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  • आर्कटिक क्षेत्र में सैन्यकरण बढ़ रहा है, जिससे नई दिल्ली को एक नया नजरिया अपनाने की जरूरत है।
  • आर्कटिक, जो कभी वैज्ञानिक सहयोग और पर्यावरण संरक्षण का क्षेत्र था, अब सैन्य और भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा का केंद्र बनता जा रहा है।
  • रूस अधिक सक्रिय हो रहा है, चीन अपनी आर्कटिक महत्वाकांक्षाओं का विस्तार कर रहा है, और अमेरिका ग्रीनलैंड में नये रूचि दिखा रहा है।
  • जलवायु परिवर्तन इसका मुख्य कारण है, जिसने नॉर्दन सी रूट (NSR) जैसे नए समुद्री मार्ग खोले हैं जो अब साल भर उपयोग में हैं, जिससे वैश्विक व्यापार का स्वरूप बदल रहा है।
  • वर्तमान स्थिति:
    • देश आर्मी बेस दोबारा खोल रहे हैं, पनडुब्बियां तैनात कर रहे हैं और क्षेत्र पर बलपूर्वक नियंत्रण जताने लगे हैं।
    • इसका मतलब है कि सुरक्षा और प्रभाव के लिए संघर्ष बढ़ रहा है।
  • ऐतिहासिक संदर्भ:
    • यह बिल्कुल नई बात नहीं है, उदाहरण के लिए 2019 में ट्रंप सरकार का ग्रीनलैंड खरीदने का प्रस्ताव इसी महत्व को दिखाता है।
  • फोकस:
    • भारत अभी तक ज्यादातर इस क्षेत्र की बदलती जटिलताओं से दूर है और 2022 की आर्कटिक नीति में मुख्य रूप से जलवायु विज्ञान और सतत विकास पर ध्यान देता है।
    • इसे हिमालय के “तृतीय ध्रुव” के समान समझा गया है।
  • नीति की सीमाएं:
    • भारत की नीति आर्कटिक की बदलती रणनीतिक स्थिति को नजरअंदाज करती है।
    • ऐसी सोच भारत को इस क्षेत्र की आगे बढ़ती प्रतिस्पर्धा से बाहर कर सकती है।
  • भारत की उपस्थिति:
    • भारत ने स्वालबार्ड में एक अनुसंधान स्टेशन स्थापित किया है, ध्रुवीय मिशनों में भाग लेता है, और आर्कटिक काउंसिल में पर्यवेक्षक के रूप में शामिल है।
    • लेकिन ये प्रयास उस सहकारी माहौल के लिए थे जो अब बदल चुका है।
  • नॉर्दन सी रूट (NSR):
    • जैसे-जैसे NSR पूरी साल चलने वाला समुद्री मार्ग बन रहा है, वैश्विक व्यापार की दिशा उत्तर की ओर बढ़ सकती है; इससे भारतीय महासागरीय मार्गों का महत्व कम हो सकता है।
  • जुड़ाव की चुनौतियां:
    • अगर रूस और चीन आर्कटिक समुद्री मार्गों पर कब्जा कर लेते हैं, तो भारत के हिंद-प्रशांत क्षेत्र में कनेक्टिविटी के प्रयासों (SAGAR और IPOI) को चुनौती मिल सकती है।
  • जटिल भू-स्थिति:
    • आर्कटिक में रूस-चीन सहयोग और भारतीय महासागरीय क्षेत्र में चीन की नौसेना उपस्थिति से भारत के समुद्री हितों पर असर पड़ रहा है।
  • नॉर्डिक देशों की चिंताएं:
    • खास करके यूक्रेन युद्ध के दौरान भारत और रूस के संबंधों को लेकर नॉर्डिक देशों में असमंजस बढ़ रहा है।
  • राजनयिक प्रयास:
    • भारत को आर्कटिक भागीदारों को यह भरोसा देना होगा कि उसकी रणनीतिक स्वतंत्रता सभी के हित में है।
  • संस्थागत मजबूती:
    • विदेश मंत्रालय और रक्षा मंत्रालय में आर्कटिक को समर्पित विभाग बनाए जाने चाहिए।
    • विभिन्न एजेंसियों के बीच नियमित संवाद और रणनीतिक संस्थानों के साथ साझेदारी होनी चाहिए।
  • साझेदारी:
    • आर्कटिक देशों के साथ मिलकर पोलर लॉजिस्टिक्स, समुद्री निगरानी, उपग्रह मॉनिटरिंग जैसे दोहरे उपयोग के प्रोजेक्ट करें, जिससे भारत की साख बढ़े बिना किसी को असहज किए।
  • शासन और कूटनीति:
    • आर्कटिक शासी निकायों में सक्रिय भूमिका निभाएं जो बुनियादी ढांचा, शिपिंग नियम, डिजिटल मानक और नीली अर्थव्यवस्था से जुड़े हों।
    • स्थानीय समुदायों के प्रति सम्मान के साथ जुड़ाव रखें और संसाधनों के शोषण से बचें।
  • भारत की मौजूदा आर्कटिक नीति विज्ञान और जलवायु कूटनीति पर केंद्रित है, जो अब पर्याप्त नहीं है।
  • आर्कटिक अब शक्तिशाली राष्ट्रों के लिए प्रतिस्पर्धा का मैदान बन गया है।
  • यदि भारत समय रहते अपना नजरिया नहीं बदलेगा तो वह इस नए अंतरराष्ट्रीय प्रारूप से बाहर रह सकता है।

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