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संदर्भ

भारत को अपने वन्यजीव प्रबंधन एवं संरक्षण उपायों में वैश्विक विश्वास को बनाए रखना और सशक्त करना चाहिए — न कि अपारदर्शिता या आत्मसंतुष्टि के कारण उसे कमजोर पड़ने देना चाहिए।

भूमिका

जामनगर स्थित वंतारा परियोजना (Vantara Project), जिसे रिलायंस फाउंडेशन द्वारा संचालित किया जाता है, हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित विशेष अन्वेषण दल (SIT) द्वारा किसी भी प्रकार की अनियमितता से मुक्त घोषित किए जाने के बाद चर्चा में आई है। किंतु इसके पश्चात CITES (Convention on International Trade in Endangered Species) समिति की टिप्पणियों ने भारत की वन्यजीव अनुमति प्रणाली, पारदर्शिता और लुप्तप्राय प्रजातियों के व्यापार एवं संरक्षण से संबंधित वैश्विक मानदंडों के अनुपालन पर पुनः प्रश्न खड़े कर दिए हैं।


वंतारा परियोजना और सर्वोच्च न्यायालय की जांच
  • सितंबर 2025 में, सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त विशेष अन्वेषण दल (SIT) ने वंतारा परियोजना पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की — यह रिलायंस फाउंडेशन द्वारा संचालित एक निजी चिड़ियाघर है, जो गुजरात के जामनगर में स्थित है।
  • SIT ने निष्कर्ष दिया कि यह परियोजना वन्यजीव आयात एवं देखभाल से संबंधित सभी भारतीय कानूनों का पूर्णतः पालन करती है।
  • रिपोर्ट के अनुसार, वंतारा के पास 30,000 से अधिक पशुओं के लिए वैध अनुमति-पत्र और आधुनिक सुविधाएँ उपलब्ध हैं।
  • SIT ने वंतारा की आलोचनाओं को “अनुचित” बताया।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने पूरी रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की, बल्कि केवल एक संक्षिप्त सारांश को अपने आदेश के साथ संलग्न किया।

CITES समिति का हस्तक्षेप और वैश्विक निगरानी
संस्थाभूमिका / कार्रवाईप्रमुख टिप्पणियाँ
CITES (Convention on International Trade in Endangered Species)SIT की रिपोर्ट जमा होने के तुरंत बाद जामनगर का दौरा कियाअनुमतियों, पशु अधिग्रहण एवं चिड़ियाघर संरचना की जांच की
SIT (भारत)सर्वोच्च न्यायालय को गोपनीय रिपोर्ट सौंपीवंतारा को विधिसंगत एवं कानून-पालक पाया
CITES समिति की रिपोर्टसार्वजनिक रूप से जारीवंतारा की अवसंरचना की सराहना की, परंतु अनुमति दस्तावेज़ों पर संदेह जताया

टिप्पणी: CITES समिति की चिंता वंतारा प्रबंधन से नहीं, बल्कि भारत की वन्यजीव अनुमति प्रणाली से संबंधित थी।


अनुमति दस्तावेज़ों को लेकर उठी शंकाएँ

CITES रिपोर्ट ने भारतीय अभिलेखों और निर्यातक देशों के अभिलेखों के बीच विसंगतियाँ उजागर कीं।

  • उदाहरण के तौर पर, चेक गणराज्य ने दावा किया कि उसने वंतारा से संबद्ध भारतीय इकाइयों को पशु बेचे थे।
  • जबकि वंतारा ने इस “विक्रय” का खंडन किया, यह कहते हुए कि भुगतान केवल बीमा और परिवहन खर्च तक सीमित थे।
  • यह भेद अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि भारतीय कानूनों के अंतर्गत चिड़ियाघरों द्वारा जंगली पशुओं की व्यावसायिक खरीद प्रतिबंधित है
  • अतः दस्तावेज़ों की स्पष्टता यह सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है कि वन्यजीव व्यापार कानूनों का पूर्ण पालन हो।

विधिक और संस्थागत निहितार्थ
मुद्दाभारतीय विधिक स्थितिCITES की अपेक्षा
पशुओं की व्यावसायिक खरीदभारतीय वन्यजीव एवं चिड़ियाघर कानूनों के अंतर्गत निषिद्धपारदर्शी रूप से दर्ज व सत्यापन योग्य होने पर स्वीकार्य
पशुओं की ट्रेसबिलिटी (अनुसरणीयता)अभिलेखों की असंगति के कारण प्रायः कमजोरसभी सीमाओं के पार दस्तावेज़ित और सत्यापन योग्य होनी चाहिए
अंतरराष्ट्रीय समन्वयसीमित अंतर-सरकारी संवाददेशों को अपने समकक्षों के साथ सक्रिय समन्वय स्थापित करना चाहिए

पारदर्शिता और वैश्विक विश्वास का संकट
  • SIT की अप्रकाशित रिपोर्ट और CITES की खुली शंकाएँ — दोनों मिलकर भारत की वन्यजीव शासन प्रणाली में विश्वास-घाटे (trust deficit) को उजागर करती हैं।
  • आंशिक जानकारी का प्रकटीकरण भारत की जैव विविधता संरक्षण साख (credibility) को कमजोर करता है।
  • एक महाविविधता (megadiverse) वाले देश के रूप में भारत अपने वन्यजीव प्रबंधन पर वैश्विक विश्वास खोने का जोखिम नहीं उठा सकता।

आगे की राह
  1. SIT रिपोर्ट को पूर्ण रूप से सार्वजनिक किया जाए, ताकि घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विश्वास सुदृढ़ हो सके।
  2. भारतीय प्राधिकरणों और विदेशी वन्यजीव एजेंसियों के बीच समन्वय स्थापित कर पशुओं की ट्रेसबिलिटी को सत्यापित किया जाए।
  3. सभी आयातों को अव्यावसायिक, वैध और पारदर्शी अनुमति प्रणाली के माध्यम से संचालित किया जाए।
  4. भारत की वन्यजीव शासन संस्थाओं को सशक्त किया जाए ताकि विकासात्मक हितों और वैश्विक संरक्षण मानकों के बीच संतुलन बना रहे।

निष्कर्ष

यद्यपि वंतारा परियोजना की गतिविधियाँ विधिसम्मत और व्यवस्थित प्रतीत होती हैं, फिर भी CITES की टिप्पणियाँ भारत की वन्यजीव प्रशासन प्रणाली में गहरे संरचनात्मक और प्रक्रियात्मक अभाव की ओर संकेत करती हैं।
आंशिक पारदर्शिता और गोपनीयता से अंतरराष्ट्रीय विश्वास को क्षति पहुँचती है।
अतः एक महाविविधता वाले राष्ट्र के रूप में भारत को पारदर्शी अनुमति प्रणाली, संस्थागत समन्वय और अंतरराष्ट्रीय जवाबदेही को अपनाकर अपनी जैव विविधता की प्रतिष्ठा और नैतिक नेतृत्व को सुरक्षित रखना होगा।


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