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संदर्भ

भारत को ऐसे विधायी प्रावधान अपनाने की आवश्यकता है जो व्यक्तित्व अधिकारों (Personality Rights) को विधिक रूप से मान्यता दें तथा कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) वॉटरमार्किंग, प्लेटफ़ॉर्म दायित्व और वैश्विक भागीदारों के साथ सहयोग को अनिवार्य करें।

प्रस्तावना

हाल ही में अभिनेता अभिषेक बच्चन और ऐश्वर्या राय बच्चन ने गूगल और यूट्यूब के विरुद्ध दिल्ली उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। उन्होंने तर्क दिया कि एआई द्वारा निर्मित वे वीडियो, जिनमें उन्हें मनगढ़ंत और अनेक बार अशोभनीय परिस्थितियों में दर्शाया गया है, उनके व्यक्तित्व अधिकारों का उल्लंघन करते हैं। दोनों ने कहा कि ऐसी सामग्री ने उनकी प्रतिष्ठा और आर्थिक हितों को गंभीर क्षति पहुँचाई है। उन्होंने न केवल मुआवज़े की माँग की बल्कि यह भी आग्रह किया कि ऐसी सामग्री भविष्य के एआई मॉडलों के प्रशिक्षण में भी उपयोग न की जाए।

एआई, पहचान और प्रामाणिकता का क्षरण

यह मामला इस बात को रेखांकित करता है कि एआई वास्तविकता और कल्पना के बीच की सीमा को धुंधला कर देता है, जिसके कारण व्यक्तित्व अधिकारों से जुड़ी कानूनी एवं नैतिक व्यवस्थाओं के पुनर्मूल्यांकन की आवश्यकता उत्पन्न होती है।

  • व्यक्तित्व अधिकार किसी व्यक्ति के नाम, छवि, स्वरूप, आवाज़ तथा अन्य पहचान-सूत्रों पर नियंत्रण से संबंधित होते हैं, जो परंपरागत रूप से अनधिकृत उपयोग से सुरक्षा प्रदान करते हैं।
  • ये अधिकार गोपनीयता, गरिमा तथा आर्थिक स्वायत्तता पर आधारित हैं और वाणिज्यिक दुरुपयोग को रोकने हेतु कॉमन लॉ प्रणाली से विकसित हुए।
  • कृत्रिम बुद्धिमत्ता विशेषकर डीपफेक जैसी जनरेटिव तकनीकों ने जोखिमों में गुणात्मक वृद्धि कर दी है, क्योंकि वे अत्यंत यथार्थवादी परंतु पूर्णत: झूठी सामग्री तैयार कर सकती हैं।
  • डीपफेक भ्रांत-सूचना फैलाने, ब्लैकमेल, प्रतिष्ठा-हानी तथा जन-विश्वास को कमजोर करने में सक्षम हैं, जिससे डिजिटल युग में मानव पहचान अत्यंत असुरक्षित हो गई है।
  • यद्यपि एआई नवाचार को प्रोत्साहित करता है, परंतु इसका अनियंत्रित उपयोग मानव पहचान को वस्तु में बदल सकता है; इसलिए कठोर विधिक सुरक्षा अत्यावश्यक है।

कानूनी परिदृश्य

विश्वभर में व्यक्तित्व अधिकारों की व्याख्या भिन्न है—

  • यूरोप: गरिमा-आधारित मॉडल
  • अमेरिका: संपत्ति-आधारित अधिकार (Right of Publicity)
  • भारत: मिश्रित दृष्टिकोण

भारत में स्थिति

  • व्यक्तित्व अधिकार संहिताबद्ध नहीं हैं; ये अनुच्छेद 21 से व्युत्पन्न हैं, जैसा कि न्यायमूर्ति के.एस. पुट्टस्वामी (2017) में गोपनीयता को मौलिक अधिकार मानते हुए पुनः स्थापित किया गया।
  • भारतीय न्यायालय एआई-दुरुपयोग को अक्सर गोपनीयता या बौद्धिक संपदा के उल्लंघन के रूप में देखते हैं।

प्रमुख मामले:

  1. अमिताभ बच्चन बनाम रजत नागी (2022) — व्यक्तित्व अधिकारों की मान्यता।
  2. अनिल कपूर बनाम Simply Life India (2023) — एआई द्वारा छवि व “झकास” जैसे कथन के उपयोग पर रोक।
  3. अरिजीत सिंह बनाम Codible Ventures LLP (2024) — गायक की आवाज़ की एआई-क्लोनिंग पर सुरक्षा।

यद्यपि भारत में आईटी अधिनियम (2000) और 2024 के मध्यस्थ दिशा-निर्देश डीपफेक एवं प्रतिरूपण से निपटते हैं, परंतु गुमनामी (anonymity) और सीमापार डेटा प्रवाह इनके प्रवर्तन को कमजोर बनाते हैं।

