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  • अधिकतम शासन के साथ-साथ अधिकतम जवाबदेही भी होनी चाहिए।
  • यह जवाबदेही एक सशक्त और प्रभावी संसद से शुरू होती है।
  • भारतीय संविधान के प्रावधानों को तैयार करने के लिए लगभग तीन वर्षों में 167 दिनों की बैठक हुई।
  • डॉ. बी.आर. अम्बेडकर ने संसदीय प्रणाली का बचाव किया और इसे जिम्मेदारी और स्थिरता का संतुलन बताया।
  • संसद द्वारा रोजाना और समय-समय पर (चुनावों के माध्यम से) जवाबदेही सुनिश्चित होती है।

मसला: निगरानी का कम होना

  • संविधान में शक्ति संतुलन और जांच-परख की व्यवस्था है।
  • फिर भी, कार्यपालिका पर संसदीय निगरानी कमजोर हो गई है।

दक्षता बनाम पारदर्शिता

  • शासन में दक्षता जरूरी है, लेकिन पारदर्शिता को नुकसान पहुँचाए बिना।

संसद की भूमिका को मजबूत करना

  • संसद को मजबूत बनाना होगा ताकि वह कार्यपालिका के कार्यों का कठोर निरीक्षण कर सके।
  • इससे कानून बनाने, लागू करने तथा जवाबदेही सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी।
  • प्रश्नोत्तर काल (Question Hour), शून्य काल (Zero Hour) और स्थायी समितियाँ (Standing Committees) मुख्य निगरानी के साधन हैं।
  • संसद में विरोध प्रदर्शन के कारण प्रश्नोत्तर काल और शून्य काल अक्सर बाधित होते हैं।
  • लोकसभा में 2019-24 के दौरान प्रश्नोत्तर काल केवल 60% समय तक काम कर पाया, और राज्यसभा में 52%.
  • सांसद अक्सर तात्कालिक सवालों पर ध्यान देते हैं, व्यापक और जटिल मुद्दों की जांच कम होती है।
  • समितियाँ विस्तृत रिपोर्ट बनाती हैं, लेकिन वे आमतौर पर संसद में चर्चा के लिए नहीं आतीं।
  • समिति की रिपोर्ट का कानून या कार्यपालिका पर प्रभाव सीमित रहता है।
  • समिति की सुनवाई में पक्षकारों की विविधता कम होती है।
  • समितियाँ अस्थायी होतीं हैं, जिससे सांसदों का अनुभव और संस्थागत ज्ञान विकसित नहीं हो पाता।
  • रेलवे समिति ने 2015 में रेलवे से लाभांश में छूट का सुझाव दिया, जिससे उसकी आर्थिक स्थिति सुधरी।
  • परिवहन समिति ने 2017 के मोटर वाहन विधेयक में सुधार करवाए, जिसमें तीसरे पक्ष के बीमा की सीमा हटाना और नेशनल रोड सेफ्टी बोर्ड का गठन शामिल है।
  • सार्वजनिक उपक्रम समिति ने एनएचएआई के हाईवे परियोजनाओं में भूमि अधिग्रहण और मंजूरी के बिना शुरुआत करने पर रोक लगाई।
  • अंदाज़ा समिति ने घरेलू यूरेनियम उत्पादन बढ़ाने की सलाह दी।
  • सार्वजनिक लेखा समिति (PAC) ने 2010 कॉमनवेल्थ खेलों में देरी एवं भ्रष्टाचार का खुलासा किया।
  • पिछले आठ वर्षों में PAC ने 180 वार्षिक सिफारिशें कीं, जिनमें 80% को सरकार ने स्वीकार किया।

कानून के प्रभाव का पुनः मूल्यांकन

  • भारत में कानून बनने के बाद उनके प्रभाव की समीक्षा का कोई औपचारिक तरीका नहीं है।
  • प्रत्येक स्थायी समिति के तहत उपसमितियाँ बनाएं या एक विशेष संस्था स्थापित करें जो कानूनों की क्रियान्वयन समीक्षा करे।
  • ब्रिटेन मॉडल से सीखें: वहां बड़ी विधायिकाओं को तीन से पांच वर्षों में पुनः समीक्षा के लिए प्रस्तुत किया जाता है।

समितियों का सुदृढीकरण

  • समिति रिपोर्टों को संसद के सदन में लाना और मंत्री से जवाबदेही लेने को अनिवार्य करें।
  • रिपोर्टों को स्थानीय भाषाओं में और आसान प्रारूपों जैसे वीडियो और चित्र के माध्यम से उपलब्ध कराएं।
  • समितियों को केवल प्रशासनिक सहायता न देकर मजबूत अनुसंधान और तकनीकी मदद प्रदान करें।

प्रौद्योगिकी का उपयोग

  • अधिकांश सांसदों के पास पेशेवर स्टाफ या अनुसंधान सहायता नहीं होती, जिससे जटिल नीति और व्यय की जांच कठिन होती है।
  • बजट दस्तावेज, ऑडिट रिपोर्ट और नीति पुनर्समीक्षा का भारी भार सांसदों पर होता है।
  • आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और डेटा एनालिटिक्स के माध्यम से सांसदों को अनियमितताएँ खोजने, नीति रुझानों की निगरानी करने और तथ्य आधारित प्रश्न बनाने में सहायता मिल सकती है।
  • 1993 में तत्कालीन उपराष्ट्रपति के.आर. नारायणन ने कहा था कि संसदीय निगरानी का उद्देश्य प्रशासन कमजोर करना नहीं बल्कि उसे संसद का मजबूत समर्थन देना है।
  • संसदीय निगरानी को सुदृढ़ बनाकर जनता के मत का सम्मान करना होगा और सरकारी कार्यों को पारदर्शी, जवाबदेह और “जनता के लिये, जनता के द्वारा, जनता का शासन” बनाए रखना होगा।

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