सकता है।


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