अमेरिका

  • व्यक्तित्व अधिकारों को Right of Publicity कहा जाता है—एक अंतरणीय संपत्ति अधिकार।
  • Haelan Laboratories v. Topps Chewing Gum (1953) ने इसे गोपनीयता से पृथक अधिकार के रूप में स्थापित किया।
  • टेनेसी का ELVIS Act (2024) बिना अनुमति एआई द्वारा आवाज़/छवि उपयोग पर प्रतिबंध लगाता है।
  • Character.AI पर यह आरोप लगा कि चैटबॉट्स ने उपयोगकर्ताओं को आत्म-हानि के लिए उकसाया तथा चिकित्सक का प्रतिरूपण किया; न्यायालयों ने प्रथम संशोधन (First Amendment) के बचाव को अस्वीकार किया।

यूरोपीय संघ और चीन

  • यूरोपीय संघ में GDPR (2016) के तहत व्यक्तिगत एवं बायोमेट्रिक डेटा हेतु स्पष्ट सहमति अनिवार्य है।
  • EU AI Act (2024) में डीपफेक को उच्च-जोखिम श्रेणी में रखा गया है तथा पारदर्शिता एवं लेबलिंग अनिवार्य की गई है।
  • चीन की 2024 बीजिंग इंटरनेट कोर्ट ने कहा कि एआई-निर्मित आवाज़ उपभोक्ता को भ्रमित नहीं करनी चाहिए।
  • एक अन्य मामले में बिना अनुमति आवाज़ क्लोन करने पर वॉयस-एक्टर को क्षतिपूर्ति प्रदान की गई—यह आवाज़ को पहचान-संबंधी संपत्ति के रूप में स्थापित करता है।

यह खंडित वैश्विक ढांचा दर्शाता है कि एआई की सीमा-रहित प्रकृति राष्ट्रीय कानूनों से कहीं आगे निकल चुकी है।
Guido Westkamp एवं अन्य विद्वानों (SSRN, 2025) के अनुसार, व्यक्तित्व अधिकारों में शैली, व्यक्तित्व (persona) और रचनात्मक अभिव्यक्ति को भी शामिल किया जाना चाहिए ताकि एआई डेटा-शोषण का मुकाबला किया जा सके।

मानव-एआई संबंध

एआई के संदर्भ में व्यक्तित्व अधिकारों पर विद्वानों का विमर्श नैतिकता, गरिमा और स्वायत्तता पर केंद्रित है।

  • UNESCO की AI नैतिकता संस्तुति (2021) कहती है कि एआई किसी भी व्यक्ति का शोषण नहीं कर सकता।
  • Safeguarding Identity (Aldrich & Smith, 2024) में भारत की बिखरी हुई कानूनी व्यवस्था की आलोचना की गई है तथा एआई की स्पष्ट परिभाषा, जोखिम श्रेणीकरण और डीपफेक-नियमन के लिए व्यापक कानून की माँग की गई है।
  • पुस्तक यह भी इंगित करती है कि मृत कलाकारों की एआई-पुनर्रचना गंभीर नैतिक प्रश्न उठाती है, विशेषकर तब जब भारतीय न्यायालय व्यक्तित्व अधिकारों को अविरासत योग्य (non-heritable) मानते हैं।
  • Forrest की पुस्तक (The Ethics and Challenges of Legal Personhood for AI, 2023) चेतावनी देती है कि एआई को कानूनी व्यक्तित्व देना मानव अधिकारों को कमजोर कर सकता है।

ये चर्चाएँ बताती हैं कि एआई एक द्विमुखी उपकरण है—
एक ओर ChatGPT जैसे उपकरण रचनात्मकता को सशक्त करते हैं, वहीं दूसरी ओर इन्हीं का दुरुपयोग भारी क्षति पहुँचा सकता है।
विद्वान यह भी सावधान करते हैं कि अत्यधिक नियमन नवाचार को बाधित कर सकता है, इसलिए संतुलित और नैतिक शासन आवश्यक है।

निष्कर्ष

इन विवादों ने स्पष्ट कर दिया है कि वर्तमान व्यवस्था में गहरी संरचनात्मक खामियाँ हैं। भारत को तत्काल ऐसे विधायी प्रावधानों की आवश्यकता है जो व्यक्तित्व अधिकारों को स्पष्ट रूप से परिभाषित करें, साथ ही एआई वॉटरमार्किंग, प्लेटफ़ॉर्म दायित्व, और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को अनिवार्य बनाएं।

सरकार की 2024 की डीपफेक सलाह मात्र प्रारंभिक कदम है; इसके अतिरिक्त कठोर और व्यापक उपायों की आवश्यकता है।
UNESCO के नैतिक सिद्धांतों के अनुरूप चलना डिजिटल विश्वास एवं मानव गरिमा के क्षरण को रोकने में सहायक हो सकता है।


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